Bastar।क़रीब क़रीब पाँच बरस बाद माओवादियों ने बड़ी संख्या के साथ अपनी मौजूदगी बस्तर के जंगलों में बाजरिया रैली सभा से दर्शाई है। माओवादियों की यह रैली उस शहीदी सप्ताह के हवाले से हुई जिसे वे स्थापना के बाद से मनाते आ रहे हैं।बीजापुर सुकमा के सरहदी इलाक़े में माओवादियों के इस जमावड़े को लेकर क़यास हैं कि क़रीब दस हज़ार से अधिक की उपस्थिति थी।यह लोग तीन अगस्त को याने माओवादियों के शहीदी सप्ताह के आख़िरी दिन इकट्ठा हुए थे।यहाँ हुई सभा के पहले जंगल के भीतर विशाल रैली निकाली गई।माओवादियों की नृत्य मंडली भी इस आयोजन में मौजूद थी।इस आयोजन को छत्तीसगढ़ तेलंगाना के शीर्षस्थ नेताओं की उपस्थिति का भी खबरें हैं लेकिन इसमें पामेड़ एरिया कमेटी और तेलंगाना राज्य समिति के एक सदस्य का ज़िक्र नेतृत्व करने वालों में बताया गया है।
आठ घंटे चलता रहा कार्यक्रम,64 फ़ीट उंचे स्मारक का अनावरण भी
जिस बड़ी संख्या में और निर्द्वंद्व तरीक़े से माओवादियों ने यह पूरा आयोजन किया है, उसने सभी को चौंकाया है। माओवादियों के इस आयोजन को लेकर खबरें हैं कि, माओवादी क़रीब दो महीने से इसकी तैयारियों में थे। जो स्मारक बनाया गया है वह शीर्षस्थ नेताओं में एक अक्की राजू उर्फ़ हरगोपाल की स्मृति में बनाया गया है। कार्यक्रम को लेकर आईं जानकारी के अनुसार माओवादियों ने स्मारक और मंच से लगी दीवारों पर बीमारी मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की तस्वीरें लगाई थीं।यह कार्यक्रम क़रीब आठ घंटे निर्बाध रूप से चलता रहा।
सेंट्रल कमेटी ने जारी की स्मारिका, एक साल में सर्वाधिक नुक़सान स्वीकारा
माओवादियों की केंद्रीय समिति की ओर से इस मौक़े पर स्मारिका जारी की गई,जिसमें उन्होंने स्वीकारा है कि, बीते एक साल में केंद्रीय कमेटी और पोलित ब्यूरो सदस्य समेत 124 माओवादियों की मौत हुई है।बीस पन्नों के इस किताब में माओवादियों ने मुठभेड़ में 69, बीमारी से 27, जेल में 3, दुर्घटना में 4 और फ़र्ज़ी मुठभेड़ में 19 माओवादियों के मारे जाने की बात लिखी है।इनमें पीएलजीए के 21,डीवीसी के 9, सेंट्रल रिजनल कमेटी के 4 और एसी/पीपीसी के 32 सदस्य शामिल हैं। इस किताब में उल्लेखित है कि, उड़ीसा, आंध्र, बिहार,झारखंड और पूर्वी बिहार में 27 माओवादी मारे गए हैं।माओवादियों ने माना है कि, बीते एक साल में जितना कैडर का नुक़सान हुआ, उतना इसके पहले कभी नहीं हुआ।
इस सभा से सरकार के दावों पर सवाल लेकिन आईजी बोले - भ्रम फैलाने की पुरानी रणनीति
सरकार कई मौक़ों पर यह दावा करती है कि अब माओवादियों का आधार क्षेत्र सिमट रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अक्सर कर यह दावा करते रहे हैं कि, माओवादियों अब दो ज़िलों की कुछ तहसीलों में सिमट गए हैं और सुरक्षा बलों का दबाव बढ़ा है। यदि सरकार का दावा सही है तो बीजापुर से क़रीब 80 किलोमीटर दूर कोटमपल्ली में आयोजित सभा जो क़रीबन आठ से दस घंटे बग़ैर किसी भय के चली, उसे किस रुप में देखना चाहिए। इस सवाल को बस्तर रेंज आईजी इन शब्दों के साथ ख़ारिज करते हैं -
“माओवादियों की रणनीति है, धोखा और भ्रम, यह आयोजन करना और इसका प्रचार कराने के लिए क़वायद करना उसी रणनीति का हिस्सा है। ये आयोजन वे पहले बहुत जगहों पर करते थे पर प्रचार नहीं करते थे। लेकिन अब आधार सिमटा है, तो उन्होंने जानबूझकर यह रणनीति अपनाई ताकि यह बता सकें कि, उनका प्रभाव और आधार क्षेत्र अब भी है।जबकि सच इसके विपरीत है। फ़ोर्स लगातार आगे बढ़ रही है, वे सिमट रहे हैं। यह आँकलन कि हज़ारों थे वो भी ग़लत है, बंदूक़ के दम पर निर्दोष ग्रामीणों का वे इस्तेमाल करते रहे हैं और इस बार भी वही कोशिश है। यह संख्या हज़ारों की नहीं बल्कि बमुश्किल हज़ार की थी।”
जहां यह माओवादियों का आयोजन हुआ वह, कोटमपल्ली गाँव बीजापुर सुकमा की सरहद पर मौजूद जंगल के भीतर का गाँव है। बीजापुर से इस गाँव तक पहुँचने में क़रीब चार घंटे लगते हैं।