Rajnandgawa। दशमलव पचास का अंतर ही था,और दशमलव पचास का यह अंतर ना होता दामिनी को दसवीं की स्टेट मेरिट लिस्ट में टॉप पर होती,वह दशमलव के अंतर से चाैथे स्थान पर आई है।लेकिन दामिनी के साथ ऐसा कुछ और है जो उसे इस मेरिट लिस्ट में प्रतिशत की दौड़ से उपर कर देता है,वह है उसके पारिवारिक हालात और कांपते स्वरों के साथ मजबूत ख्वाब का एलान,जबकि द सूत्र ने दामिनी से पूछा आगे चल कर क्या बनना है,उसने झट से कहा− एस्ट्रोनॉट बनना है सर। दामिनी एक मजदूर की बिटिया है,दामिनी का बड़ा भाई भी पिता के साथ मजदूरी करता है। दामिनी की मां एक हादसे की वजह से दुनिया छोड़ गईं हैं। यह हादसा इस परिवार के लिए कुछ इस कदर तकलीफदेह है कि, इस पर दामिनी या उसका परिवार जिक्र करने से इंकार कर देता है।
नन्ही दामिनी के नाजुक कांधों पर ढेराें जवाबदेही और पढ़ाई भी
दामिनी के घर पर यह दामिनी की जवाबदेही है कि, वह घर के सारे काम सम्हाले,दामिनी पूरा घर सम्हालती है, पिता और भाई मजदूरी पर जाते हैं, तो घर पर खाना सफाई यह सब कुछ दामिनी के नन्हे कांधाें पर टिका है। उससे पूछा गया कि, सारे घर का काम कर के थकती नही हो,पढाई का वक्त कब मिलता है,दामिनी ने बाल सुलभ हंसी के साथ कहा
पूरा समय मिलता है, मैं सारा काम कर के सात से आठ घंटे पढाई का समय बेहद आराम से निकाल लेती हूं,खाना बनाते बनाते भी बहुत वक्त होता है,फिर मुझे पढ़ना है तो पढ़ाई कर ही लेती हूं,मां नही है तो बाबू और भैया को खाना घर की देखरेख भी तो जरूरी है न,सब हो जाता है सर
दामिनी के साथ उसकी छोटी बहन होती है जो आठवीं की पढ़ाई कर रही है। दामिनी के पिता जीवन वर्मा को अंदाज था कि, बिटिया का मन पढ़ने में खूब रमता है, उन्होने हाथ बंटाने के लिए दामिनी के भाई को शामिल कर लिया, लेकिन दामिनी और उसकी छोटी बहन को पढ़ने दिया। दामिनी ने निराश भी नही किया है, दसवीं के नतीजों में राज्य में उसका नंबर चाैथा है,उसे 600 में 589 नंबर मिले हैं,उसके प्रतिशत हैं 98.17,जिसने राज्य में टॉप किया है उसके नंबर है 592 और प्रतिशत है 98.67,याने वह केवल तीन नंबर और .50 प्रतिशत से पीछे हो गई,हालांकि इसका कोई मलाल उसे नही है। वह एकाग्र है अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए। उससे द सूत्र ने पूछा − बिटिया क्या बनना चाहती हो,तुरंत जवाब आया
मेरे को एस्ट्रोनॉट बनना है सर,बस वही बनना है, अंतरिक्ष में जाकर तारा ग्रह सब देखना समझना है,और मैं बनूंगी सर
पिता भावुक,बोले कुछ भी करूंगा पर दामिनी पढ़ेगी
घर के हालात दामिनी के सपनाें के लिए चुनाैती हैं, लेकिन उसके इरादों में गजब की बूलंदी है, उसके स्वरों में भले कंपन हो लेकिन स्वर से निकले अर्थ बेहद ही मजबूत हैं, लगता है मानाें उसने तय कर रखा है हालात चाहे जैसे हाें अंतरिक्ष जाकर तारों से बात कर उनके रहस्य की परतें खाेले बगैर दामिनी मानेगी नही। मजदूर पिता जीवन वर्मा से जब पूछा गया,एस्ट्रॉनॉट की पढ़ाई तो बेहद महंगी है, तब दामिनी के पिता जीवन ने बीच में ही टोका और कहा
सब बेच दूंगा साहब,सब कूछ लेकिन पढ़ाउंगा बिटिया को, जो बनना है न उसको, वो बनेगी, मैं पूरी ताकत झोंक दूंगा
जबकि हम लौटने लगे, हमने फिर पूछना समझना चाहा कि, आखिर दामिनी की मां के साथ क्या त्रासदी हुई,दामिनी के पिता जीवन फफक पड़े,उन्हाेने रूंधे गले से यह कह कर बात रोक दी − बिटिया के जरिए दो साल बाद खुशियां आईं हैं साहब, इस बारे में बात फिर कभी।