JAGDALPUR. 75 दिनों तक चलने वाला ऐतिहासिक बस्तर दशहरा धूमधाम से मनाया जा रहा है। दशहरा उत्सव में शामिल होने दंतेवाड़ा से जगदलपुर पहुंची मां दंतेश्वरी के छत्र और माता मावली की डोली का 4 अक्टूबर की रात भव्य स्वागत किया गया। हजारों की भीड़ भक्तिभाव से उमड़ी थी। वहीं, आज बस्तर दशहरा की एक महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी पूरी की जाएगी। इस रस्म में 8 पहियों वाले विजय रथ की परिक्रमा पूरी करवाई जाएगी।
राजपरिवार करता है माता की डोली का स्वागत
दरअसल, बस्तर दशहरा पूजा विधान की सबसे महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव है। दंतेवाड़ा से जगदलपुर पहुंची माता की डोली और छत्र का स्वागत सैकड़ों सालों से राज परिवार द्वारा किया जा रहा है। मां दंतेश्वरी की डोली 3 अक्टूबर देर रात एक बजे के बाद जिया डेरा पहुंची थी। जिया डेरा में सुबह से शाम तक माईजी की डोली का दर्शन करने लोगों का तांता लगा रहा। शाम को माईजी की डोली दंतेश्वरी मंदिर के लिए रवाना हुई। डोली पैलेस रोड में पुराने कूटरु बाड़ा के पास पहुंची।
मावली परघाव के बाद राजपरिवार कमल चंद भंजदेव स्वयं डोली को अपने कंधे पर रख दंतेश्वरी मंदिर ले जाएंगे। यहां मंदिर के पुजारियों द्वारा परंपरानुसार माईजी की डोली का स्वागत किया जाएगा। बताया गया कि 5 अक्टूबर की शाम मां दंतेश्वरी का छत्र कुछ समय के लिए विजयरथ में आरूढ़ होगी। इसके बाद रथ के आगे चल रहे वाहन में विराजेगी। उनके रथ से नीचे आने के बाद ही शहर स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर का छत्र रथारुढ़ किया जाएगा। रथ परंपरानुसार मावली माता मंदिर की परिक्रमा करेगा। इस परिक्रमा को ही भीतर रैनी कहा जाता है।
संस्कृत में लिखी होती है विनय पत्रिका
विनय पत्रिका संस्कृत में राज गुरु लिखते हैं। विनय पत्रिका अक्षत, सुपारी सहित दंतेश्वरी माई के चरणों में अर्पित की जाती है। देवी से दशहरा में सम्मलित होने माईजी से विनंती की जाती है। न्यौता स्वीकार करने के बाद देवी प्रतीक मावली माता की प्रतिमा, जो नए कपड़ों में हल्दी लेप लगाकर बनाई जाती है। मावली देवी की पूजा-अर्चना कर डोली में विराजित की जाती है। दंतेश्वरी देवी का नाम मावली देवी भी है, डोली को गर्भगृह से बाहर मंदिर के सभा कक्ष में रखा जाता है।