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Raipur। कनाडा में आयोजित 65 वें राष्ट्रकुल संसदीय सम्मेलन में छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने व्याख्यान देते हुए यह कहा है कि, जलवायु परिवर्तन चिंताजनक है, और इसके लिए जो व्यवस्थाएँ जवाबदेह हैं,उन पर नियंत्रण केवल विधायी संसदीय संस्थाओं से ही संभव है। बेहद ज़रूरी है कि, वृक्षों के संरक्षण के लिए संसदीय निकायों के माध्यम से कठोर नियम बनाएँ जाएँ।यह सम्मेलन 20 से 26 अगस्त तक आयोजित किया गया था। यह सम्मेलन हैलिफ़ैक्स ( कनाडा ) में हुआ।
जलवायु आपातकाल, संसदीय संस्थाओं की जवाबदेही विषय पर दिया व्याख्यान
विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने बेहद प्रतिष्ठित इस राष्ट्रकुल संसदीय सम्मेलन में जलवायु आपातकाल, संसदीय संस्थाओं की जवाबदेही पर व्याख्यान दिया।इस विषय पर डॉ महंत ने विस्तार से जलवायु परिवर्तन के बेहद ख़तरनाक दुष्प्रभाव का ज़िक्र करते हुए इस मसले पर कठोर क़ानून बनाने की बात कही। डॉ महंत ने कहा
“वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की जो स्थितियाँ निर्मित हुई हैं वह अत्यंत चिंताजनक है। जिन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है वहाँ संसद का यह दायित्व बनता है एवं प्रकृति संरक्षण के लिए व्यापक कारगर प्रबंध करें । विधायी निकायों को भी प्रकृति/जलवायु संरक्षण को ध्यान रखते हुए ऐसे नियमों का सृजन करना चाहिए।प्रकृति और प्राणियों के मध्य आदर्श संतुलन में ही मानव जीवन का अस्तित्व निर्भर करता है। वनों का घटता हुआ क्षेत्रफल भविष्य में एक बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकता है, इसलिए यह आवश्यक है कि वृक्षों के संरक्षण के लिए संसदीय निकायों के माध्यम से कठोर नियम बनाये जायें।
विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने संसदीय सम्मेलन में चेताते हुए कहा
“जलवायु परिवर्तन की वजह से वनस्पति और जीव जगत दोनों ही प्रभावित है।औद्यौगिकीकरण के बढ़ते प्रभाव से जिस तेज गति से भूमि का खनन कार्य चल रहा है उससे भूमि की आंतरिक संरचना में परिवर्तन आ रहा है। फसल की पैदावार के लिए किसानो द्वारा उपयोग किया जाने वाला कीटनाशक भूमि की उर्वरता को कम कर रहा है। जल प्रदूषण और जल संरक्षण पर हमें अत्यधिक गंभीर होने की आवश्यकता हैं। हम सब अपने तमाम प्रयासों से ही जलवायु परिवर्तन के इस संकट में मानव जाति को बचा सकते है, और इन व्यवस्थाओं पर नियंत्रण भी विधायी संसदीय संस्थाओं से ही संभव है।”