आज दोस्ती का दिन यानी फ्रेंडशिप- डे है। दोस्ती कभी हमें आश्चर्यचकित करती है तो कभी रुलाती है। फिर कभी गुदगुदाती भी है। दोस्ती मन का मैल धो देती है, सच्चाई की राह पर चलना सिखाती है।
तो जनाब! आज हम आपके लिए लेकर आए हैं दोस्त और दोस्ती की कुछ चुनिंदा कहानियां। अब इसी मामले को देख लीजिए। साहब की एक महिला से दोस्ती हुई। फोन पर मैसेज से सिलसिला शुरू हुआ। फिर ये दास्तां मोबाइल पर बात करते हुए मेल मुलाकात पर आ पहुंची। थोड़े आगे और चले तो दोस्ती प्यार में बदल गई। अब स्थिति ये है कि साहब अपने प्यार से मिलने की खातिर दौरा कार्यक्रम बना लेते हैं। दूसरी कहानी सियासत से है। यहां मामला उलटा है। पावर क्या कम हुई, नेताजी के दोस्त भी एक- एककर साथ छोड़ने लगे हैं। वैसे सूबे की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी की कहानियां किसी से छिपी नहीं हैं। कभी एक थाली में खाने वाले महाराज ने पार्टी बदली तो दोस्त पर अंगुली उठाने लगे। कुछ राज परिवारों की एक- दूसरे से अदावत भी किसी से छिपी नहीं है।
खैर, आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
येन, केन, प्रकारेण...छलक जाता है नेताजी का दर्द
उड़ती पतंग सा था वो… कहां गया कोई ढूंढो...। सूबे में कभी जिन नेताजी की तूती बोलती थी, वे इन दिनों मानो कोपभवन में हैं। उनके विरोधी तो कहते हैं कि चुनाव हारने के बाद मानो अब नेताजी से किस्मत ने भी मुंह मोड़ लिया है। उनके दोस्त भी दूर हो गए हैं।
एक वक्त था, जब उनके बंगले पर सुबह से मीडिया की भीड़ लग जाती थी। अब समय ने ऐसी करवट बदली कि नेताजी के बंगले पर भी इक्का- दुक्का बीजेपी नेता ही पहुंचते हैं। पहले नेताजी हर मुद्दे पर बयान देने से चूकते नहीं थे, अब उन्हें ये सूझता ही नहीं है कि किया क्या जाए? येन, केन, प्रकारेण… उनका यह दर्द छलक ही पड़ता है। आपको बता दें कि नेताजी का पिछली सरकार में अच्छा खासा रसूख था। अब हम तो यही कहेंगे गुरु… ये वक्त भी गुजर जाएगा। आप तो 'जनसेवा' का दौर जारी रखें।
एक विधानसभा और 400 करोड़?
नए नवेले मंत्री बने एक नेताजी के लिए सरकार ने खजाना खोल दिया है। विरोधी दल के नेता कहते फिर रहे हैं कि सरकार ये कैसी दोस्ती निभा रही है। उनके विधानसभा क्षेत्र में 400 करोड़ के काम स्वीकृत हो गए हैं। ट्रांसफर पोस्टिंग का काम तो अलग ही लेवल पर चल रहा है। बस कोई फरियाद लेकर मंत्रीजी तक पहुंच जाए, तुरत- फुरत काम हो जाता है।
इसके पीछे वजह यही है कि कोई नाराज न हो और मंत्रीजी आसानी से उपचुनाव जीत जाएं। मंत्रीजी भी जीत के लिए एड़ी- चोटी का जोर लगा रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि जनता उन्हें निवास देती है या बाहर कर देगी।
अगली सूची और चौंकाने वाले नाम!
अगली सूची कब आएगी? कब आएगी अगली सूची? बस तबादला पोस्टिंग की चर्चा है मंत्रालय में इन दिनों। हाल ही में सरकार ने 10 सीनियर अफसरों के तबादले किए हैं। किसी का रुतबा कम किया गया है तो किसी को इनाम मिला है। अब यही चर्चा है कि अगली सूची में किसे कहां भेजा जाएगा? कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं।
चाय की चुस्कियों के साथ अफसरों की खूबियां और मिजाज बताकर अधीनस्थ कर्मचारी गुणा- भाग कर रहे हैं। कुल मिलाकर जमकर गॉशिप चल रही है। वैसे इनके लिए हमारे पास खबर है कि कतई दिमागी घोड़े न दौड़ाएं, अगली सूची जल्द आएगी और उसमें भी चौंकाने वाले फैसले ही होंगे।
प्यार किया कोई चोरी नहीं...!
दिल तो बच्चा है जी, थोड़ा कच्चा है जी… मगर प्यार तो सच्चा है जी। जी हां, इसी सच्चे प्यार की खातिर मंत्रालय सचिव स्तर के पद पर पदस्थ एक साहब इन दिनों अपनी महिला मित्र से मिलने के लिए आए दिन दौरा कार्यक्रम बना लेते हैं। जब साहब नहीं जा पाते तो दोस्त भोपाल आ जाती हैं। बताते हैं कि जब साहब निमाड़ के एक जिले में कलेक्टर थे, तब उन्हें अपनी अधीनस्थ महिला अधिकारी से प्यार हो गया था।
साहब निमाड़ से निकलकर मालवा के एक जिले में गए तो मैडम का भी तबादला करा लिया। इसके बाद साहब दिल्ली चले गए, पर प्यार कम नहीं हुआ। हालांकि इसका साइड इफैक्ट उनकी फैमिली पर हुआ और वैवाहिक जीवन संकट में आ गया, लेकिन साहब का प्यार तो सच्चा निकला। दिल्ली से आने के बाद भी साहब और महिला अधिकारी का साथ यूं ही बना हुआ है जैसा सालों पहले था।
नौकरी छोड़ो और किराने की दुकान खोल लो...
मंत्री कैलाश विजयवर्गीय जब उखड़ते हैं तो सामने वाले को जमीन दिखाकर ही दम लेते हैं। अब ताजा मामला विभागीय समीक्षा बैठक का है। प्रदेश के एक नगर निगम में लैंड लीज के मामले लंबित होने पर मंत्री ने निगम कमिश्नर से इसका कारण पूछा तो जवाब चौंकाने वाला आया।
कमिश्नर ने कहा, जमीन के मामलों में झंझट होते हैं। लिहाजा, इसके अधिकार परिषद को दिए जाने चाहिए। इस पर प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई ने कहा, ऐसा नहीं कर सकते... कमिश्नर को ही करना होंगे। मंत्री ने पूछा- आखिर आप क्यों नहीं करते? इस पर कमिश्नर ने कहा कि इस तरह के मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में शिकायतें होती हैं, इसलिए लीज के मामले लंबित रखे हैं। इतना सुनते ही मंत्री भड़क उठे। बोले, इतना ही डरते हो तो नौकरी छोड़ो और किराने की दुकान खोल लो।
जब कमिश्नर बोले- जो करना है सो कर लो...
सिंधिया कोटे से मंत्री बने एक साहब इन दिनों चर्चा में हैं। दरअसल, पहले मंत्रीजी के पास मलाईदार विभाग था, जहां रोजाना पैसों की बरसात होती थी। इस सरकार में उन्हें पिछली बार की तुलना में कमजोर विभाग मिला है, लेकिन मंत्रीजी कहां मानने वाले हैं। वे इस विभाग को भी दुधारू गाय बनाने पर तुले हुए हैं। मंत्रीजी अपने मंसूबे पूरे करने के लिए अफसरों को चमकाकर रखते हैं, लेकिन इस बार उन्हें कमिश्नर साहब को चमकाना भारी पड़ गया।
मंत्री ने कमिश्नर से जैसे ही कहा कि सीएम से कहकर हटवा दूंगा, उस पर तत्काल कमिश्नर ने कह दिया कि जो करना है कर लो… वैसे भी मैं जल्द रिटायर हो रहा हूं, अपने हिसाब से ही काम करूंगा। कमिश्नर का जवाब सुनते ही मंत्री महोदय की बोलती बंद हो गई। दरअसल, जिस अफसर ने ये जवाब दिया उसे अफसरों की बिरादरी में सीधा- साधा माना जाता है। ऐसे में मंत्री को भी इस पलटवार की उम्मीद नहीं थी।
सभी विधायक हाजिर हों!
डॉक्टर साहब हर वो जतन कर रहे हैं, जिससे सिस्टम में कसावट लाई जा सके। अब उन्होंने एक नया तरीका अख्तियार किया है। दरअसल, सूबे के सभी बीजेपी विधायक अब हर सोमवार और मंगलवार को राजधानी में रहेंगे। यहां वे अपने क्षेत्र के विकास कार्यों को लेकर मुख्यमंत्री और मंत्री से मुलाकात करेंगे।
इस मुलाकात के जरिए विधानसभा क्षेत्रों के रोडमैप पर होने वाले काम की जानकारी देंगे, ताकि कामों में तेजी लाई जा सके। मंत्रियों से भी कहा गया है कि वे विधायकों से मिलें और उनकी बातों को तवज्जो दें। इससे मंत्रियों और विधायकों के बीच दोस्ती भी बढ़ेगी। ये कवायद इसलिए की गई है कि क्योंकि पिछले दिनों जब डॉक्टर साहब ने वन टू वन किया था, तब विधायकों ने बताया था कि मंत्री उन्हें समय नहीं देते हैं। उनके काम पिछड़ते जाते हैं।
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