Bilaspur। अंतरिम ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में ज़मानत आवेदनों के तत्काल निराकरण नहीं किए जाने और अंतरिम ज़मानत याचिका को ख़ारिज करते हुए प्रकरण को नियमित सुनवाई के लिए भेजे जाने के मामलों का ज़िक्र करते हुए इस पर नाखुशी ज़ाहिर की है। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी रंगनाथन ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस से आग्रह किया है कि, वे इस मसले को लेकर एक न्यायिक नोट जारी करें, ताकि हाईकोर्ट में अपनाई जा रही इस असामान्य प्रथा पर रोक लगे।
क्या है मसला
राजनांदगाँव ज़िले में पदस्थ पटवारी तुलसीराम साहू के खिलाफ उनके भांजे लोकेश साहू ने ज़मीन हेराफेरी का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई। तुलसीराम साहू की ओर से अधिवक्ता विपिन तिवारी ने अग्रिम ज़मानत याचिका के साथ साथ अंतरिम ज़मानत का आवेदन दिया। जस्टिस दीपक तिवारी ने अंतरिम ज़मानत याचिका को निरस्त करते हुए प्रकरण को ड्यू कोर्स में देखने के निर्देश दिए। इस आदेश के खिलाफ तुलसीराम साहू सुप्रीम कोर्ट चले गए। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत दे दी। इसी के बाद पटवारी तुलसी साहू को जस्टिस रजनी दुबे ने बीते 27 अगस्त को अग्रिम ज़मानत भी दे दी। अग्रिम ज़मानत मिलने के बाद तुलसी साहू फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और उन्होंने बताया कि वे आवेदन वापस लेना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें अग्रिम ज़मानत मिल चुकी है।
क्या कहा शीर्ष अदालत ने
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा- यह अजीब तथ्य है कि कोर्ट अंतरिम ज़मानत याचिका की सुनवाई नहीं करते हुए प्रकरण को उचित समय पर सुनवाई के लिए रख दे। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा अपनाई जा रही यह एक असामान्य प्रथा है जो इसके पहले शीर्ष अदालत ने नहीं देखी है।हम इस तरह की प्रथा को अस्वीकार करते हैं और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वे इस पर न्यायिक नोट जारी करें।हम हमेशा उम्मीद करते हैं कि ज़मानत आवेदनों पर जल्द से जल्द फ़ैसला किया जाना चाहिए।