Raipur. प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की कोयला घोटाला याने 25 रुपए टन की अवैध वसूली मामले में कार्रवाई जारी है। ED को इस मामले में IAS समीर बिश्नोई समेत तीन अभियुक्तों की रिमांड आठ दिनों के लिए मिल गई है। ED की पूरी कार्यवाही आयकर विभाग के छापे से मिले अभिलेखों पर आधारित है।ED गिरफ़्तार IAS समीर बिश्नोई जो कि वर्तमान में चिप्स के प्रभारी हैं और पूर्व में माइनिंग के डायरेक्टर और खनिज निगम के एमडी थे उन्हें लेकर यह बताती है कि, इन्होंने 15 जुलाई 2020 और 10 अगस्त 2020 को दो अलग अलग अधिसूचनाओं के ज़रिए सभी खनिजों के परिवहन की ऑनलाइन प्रक्रिया को बदल कर उसे मैन्युअल कर दिया। जिससे भ्रष्टाचार के इस भानुमति का पिटारा खुलने का रास्ता बन गया।
16 महीने में 500 करोड़ की उगाही के साथ ED ने कोर्ट में क्या कहा है
प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा पेश रिमांड पत्र में IAS समीर विश्नोई की भुमिका को लेकर जो लिखा है उसका ब्यौरा तो दिया है कि कैसे उनके ज़रिए भ्रष्टाचार को आकार दिया गया। यह उल्लेख भी है कि सोलह महीने में पाँच सौ करोड़ की उगाही इस 25 रुपए टन के ज़रिए की गई। जो ब्यौरा कोर्ट में दिया गया है वह इस तरह से है -
“PMLA अंतर्गत की जाँच से यह पता चला है, कोल के परिवहन द्वारा अवैध रुपयों की उगाही के घोटाले की शुरुआत तब हुई थी जब जिओलॉजी और खनिज विभाग ने दिनांक 15 जुलाई 2020 को विभाग के तत्कालीन संचालक समीर बिश्नोई के हस्ताक्षर से अधिसूचना जारी की गई।जाँच से आगे पता चला कि समीर ने अन्य शासकीय अधिकारियों के साथ मिलकर एक ऐसी रुपरेखा तैयार की जिससे पहले से मौजूद ऑनलाइन प्रक्रिया बाधित हो सके। उपर उल्लेखित अधिसूचना और उसके बाद दिनांक १० अगस्त २०२० को समीर बिश्नोई द्वारा जारी अधिसूचना में किसी भी प्रकार के परिवहन के तरीक़े से उपभोक्ताओं तक प्रेषित होने वाले सभी खनिजों की ( मैन्युअल)स्वीकृति अनिवार्य कर दी गई।इस निर्देश द्वारा समीर बिश्नोई ने ऑनलाइन परिवहन अनुज्ञा पत्र के अधिक पारदर्शी प्रक्रिया को बदलते हुए खनिज मालिक और ट्रांसपोर्टर के लिए डीएम कार्यालय के खनिज विभाग से मैन्युअल एनओसी लेना अनिवार्य कर दिया।इससे भ्रष्टाचार का भानुमति का पिटारा खुल गया।सूर्यकांत तिवारी के नेतृत्व में नगद उगाही करने वालों का बड़ा तंत्र तैयार किया गया, जो आठ क्षेत्रों में फैला हुआ था और जिसका कोयला के परिवहन अनुज्ञा पत्र एनओसी की अवैध उगाही एकत्रण के लिए डीएम कार्यालयों से सीधी भागीदारी थी।जब तक कि रिश्वत की रक़म दी नहीं जाती थी,और यह बात इस गिरोह के द्वारा डीएम कार्यालयों को सूचित नहीं की जाती थी तब तक एनओसी नहीं दिया जाता था। परिणामस्वरूप छत्तीसगढ़ राज्य में परिवहन होने वाले प्रति टन कोयले में 25 रुपए की उगाही एकत्रित की गई।आईटी विभाग के पास उपलब्ध काग़ज़ात और उनके द्वारा साझा किया गया प्रतिवेदन से यह पता चलता है कि,सोलह महीने की अवधि में पाँच सौ करोड़ से ज़्यादा की रिश्वत/उगाही एकत्रित की गई।यह राशि व्यापारियों राजनेताओें और आईएएस तथा अन्य राज्य अधिकारियों के बीच वितरित की गई।समीर बिश्नोई के प्रत्यक्ष कृत्य द्वारा यह पूरा घोटाला संभव हुआ, और इसी क्षण से अवैध वसूली को आसान और संस्थागत बना दिया।”
ED ने सूर्यकांत तिवारी को किंगपिन बताया और सहयाेग करने वाले प्रभावशाली अधिकारियों के नाम भी लिखे
ED ने रिमांड पत्र में सूर्यकांत तिवारी को पूरे कोयला घोटाला का किंगपिन बताया है। सूर्यकांत तिवारी के साथियों का नाम गिरोह के रुप में उल्लेखित है। ED के रिमांड पत्र में सूर्यकांत तिवारी गिरोह शब्द का उपयोग है। ED ने रिमांड पत्र में तीन आईएएस इनमें एक महिला IAS का ज़िक्र है, और सूबे में राज्य प्रशासनिक सेवा की बेहद प्रभावशाली महिला अधिकारी का नाम सहित ज़िक्र करते हुए लिखा है कि, इन्होंने सूर्यकांत तिवारी का साथ दिया। ED ने आयकर विभाग से मिले अभिलेख और डिजीटल साक्ष्यों का ज़िक्र करते हुए कोर्ट को यह भी कहा है कि,इस तरह से हासिल रक़म का इस्तेमाल सरकारी सेवकों ( अधिकारियों) और राजनेताओें को देने में खर्च किया गया। इसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल चुनावी खर्च में भी किया गया।शेष रक़म का बड़ा हिस्सा लेनदेन के माध्यम से एक नंबर याने काले धन को सफेद बनाने के लिए प्रॉपर्टी और कोल वाशरी में निवेश किया गया।
यह 25 रुपए टन ट्रांसपोर्टर कैसे और किसे देते थे
जबकि ईडी का यह रिमांड पत्र बचाव पक्ष के वकीलों के माँगे जाने पर कोर्ट ने दिया और वहाँ से यह सार्वजनिक हुआ। हमने यह समझने की कोशिश की है कि, आख़िर कोयला का यह काला खेल कैसे अंजाम दिया जाता था। यह पच्चीस रुपए टन का जो मसला सूबे में क़रीब डेढ़ सालों से गूंज रहा है आख़िर वह होता कैसे था। हमने कुछ कोल ट्रांसपोर्टरों से बात की जिन्होंने स्वाभाविक तौर पर नाम सार्वजनिक करने से साफ़ मना कर दिया लेकिन नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर ब्यौरा द सूत्र को बताया -
“मूलतः प्रक्रिया है कि कोयला ट्रांसपोर्टर को जब भी कोयला लेना होता है तो वह ऑन लाईन टेंडर डालता है। यह टेंडर MST और कोल जंक्शन के ज़रिए ऑन लाइन होता है।EMD याने बतौर गारंटी प्रति टन क़रीब पाँच सौ रुपए की अमानत राशि जमा होने के बाद डीओ जारी होता है। डीओ CMD बिलासपुर से उस खदान के संबंधित जीएम और एक कॉपी नीलामी हासिल करने वाले को जाती है। डीओ फिर जीएम ऑफिस से उस खदान के काँटा घर पहुँचता था जहां से कोयला उठना है। जिस तारीख़ को डीओ खदान पहुँचता है उसके 45 दिन के भीतर कोयला उठाना होता है। यदि 45 दिन के भीतर कोयला नहीं उठा तो ज़मानत के रुप में दी राशि SECL जप्त कर लेता है।ऑनलाइन ही पिट पास जारी होता था। लेकिन क़रीब डेढ़ बरस पहले यह प्रक्रिया बदल गई। इसकी शुरुआत इस तरह से हुई कि कोयला लेकर जैसे ही ट्रक निकलते थे, राज्य सरकार का खनिज अमला या अन्य विभाग लोड ट्रक को रोक लेते थे। कई तरह की आपत्तियों के बीच एक आपत्ति यह होती थी कि, ट्रक में लोड कोयले की गुणवत्ता डीओ से अलग है, लैब परीक्षण कराएँगे उसके बाद ही ट्रक आगे जाएगी। इस फेर में समय गुजरता था और 45 दिन में कोयला नहीं उठने और ज़मानत राशि जप्त होने का नुक़सान सर के उपर मंडराता था। इस तकलीफ़ से बचने के लिए जो व्यवस्था सामने आई वह थी 25 रुपए टन के हिसाब से शुल्क का भुगतान। ट्रांसपोर्टर को बता दिया जाता था कि 25 रुपए टन के हिसाब से राशि कहाँ जमा करनी है। व्यापारी डीओ लेकर जाता था और उस संबंधित जगह पर पैसा जमा करता था तब उस डीओ पर विशिष्ट निशान बनाया जाता था। निशान लगा डीओ जीएम कार्यालय पहुँचता था और फिर वहाँ से खदान के काँटा घर। याने इस 25 रुपए टन का कोई लिखित रसीद अभिलेख हासिल नहीं होता था। होता था तो केवल डीओ पर एक चिन्ह।”
चर्चा है कि खेल इससे आगे भी हुआ
कोयले के इस खेल में 25 रुपए टन की व्यवस्था के संचालक बेहद प्रभावी थे। इस कदर प्रभावी कि कोई भी कुछ प्रतिरोध करने के बजाय चुपचाप व्यवस्था में सहयोग देने लगा। लेकिन मसला इससे आगे का भी छत्तीसगढ़ के कोयला हब याने रायगढ कोरबा में चर्चाओं में मौजूद है। चर्चाएं हैं कि बेहद बड़ा खेल लिंकेज के कोयला में हुआ। लिंकेज का कोयला उसे कहते हैं जिसमें उद्योगों को कम क़ीमत पर कोयला मिलता है। इन चर्चाओं को विश्वसनीय तौर पर बताया जाता है,लेकिन इसका आधार हासिल नहीं हुआ। चर्चाएं हैं कि लिंकेज के इस कोयले को ख़रीद लिया जाता था, और उसे छत्तीसगढ़ में ही बाज़ार क़ीमत पर खपा दिया जाता था। चर्चा महाराष्ट्र के किसी व्यक्ति की भी होती है जिसके एक लाख टन के डीओ को छिना गया और उसे डीओ के लिए लगाई गई राशि देकर बलपूर्वक चलता कर दिया गया। इसी मसले को लेकर यह दावा किया जाता है कि, इस एक लाख टन कोयले को खपाने के लिए मैन्युअल एंट्री हुई, हालाँकि इस दावे या कि चर्चा की पुष्टि नहीं है।