JAGDALPUR. ऐतिहासिक बस्तर दशहरा अब खत्म होने वाला है। इस उत्सव में देवताओं की विदाई से पहले ग्रामीण क्षेत्रों से शामिल होने आए देवी-देवताओं के अपमान का मुद्दा गरमाने लगा है। दरअसल, अंतिम राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की हत्या के बाद सालों से सैकड़ों की संख्या में देवी-देवता ग्रामीण अंचल से दशहरे में शामिल होने नहीं पहुंच रहे थे। लेकिन इस साल पहली बार इन इलाकों से मुखिया और पुजारी अपने देवी-देवताओं को दशहरे में लेकर पहुंचे। इसकी वजह कुछ सालों में नक्सल प्रभाव कम होना भी है, लेकिन इन गांवों के देवी-देवताओं को दी जाने वाली पूजन सामग्री और भोजन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
बस्तर दशहरे में मुरिया दरबार खत्म
बस्तर दशहरे में मुरिया दरबार खत्म होने के साथ ग्रामीण अंचल से दशहरे में शामिल होने आए देवी-देवता वापस होने की तैयारी में हैं। परंपरा अनुसार देवी-देवताओं के शामिल होने से लेकर दशहरे तक रहने और विदाई के दौरान पुजारी और सहयोगियों के लिए अनाज और देवताओं के लिए पूजा का सामान राज परिवार की ओर से दिया जाता था।
सहयोग नहीं मिलने से ग्रामीणों में आक्रोश
इन रस्मों को अब प्रशासन निभाता है। सालों बाद नक्सल प्रभाव कम होने से अबूझमाड़ जैसे इलाके से भी देवी-देवताओं दशहरे के पर्व में शामिल होने पहुंचे थे। लेकिन कतार बद्ध तरीके से राशन के लिए लाइन लगाना और पूजा सामग्री के लिए समय पर सहयोग नहीं मिलने से ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। ग्रामीणों ने दशहरे के दौरान अव्यवस्था का आरोप लगाया और भविष्य में आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
प्राचीन परंपरा से यह दशहरा बनता है खास
बारसूर परघन पुजारी राजा राम वट्टी के अनुसार बस्तर दशहरे में प्राचीन परंपराओं का समावेश तो है जो बात इसे खास बनाती है। वह इस पर्व में 500 से ज्यादा स्थानीय ग्रामीण देवी-देवताओं की रस्म और शिरकत है। हालांकि अचानक बड़ी संख्या में आए देवी-देवताओं की वजह से भी इस दशहरे में प्रशासन को इंतजाम करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अगले दशहरे में दूरस्थ और पहुंच विहीन इलाकों से भी और बड़ी संख्या में देवी-देवताओं के शामिल होने की संभावना है।