आज विश्व मृदा दिवस, धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही है मिट्टी की सेहत, एमपी से शुरू हुआ था आंदोलन; प्राकृतिक खेती से सेहतमंद होगी मिट्टी

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Rahul Garhwal
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आज विश्व मृदा दिवस, धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही है मिट्टी की सेहत, एमपी से शुरू हुआ था आंदोलन; प्राकृतिक खेती से सेहतमंद होगी मिट्टी

BHOPAL. आज विश्व मृदा दिवस है। हर साल 5 दिसंबर को मृदा संरक्षण के प्रति जागरुकता लाने के लिए विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए यहां मिट्टी महत्व काफी बढ़ जाता है। हमारे देश की 80 प्रतिशत आमदनी कृषि उत्पादों पर निर्भर है। 20 दिसंबर 2013 को फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 68वें सत्र में 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने की आधिकारिक घोषणा की गई थी।





मध्य प्रदेश से हुई थी मिट्टी बचाओ अभियान की शुरुआत





मिट्टी बचाओ आंदोलन की शुरुआत 1977 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद से हुई थी। यहां तवा बांध की वजह से कृषि योग्य मिट्टी दलदली होती जा रही थी। खेती से जीवन चलाने वाले किसानों को काफी दिक्कतों का सामना कर पड़ रहा था। तब होशंगाबाद के किसानों ने मिट्टी बचाओ आंदोलन की शुरू किया था। 





मिट्टी दिवस मनाने के पीछे की एक और कहानी





खबरों के मुताबिक थाईलैंड के महाराजा दिवंगत एच.एम. भूमिबोल अदुल्यादेज ने स्वस्थ और उपजाऊ मिट्टी के संरक्षण के लिए काम किया था। उनके योगदान के लिए उनके जन्मदिन 5 दिसंबर को विश्व मिट्टी दिवस के रूप में समर्पित किया गया। उन्हें सम्मानित किया गया। इसके बाद हर साल 5 दिसंबर को मिट्टी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।





कमजोर हो रही मिट्टी





दुनियाभर में विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। पेड़ों की कटाई होने से मृदा अपरदन बढ़ गया है। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती हैं। पेड़ कटने से बाढ़, तेज बारिश और प्राकृतिक आपदा में उपजाऊ मिट्टी कमजोर होने से बह जाती है। पेड़ कटने से मिट्टी को भारी नुकसान होता है।





मिट्टी में घट रही ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा





देश में पिछले 70 सालों में मृदा जैविक कार्बन (SOC) तत्व एक प्रतिशत से भी कम होकर 0.3 प्रतिशत हो गया है। जो काफी चिंता का विषय है। मृदा जैविक कार्बन मिट्टी का मुख्य घटक है जो इसमें जल धारण क्षमता, संरचना और उर्वरता के लिए जिम्मेदार है। कीटनाशक और उवर्रकों का ज्यादा इस्तेमाल करने से जैविक कार्बन में गिरावट आती है।





मिट्टी की सेहत बिगड़ने के कारण







  • फसल चक्र का पालन नहीं करना



  • फसलों में रसायनिक खाद का असंतुलित प्रयोग


  • जैविक, गोबर आदि पारंपरिक खाद का कम इस्तेमाल


  • फसलों के अवशेष जलाना






  • प्राकृतिक खेती से सेहतमंद होगी मिट्टी





    प्राकृतिक खेती में रसायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों की जगह गोबर की खाद, कंपोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्राकृतिक रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि का इस्तेमाल किया जाता है। प्राकृतिक खेती में जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक के जरिए फसलों को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।





    प्राकृतिक खेती के 4 सिद्धांत







    • खेत में जुताई नहीं करना है और ना ही मिट्टी को पलटना है। मिट्टी स्वयं की जुताई केंचुओं और सूक्ष्म जीवों के जरिए कर लेती है।



  • मिट्टी में रसायनिक उर्वरकों की जगह हरी खाद और गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए।


  • रसायनों का इस्तेमाल नहीं करना है। जुताई और उर्वरकों के इस्तेमाल से ही कमजोर फसलें उगीं, नहीं तो प्रकृति का संतुलन सही रहता।


  • फसलों में निंदाई-गुड़ाई नहीं करनी है। किसी भी तरह के धारदार उपकरणों का इस्तेमाल नहीं करना है।






  • प्राकृतिक खेती के फायदे







    • मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।



  • जैविक खाद के इस्तेमाल से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।


  • मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।


  • मिट्टी से जल का वाष्पीकरण कम होता है।


  • सिंचाई के अंतराल में वृद्धि होती है।


  • रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करने से फसल की लागत कम आती है।


  • फसलों की उत्पादकता बढ़ती है।


  • बाजार में जैविक उत्पादकों की मांग बढ़ने से किसानों की आय बढ़ती है।








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