Bastar । छत्तीसगढ़ में धरना-प्रदर्शन के बारे में सरकार के नए दिशा निर्देश और नियमों को लेकर प्रदेश की सियासत गर्मा गई है। बीजेपी ने इसे आपातकाल की पुनरावृत्ति करार देते हुए जिला स्तर तक आंदोलन करने का ऐलान किया है। बीजेपी के बाद प्रदेश में सक्रिय माओवादियों ने भी सरकार के इस कदम को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताते हुए पुलिस-प्रशासन पर इसकी आड़ में दमन करने का आरोप लगाया है। हालांकि कांग्रेस ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए इस मुद्दे पर सरकार का बचाव किया है।
पुलिस पर नए नियमों की आड़ में दमन करने का आरोप
माओवादियों से संबंधित दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने एक बयान जारी कर धरना-प्रदर्शन के खिलाफ सरकार के निर्णय की आलोचना करते हुए संगठन के समर्थकों से इसका विरोध करने का आह्वान किया है। उन्होंने नए नियमों की आड़ में बस्तर के पूसनार और वेच्चापाल में संगठन के धरना शिविरों को नष्ट करने और समर्थकों झोपड़ियाँ जलाने का आरोप स्थानीय पुलिस पर लगाया है।
सत्ता-संगठन में खींचतान से ध्यान बंटाना चाहती है सरकारः माओवादी
जोनल कमेटी की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि जनहित से जुड़े मामलों और समस्याओं के समधान को प्राथमिकता देने के बजाय आवाज उठाने वाले लोगों का दमन करना अमानवीयता और फासीवादी नीति का परिचायक है। माओवादियों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया है कि वे कांग्रेस में चल रही अंदरूनी लड़ाई औऱ मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान से जनता का ध्यान बंटाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।
लोकतंत्र की दुहाई देने वाले माओवादी बंदूकें लिए क्यों घूमते हैं - आईजी
धरना-प्रदर्शन को लेकर सरकार के नए नियमों के खिलाफ माओवादियों के बयान पर बस्तर रेंज के आईजी पी.पी सुंदरराज ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वाले संगठनों को खुद इसकी मिसाल पेश करनी चाहिए। माओवादी जब अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को कुचलते हैं तब उन्हें अभिव्यक्ति का संवैधानिक अधिकार क्यों याद नहीं आता। यदि लोकतंत्र में वाकई उनकी आस्था है तो फिर उनसे जुड़े लोग खौफ फैलाने के लिए कंधों पर बंदूकें टांगकर क्यों घूमते हैं। । दरअसल सरकार की नीतियों की आलोचना करना, अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की दुहाई देना लेकिन खुद इस पर अमल नहीं करना माओवादियों का असल चरित्र है।