सतना जिले के किसान बाबूलाल दहिया एक ऐसे किसान है जिन्हें देसी बीज बचाने का जूनून है। दहिया के पास इस समय देसी धान की 130 से भी ज्यादा किस्में हैं। इन बीजों को इकट्ठा करने के लिए बाबूलाल दहिया 40 जिलों की यात्रा कर चुके है। इसी काम की वजह से उन्हें साल 2019 में पद्मश्री से नवाजा जा चुका है।
30 साल का सफर
बाबूलाल दहिया सतना से 12 किमी दूर पिथौराबाद के रहने वाले हैं। 2007 में उन्होंने ये काम शुरू किया था । शुरूआत में दो से तीन किस्मों के देशी बीज थे, धीरे-धीरे बाबूलाल दहिया ने धान की विलुप्त हो चुकी प्रजातियों के बीजों को संरक्षित करने का काम शुरू किया।
क्यों खास है देशी बीज
आखिरकार बाबूलाल दहिया ने देशी बीजों को संरक्षित करने का काम क्यों शुरू किया। इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। बाबूलाल ने अपने पिता से खेती-किसानी के गुर सीखे। छुट्टियों में वो पिता का हाथ बंटाते थे। पिता से देशी बीज के बारे में उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला मसलन ये पता चला कि देशी बीजों की कम पानी में पैदावार हो जाती है, पानी बर्बाद नहीं होता और इन बीजों में रोगों को सहन करने की क्षमता है ।
हरित क्रांति के कम हुए देशी बीज : बाबूलाल
70 दशक में पूरे देश में एक लाख दस हजार देशी बीजों की प्रजातियां थी लेकिन अब बेहद कम है। बाबूलाल के दहिया के पास कोदों, कुटकी, सावां, मक्का जैसे तमाम बीजों की कई किस्में हैं। बीज इकट्ठा करने का तरीका भी अनोखा है। किसानों से वो नए नए बीज लेते है और फिर उन्हें 5 बाय 5 की जमीन पर अंकुरित करते हैं जिससे उनके पास नया बीज आ जाता है।