याज्ञवल्क्य मिश्रा, Raipur. रामनवमी के मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पूरा दिन राम और राम से जुड़े आस्था के प्रतीकों के साथ आराधना और उपासना करते हुए गुजारा। मुख्यमंत्री बघेल 11 अप्रैल को पांच मंदिरों में पहुंचे। वे देर शाम महानदी शिवनाथ और जोंक नदी के संगम पर आरती करते देखे गए। रामनवमी के मौके पर शबरी की प्रतिमा और रामायण सेंटर का लोकार्पण किया तो साथ ही राम वन पथ गमन मार्ग के विकास कार्यों का भी लोकार्पण किया।
जिस अंदाज से मुख्यमंत्री बघेल राम के साथ खुद को जोड़ रहे हैं और नदियों की आराधना आरती करते दिख रहे हैं। उसे देखकर यह बहुत आसानी से कहा जा सकता है कि कम-से-कम छत्तीसगढ़ में कांग्रेस राम और मंदिर जैसे मुद्दों पर बीजेपी को बीजेपी के ही अंदाज में अपना रही है। जाहिर है जब पंद्रह साल बीजेपी के शासनकाल रहे हों और बीजेपी ने वह नहीं किया जो कांग्रेसी मुख्यमंत्री द्वारा किया जा रहा है। बीजेपी के पास फिलहाल तो शब्द बाण नहीं दिखाई दिया है, जिसे सियासत में कोई निशाना भेदने वाला माना जाए।
यह पहला मौका नहीं है जब राम, सनातन मान्यताओं और प्रतीकों के साथ बीते तीन बरस से सत्ता में काबिज कांग्रेस ने सीएम बघेल के जरिए सहजता और स्वीकार्यता ना दिखाई हो, लेकिन कल का समूचा दिन जिस तरह से गुजरा उसने बीजेपी को बैचेन किया है।
कांग्रेस के भीतरखाने जैसे मध्यप्रदेश में कमलनाथ के रामनवमी मनाने के बयान पर आरिफ मसूद का बयान आया। वैसा छत्तीसगढ़ कांग्रेस में फिलहाल नहीं है। हालांकि कवर्धा विवाद जैसे मसले भी इसी शासनकाल में हैं। जबकि यह लिखा गया है कि मुख्यमंत्री बघेल बीजेपी को बीजेपी के तरीके से बीजेपी के प्रिय मुद्दे पर ही घेरने की कवायद कर रहे हैं, तो खैरागढ़ उपचुनाव में राम के फ्लैक्स के साथ मुख्यमंत्री बघेल की तस्वीरें और ऊपर कोने में पंजा निशान को भी याद रखा जाना चाहिए। ये फ्लैक्स हालांकि बीजेपी द्वारा चुनाव आयोग में आपत्ति के बाद दिखाई नहीं दिए। रामनवमी पर ही खैरागढ़ के छुई खदान में कुमार विश्वास के एकल मंच से हमर भांचा राम का आयोजन था, जिसमें सीएम बघेल बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने वाले थे। बीजेपी की ओर से इसके समय और मुख्यमंत्री की उपस्थिति को लेकर आपत्ति पेश की थी। इस आपत्ति के बाद कार्यक्रम का समय शाम आठ से बदल कर दो बजे कर दिया गया, हालांकि मुख्यमंत्री बघेल इसमें शामिल नहीं हुए। करीब सत्रह महीने बाद चुनाव हैं और ऐसे में अपने चिर-परिचित मुद्दों को लेकर कांग्रेस की स्वीकार्यता और सहजता को देख बीजेपी क्या नई रणनीति बनाएगी यह शायद जल्द समझ आए।
छत्तीसगढ़ को लेकर मान्यता है कि यह राम की ननिहाल है। चंद्रखुरी में कौशल्या माता का मंदिर है और वनवास काल में राम का सर्वाधिक समय आज के छत्तीसगढ़ में गुजरा था। भूपेश बघेल सरकार ने राम वन पथ गमन मार्ग को पर्यटन से जोड़ने के लिए काम शुरू कर दिया। चंद्रखुरी के साथ-साथ शिवरीनारायण जहां शबरी जी ने भगवान राम को बेर के फल खिलाए थे, उस चंद्रखुरी और शिवरीनारायण को लेकर ऐलान किया- “अयोध्या की तरह इनका विकास होगा।”
आरएसएस भी इस मत का हामी है कि राम और छत्तीसगढ़ का बेहद गहरा रिश्ता है। राजधानी के व्हीआईपी रोड में बना राम मंदिर संघ के तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया की सोच का ही मूर्त रूप है। छत्तीसगढ़ और राम के रिश्ते को लक्ष्य करते हुए ही यह मंदिर बनवाया गया था। प्रदेश की सियासत चुनावी मोड में आ रहा है, बीजेपी को मुख्यमंत्री बघेल का राम भक्त अंदाज रास तो नहीं ही आ रहा होगा लेकिन इस मसले पर द सूत्र के प्रतिनिधि ने खैरागढ़ में मुख्यमंत्री बघेल से सवाल किया था तो जवाब कुछ यूं आया था- “राम हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं, राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ है। वे भांजा हैं, राम हमारे लिए वोट का मुद्दा नहीं, संस्कार और परिवार का हिस्सा हैं.. जो हम कर रहे हैं फिर वो राम वन पथ गमन मार्ग हो या चंद्रखुरी, या फिर शिवरीनारायण मंदिर का पुनःवैभव वह बीजेपी ने क्यों नहीं किया। वे तो पंद्रह साल सत्ता से सत्ता में थे।”
अब पंद्रह साल क्यों नहीं किए के साथ-साथ राममय छत्तीसगढ़ कांग्रेस जो नदी संगम की आरती उतारते दिख रही है और माघ पूर्णिमा समेत कई अवसरों पर पर्व मनाते दिख रही है। इसका जवाब चुनाव के बहुत पहले बीजेपी को खोजना होगा और वह जवाब क्या है, इसका इंतजार सियासत में रुचि रखने वाले हर शख्स को है।