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JAGDALPUR: पाटजात्रा रस्म (patjatra rasm) अदा करने के साथ ही 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की शुरुआत हो गई है। जगदलपुर के मां दंतेश्वरी मंदिर (danteshwari mandir) में पहले पूरी विधि विधान पूजा अर्चना हुई। मांझी, चालकी, समेत अन्य समुदाय के लोगों ने साल की लकड़ी की पूजा भी की। माता के मंदिर में पूजी गई इसी लकड़ी से रथ निर्माण के लिए औजार बनाए जाएंगे। दशहरे के रथ के लिए जंगल से लकड़ी लाने की शुरुआत भी इस विधान के साथ हो गई है। पूजा के अलावा बकरा और मछली की बलि भी दी गई। इसके साथ ही 600 सालों से चली आ रही परंपरा (600 years old tradition) भी पूरी हुई।
पाटजात्रा रस्म के साथ शुरूआत
75 दिनों तक चलने वाले दशहरा पर्व की शुरुआत जिस रस्म से होती है उसे पाटजात्रा रस्म कहते हैं। दशहरे के लिए बनने वाला लकड़ी का विशालकाय रथ बनाने के लिए जिस लकड़ी से हथौड़े तैयार होते हैं, उसे टूरलू खोटला भी कहा जाता है। इस लकड़ी को बिलोरी गांव से गुरुवार को जगदलपुर लाया जा चुका है। इसकी मां दंतेश्वरी मंदिर परिसर में विधि-विधान से पूजा अर्चना भी हो चुकी है। ये रस्म पूरी होने के बाद अब बस्तर दशहरे में चलने वाले दो मंजिल ऊंचे लकड़ी के रथ के निर्माण के लिए जंगल से लकड़ियां लाने का काम शुरू हो जाएगा।
बलि देने की है परंपरा
लकड़ी की पूजा अर्चना करने के बाद मां दंतेश्वरी मंदिर में बकरा और मोंगरी मछली की बलि दी जाती है। इस परंपरा का इतिहास करीब 600 साल पुराना है। पाटजात्रा विधान के दौरान बकरा और मछली की बलि दी जाती है। इसे दंतेश्वरी माई को प्रसाद के स्वरूप में चढ़ाया जाता है। इस विधान को पूरा करने में रथ निर्माण करने वाले कारीगर, खाता पुजारी, दशहरा पर्व से जुड़े मांझी, चालकी, बस्तर कलेक्टर समेत दंतेश्वरी माई के सेवादारों भी मौजूद थे।