बोल हरि बोल : मैडम ने उतारी OSD की लू, मंत्रालय में 'विलेन', जावेद के जलबे और DIG साहब के बाल

राम को विभाग मिल गया, निवास मिल गया...अब क्या जीत भी मिलेगी? यही यक्ष प्रश्न है। इस बीच नए नवेले मंत्री महोदय मंत्रालय की फाइलें पलटने लगे हैं। चर्चा है कि वे टीम में अफसर नए रखेंगे।

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Harish Divekar
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क्या भरोसा बदलते मौसम का, 
रंग कल कुछ था आज और है कुछ… 
उतार- चढ़ाव भरा ऐसा ही मौसम है अपने हृदय प्रदेश का। कहीं झमाझम तो कहीं धूल उड़ रही है। सियासत के मौसम में सत्तारूढ़ दल की तरफ झमाझम नजर आती है। विपक्ष अच्छे दिनों की आस में है। मंत्रालय से मंत्रीजी तक जावेद भाई की गपशप जारी है।

इधर, पिछले दिनों ठाकुर का कुआं भले राजस्थान विधानसभा में गूंजा था, पर अपने यहां तो ठाकुरवाद की चर्चा जोरों पर है, मगर हम कहे देते हैं, पंडितजी भी कम नहीं बैठते। बॉडी- शॉडी बनाने वाले साहब इन दिनों धर्म की राह पर बढ़ चले हैं। मैडम ने ओएसडी के साथ जो किया है, उसकी बातें भी खूब हो रही हैं बॉस। मंत्रालय में एक साहब 'विलेन' बने फिर रहे हैं। खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए। 

संगठन की शक्ति, मशाल थमने से पहले... 

संगठन में वाकई शक्ति होती है। अब इसी मामले को देख लीजिए। मंत्रालय में कोई 'मशाल' थामे, इससे पहले ही अफसरान चिंता में आए और आनन-फानन में मुद्दा कैबिनेट में रखने पर सहमति बना ली। नहीं समझे न...चलिए विस्तार से बताते हैं।

मसला यह है कि सरकार ने अफसरों- कर्मचारियों की पदोन्नति न होने की स्थिति में पदोन्नत पद का वेतनमान देने के लिए समयमान- वेतनमान योजना शुरू की है। इसका लाभ सूबे के जिलों में पदस्थ कर्मचारियों को तो मिल रहा है, पर मंत्रालय के कर्मचारी वंचित थे। जब बात बढ़ी तो कर्मचारी संगठनों ने मानो मशाल थामने का मन बना लिया। फिर क्या था...उन्हें समझाया गया। अब आनन- फानन इस मामले को कैबिनेट की मंजूरी के लिए रखा जाएगा। 

मियां हर जगह चर्चे जावेद के हैं...

सूबे की सियासत को करीब से जानने वालों के बीच इन दिनों जावेद मियां की चर्चा जोरों पर है। इसकी वजह भी तगड़ी है। क्या है कि जावेद मियां का 'स्वभाव' इतना अच्छा है कि तीन मंत्री 'फिदा' हो चुके हैं। 2018 से अब तलक यह 'दोस्ती' कायम है।

जिसे भी जंगल वाला विभाग मिला, जावेद मियां उसके हो लिए। अंदर खाने की सभी खबरें रखने वाले जावेद के दबदबे का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि फाइल के पन्ने भी पलटते हैं तो उसे पता चल जाता है। ट्रांसफर, पोस्टिंग कराना तो उसके लिए बाएं हाथ का खेल है समझो। अभी तक सब ठीक चल रहा था, पर अब चौहान के चूकने से जावेद एक्सपोज हो गया। 

यक्ष प्रश्न: राम को निवास मिला… क्या मिलेगी जीत?

राम को विभाग मिल गया, निवास मिल गया...अब क्या जीत भी मिलेगी? यही यक्ष प्रश्न है। इस बीच नए नवेले मंत्री महोदय मंत्रालय की फाइलें पलटने लगे हैं। चर्चा है कि वे टीम में अफसर नए रखेंगे। पुराने वालों की सूची बनवाई जा रही है।

कुल मिलाकर मंत्रीजी दूध के जले हैं, इसलिए छाछ भी फूक- फूककर पी रहे हैं। पार्टी बदलने से लेकर अब तक वे इतने 'धोखे' खा चुके हैं कि अब मीडिया कोई भी सवाल पूछती है तो वे कहते हैं, दिखवा रहा हूं… मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है… आप मेरे संज्ञान में यह बात लाएं हैं...। वजह यह भी है कि बीजेपी में उन्हें 'निवास' तो मिल गया, चुनाव हार गए तो कहीं के नहीं रहेंगे, लिहाजा मंत्रीजी शिद्दत और गंभीरता से काम में जुटे हुए हैं।

क्या फिर चलेगा T- फैक्टर

प्रदेश बीजेपी के गलियारों में चर्चा आम है कि क्या संगठन में फिर 'टी फैक्टर' यानी ठाकुरवाद की वापसी होगी। दरअसल, हाईकमान ने दो ठाकुरों को प्रदेश बीजेपी संगठन की कमान सौंपी है, तब से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में ठाकुर नेता शामिल हो गए हैं। पड़ोसी राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने के बाद से ठाकुर नेता अपने स्तर से पंडितजी के हटने की खोज खबर लेने में जुटे हुए हैं। हालांकि पंडितजी की जड़ें गहरी हैं। इसलिए ठाकुर नेता उन्हें हल्के में लेने की भूल नहीं कर रहे।

अध्यात्म की राह पर डीआईजी साहब

कभी बॉडी बिल्डिंग से चर्चा में रहने वाले डीआईजी साहब आजकल नए अंदाज में नजर आ रहे हैं। बताते हैं कि जब से साहब बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री के संपर्क में आए हैं, तब से अंदाज बदल गया है।

लंबे- लंबे बाल रखकर वे बाबाओं की तरह अपने आपको शो करने लगे हैं। अब तो साहब की बातों में भी अध्यात्म और दर्शन नजर आता है। हम तो कहेंगे… साहब लगे रहिए, बदलाव अच्छा है, लेकिन बाबा की राह पर चलने के फेर में कर्म करने वाले रास्ते को न भूलिए। आप का काम है लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन कर आम जनता को सुरक्षित महसूस कराना, उस पर भी फोकस करें। 

कौन हीरो...नहीं विलेन...

सोशल मीडिया पर एक बड़ा फेमस डायलॉग है… 'हरेक पिक्चर में कोई एक होता है, तुझे देखकर मुझे ऐसा ही लगा, कौन हीरो...नहीं विलेन। तो भाईसाहब कुछ इसी तरह का अंदाज है मंत्रालय में पदस्थ एक प्रमुख सचिव स्तर वाले साहब का।

दरअसल, साहब इतने निडर हैं कि खुलकर कमीशन की डिमांड करते हैं। साहब के संचालनालय के कमिश्नर साहब चुनाव ड्यूटी में गए तो इन साहब ने उनके चार्ज में रहते हुए सभी फाइलें ले- देकर निपटा दीं। कमिश्नर लौटे तो उनके लिए कुछ न​हीं बचा।

अब कमिश्नर साहब कहते फिर रहे हैं कि हमारे प्रमुख सचिव की प्यास बड़ी है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साहब जब कलेक्टर थे तो बड़े बदनाम थे। खुलकर पैसा लेना और महिलाओं से दोस्ती रखने जैसी बातें उनकी कार्यशैली में जुड़ गई थीं। यहां तक कि बुंदेलखंड के एक जिले में इसे लेकर भारी विवाद हुआ था। साहब की पत्नी ने तो सोशल मीडिया पर पोस्ट सार्वजनिक कर आरोप लगाए थे।

मंत्री के ओएसडी की लू उतारी

मंत्रीजी के ओएसडी को संयुक्त संचालक स्तर की एक महिला अधिकारी से उलझना भारी पड़ गया। मैडम ने ओएसडी की लू उतार दी। मैडम ने अहसास दिला दिया कि तुम एक लिपिक स्तर के कर्मचारी हो, ओएसडी बनने से मंत्री के पॉवर नहीं मिल गए।

 मैडम के तीखे तेवर देखकर ओएसडी ने तत्काल सरेंडर कर दिया और कान पकड़कर माफी मांग ली। मैडम के झांसी की रानी वाले तेवर देखकर विभाग के दूसरे कर्मचारी भी सन्नाटे में हैं। दरअसल, इसके पहले ओएसडी की अफसरगिरी से संचालनालय का हर दूसरा अधिकारी परेशान था, लेकिन मैडम से पंगा होने के बाद ओएसडी को अपनी हद समझ आ गई।

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