Raipur. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा अजा,अजजा और पिछड़े वर्ग के 58 फ़ीसदी आरक्षण को रद्द किए जाने के फ़ैसले के बाद अब मामले में सियासत तेज हो रही है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को इस फ़ैसले के लिए दोषी या कि जवाबदेह बता रहे हैं और दोनों के ही पास इसके लिए तर्क हैं। यह देखना भी दिलचस्प है कि, आरोपों को दागने के लिए कांग्रेस और बीजेपी के आदिवासी नेता आमने सामने हैं। कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी ने याचिका के जवाब में तथ्य ढंग से नहीं रखे जबकि भाजपा ने सवाल किया है कि क्या कांग्रेस चार सालों से सो रही थी।
कांग्रेस का आरोप
कांग्रेस की ओर से आरोपों की कमान पीसीसी चीफ़ मोहन मरकाम ने सम्हाली है। पीसीसी चीफ़ मोहन मरकाम का आरोप है कि, पूर्ववर्ती रमन सरकार की लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में आरक्षण रद्द हुआ है।कांग्रेस ने इस फ़ैसले के लिए डॉ रमन सिंह को प्रदेश की जनता से माफ़ी माँगने की बात कही है।पीसीसी चीफ़ मोहन मरकाम ने कहा
“जबकि आरक्षण पचास फ़ीसदी से उपर हो तो अदालत को आरक्षण बढ़ाने की विशेष परिस्थिति और कारणों को बताना होता है। याचिका दायर हुई तो जवाब में विशेष कारण पेश नहीं हुए।आरक्षण में संशोधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए निर्णय को ध्यान में नहीं रखा गया और बाद में संशोधित जवाब पेश करते हुए डेटा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया, लेकिन वे पर्याप्त नहीं थे।आरक्षण को बढ़ाने के लिए तत्कालीन रमन सरकार ने तब के गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था।रमन सरकार ने उसकी अनुशंसा को भी अदालत में पेश नहीं किया।”
बीजेपी के आरोप
बीजेपी इस मसले पर कांग्रेस के सारे आरोप के जवाब में एक लाईन का सवाल करती है कि क्या चार सालों तक कांग्रेस सरकार इस मामले में सो रही थी। छत्तीसगढ़ बीजेपी के क़द्दावर आदिवासी चेहरे जिनमें नंद कुमार साय, विष्णुदेव साय, विक्रम उसेंडी, केदार कश्यप, महेश गागड़ा शामिल हैं। इन्होंने संयुक्त पत्रकार वार्ता ली और कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा
“आदिवासियों के आरक्षण को 20 से 32 प्रतिशत याने सीधे 12 फ़ीसदी की वृद्धि बीजेपी सरकार ने की, और उसे लागू किया। कांग्रेस की सरकार ने यह मुक़दमा जानबूझकर हारा, ताकि आदिवासी आरक्षण का कटौती का लक्ष्य उसे हासिल हो।कांग्रेस जिस डाटा में गड़बड़ी का तर्क दे रही है, वह कांग्रेस की कुटिलता का प्रमाण है।”
बीजेपी ने इस मसले पर यह भी कहा
“सुप्रीम कोर्ट में मुख्यमंत्री और उनसे जुड़े लोगों जिन पर घोटाले के आरोपी अधिकारियों को बचाने के लिए बड़े वकील जिनकी एक पेशी की फ़ीस लगभग 25 -25 लाख है, उनकी फौज भ्रष्टाचारियो को बचाने लड़ती रही और लेकिन हाईकोर्ट में आरक्षण के मसले पर जिससे जनजाति का भला हो रहा था, इसकी पैरवी के लिए कोई बड़ा वकील नहीं लगाया गया।”