RAIPUR : सूर्यकांत तिवारी को रायपुर लाई आईटी की टीम, कोरबा और कोयला कारोबार से जुड़े कार्रवाई के तार, विपक्ष की चुप्पी पर सवाल

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RAIPUR : सूर्यकांत तिवारी को रायपुर लाई आईटी की टीम, कोरबा और कोयला कारोबार से जुड़े कार्रवाई के तार, विपक्ष की चुप्पी पर सवाल

RAIPUR. आयकर की कार्रवाई को लेकर छत्तीगढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार केंद्रीय एजेंसी ने राज्य की सत्ता में खासा रसूख रखने वाले सूर्यकांत तिवारी और उनके सहयोगियों को कार्रवाई के दायरे में लिया है। कार्रवाई में शामिल आईटी की टीम उन्हें शुक्रवार (1 जुलाई) को रायपुर लेकर आई है। सूत्रों के मुताबिक कार्रवाई के तार हाल ही में कोरबा में जमीनों की बड़ी डील और कोयला कारोबार से जुड़े हैं। इस पूरे मामले में सत्ताधारी कांग्रेस पूरी तरह खामोश है। लेकिन मुख्य विपक्ष के रूप में सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाली बीजेपी ने भी इस मामले में रहस्यमय ढंग से मौन साध रखा है जिसे लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।





सूर्यकांत और उनसे जुड़े सहयोगियों के ठिकाने जांच के दायरे में





तीन दिन पहले जब छत्तीसगढ़ के सत्ता प्रतिष्ठान और राजनीति से जुड़े चुनिंदा रसूखदारों के ठिकानों पर आयकर की कार्रवाई शुरू हुई तो यह स्पष्ट होते देर नहीं लगी कि इसके केंद्र में सूर्यकांत तिवारी ही हैं। चूंकि आयकर अमले ने राजधानी में उनके अनुपम नगर स्थित निवास से लेकर महासमुंद स्थित पैतृक आवास और उनके करीबी मित्रों के साथ कोरबा, रायगढ़, बिलासपुर और रायपुर में वीआईपी रोड स्थित एक पॉश कॉलोनी में उन्हीं ठिकानों को छानबीन के दायरे में लिया है जो किसी न किसी रूप में उनसे संबंधित हैं। हालांकि जब आईटी की टीम ने जब संबंधित ठिकानों पर कार्रवाई को अंजाम दिया तब खुद सूर्यकांत तिवारी उनके सहयोगी चंद्राकर और हेमंत जायसवाल भी मौके पर मौजूद नहीं थे। अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक वे उस समय दक्षिण भारत के किसी शहर में थे और केंद्रीय एजेंसी ने उन्हें वहीं से पूछताछ की प्रक्रिया में शामिल किया। इसके बाद उन्हें शुक्रवार (1 जुलाई) की शाम को रायपुर लाया गया।





कोरबा की जमीन और कोयला कारोबार से जुड़े तार !





सब जानते हैं कि कोयला छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का अहम आधार है। इसी के चलते राज्य में कोयला खनन से लेकर उसके ट्रांसपोर्टेशन तक का बहुत बड़ा कारोबार है और इसमें सत्ता प्रतिष्ठान और राजनीतिक दलों से जुड़े बड़े रसूखदारों को भी भागीदारी है। यही वजह है कि राज्य की विधानसभा में भी पिछले करीब डेढ़ बरस से सदन के भीतर से लेकर बाहर तक कोयला ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में 25 रुपए प्रति टन विशेष "सेवा शुल्क" की चर्चा सरगर्म रही है। जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि छग में कोयला ट्रांसपोर्टेशन में विशेष सेवा शुल्क की परंपरा अभी लागू हुई है। राज्य की व्यवस्था में ये परंपरा पहले पहले से ही प्रभावी है। लेकिन पहले ये परंपरा इतनी केंद्रीयकृत और सशक्त नहीं थी जितनी अब हो गई है। कोयला कारोबार में इस अघोषित परंपरा और व्यववस्था का अहम केंद्र कोरबा ही है।





कोल वॉशरी के लिए जमीनों की बड़ी डील की चर्चा





बताया जा रहा है कि आयकर की कार्रवाई के तार कोरबा में कोयला कारोबार से संबंधित जमीनों की बड़ी और बेशकीमती डील से जुड़े हैं। इनमें से एक जमीन कोरबा जिले की बरपाली तहसील में बताई गई है। जबकि दूसरी जमीन कोरबा के ही कोधारी इलाके के गांव जमनीपाली में बताई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक जमीनों की रजिस्ट्री 3 जून को टुकड़ों में हुई है। इसमें बहुत बड़ी राशि का निवेश हुआ है। चूंकि जिस इलाके में ये जमीनें खरीदी गईं हैं वहां कई कोल वॉशरी स्थापित हैं। इसलिए माना जा रहा है कि जमीनों का ये बड़ा सौदा यहां कोल वॉशरी लगाने के उद्देश्य से ही किया गया है। इसकी भनक लगने पर ठोस दस्तावेजी सबूत जुटाने के लिए ही आयकर की टीम ने कार्रवाई को अंजाम दिया है।





आखिर कौन हैं सूर्यकांत तिवारी ?





सत्ताजगत में खासा रसूख रखने वाले सूर्यकांत तिवारी मूल रूप से महासमुंद के रहने वाले हैं। पूर्व में उनकी पहचान कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे विद्याचरण शुक्ल के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में रही है। बताते हैं कि विद्याचरण उन्हें बेटे जैसा स्नेह करते थे। कालांतर में वे अजीत जोगी के साथ नजर आने लगे। जानकार बताते हैं कि 2003 में प्रदेश में सत्ता की बाजी पलटने के बाद वे बीजेपी सरकार में दो प्रभावशाली मंत्रियों की नजदीकी हासिल करने में भी कामयाब रहे हैं। सूर्यकांत तिवारी उस दौर में राजधानी के एक प्रभावशाली व्यवसायी के साथ भी खूब देखे गए हैं। यह व्यवसायी विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। 15 सालों के शासन के बाद जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार आई तो फिर से सत्ता के गलियारों में सूर्यकांत का नाम सूरज की तरह चमकने लगा।





विधायकों की दिल्ली परेड के समय भी चर्चा में आए थे सूर्यकांत





कांग्रेस शासन में सूर्यकांत तब भी चर्चाओं में आए जब ढाई बरस के सीएम वाले मुद्दे पर सत्तापक्ष के विधायकों की दिल्ली में परेड हुई। राजनीतिक संकटकाल के उस दौर में इनका नाम सरकार के संकटमोचक के रूप में लिया गया। उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि सूर्यकांत तिवारी बेहद मृदुभाषी हैं। वे न सिर्फ बेहद चपलता से संकटमोचक की भूमिका निभाने में माहिर हैं बल्कि अपनी इस इमेज को सुनियोजित तरीके से प्रचारित कर इसे स्थापित करने में भी सिद्धहस्त हैं। हालांकि हालिया वक्त में यह संकट मोचक खुद संकट में माना जा रहा है। लेकिन वे वाकई संकट में हैं या नहीं है यह केंद्रीय एजेंसी के उस अधिकृत बयान के बाद ही ही स्पष्ट होगा जिसके जारी होने का इंतजार सभी को है। इधर सूर्या अपार्टमेंट में भी आयकर की टीम मौजूद है लेकिन वहां से अभी कुछ ऐसा संकेत नहीं है जिससे ये माना जाए कि जांच एजेंसी को वहां से कुछ खास हासिल हुआ है।





कांग्रेस खामोश लेकिन बीजेपी चुप्पी रहस्यमयी ?





प्रदेश में आयकर की कार्रवाई को लेकर कांग्रेस ने तो फिलहाल चुप्पी साध रखी है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से बीजेपी में भी मौनव्रतधारी के रूप में नजर आ रही है। सीएम भूपेश बघेल को निशाने पर लेकर सियासी तीर चलाने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाली बीजेपी और उसके नेताओं की इस मुद्दे पर खामोशी रहस्यमय मानी जा रही है। राज्य में बीजेपी के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह से लेकर फायर ब्रांड नेता माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर का सत्तापक्ष को घेरने वाला कोई सार्वजनिक बयान तो दूर इस मुद्दे पर उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर भी मौन हैं। बमुश्किल एक अदद बयान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय के हवाले से सामने आया है जिसमें यह सवाल किया गया है कि सीएम हाउस के चारों गेट बंद क्यों कर लिए गए हैं। लेकिन इसके बाद से राज्य के मुख्य विपक्ष में पूरी से तरह नीम खामोशी है।



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