अच्छी योजना,खराब अमलः वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट में खरगोन की मिर्ची, जिम्मेदार बेखबर

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अच्छी योजना,खराब अमलः वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट में खरगोन की मिर्ची, जिम्मेदार बेखबर

भोपाल। केंद्र सरकार किसानों को उनकी उपज का ज्यादा दाम दिलाने के लिए कोई खास योजना लागू करे और इसे अमल में लाने की जिम्मेदारी वाले विभाग और एजेंसी को इसकी कोई जानकारी ही न हो तो इसे आप क्या कहेंगे। लापरवाही, गैरजिम्मेदारी, उदासीनता। जी हां, खेती को ज्यादा लाभदायक बनाने के लिए शुरू की गई केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी वन डिस्ट्रिक्ट- वन प्रोडक्ट (one district, one product) योजना में यही हो रहा है। इसकी ताजा मिसाल अपनी तीखी लाल मिर्च (red chilly) के लिए देश-विदेश में पहचाना जाने वाला मध्यप्रदेश (madhya pradesh) का खरगोन (khargone) जिला है। इसे अपनी खास मिर्च के लिए ही केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी वन डिस्ट्रिक्ट- वन प्रोडक्ट योजना के लिए चुना गया है। लेकिन खरगोन में मिर्च उगाने वाले हजाारों किसानों (farmers) को 10 महीने गुजर जाने के बाद भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। इसका कारण जानकर आप भी जरूर चौंक जाएंगे। दरअसल लाल मिर्च की ब्रांडिंग और मार्केटिंग का जिम्मा जनजाति मंत्रालय (ministry of tribal affairs) की जिस एजेंसी ट्राइफेड (trifed) को दिया गया है उसे मालूम ही नहीं है कि आखिर उसे करना क्या है।

विदेशों में भी एक्सपोर्ट होती है खरगोन की लाल मिर्च

प्रदेश में पैदा होने वाली मिर्च का करीब 30 फीसदी का उत्पादन खरगोन जिले में होता है। निमाड़ अंचल की यह लाल मिर्च खास तीखेपन के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। इसे बड़े कारोबारी पाकिस्तान, मलेशिया, साउदी अरब और चीन तक एक्सपोर्ट करते हैं। यही कारण है कि केंद्र की एक जिला, एक उत्पाद योजना के तहत खरगोन में लाल मिर्च को चुना गया। इस योजना का उद्देश्य हर जिले की किसी एक मुख्य फसल, औषधि या फल को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाना है। ताकि किसान बिचौलियों के शोषण से मुक्त हों, उन्हें अपनी उपज के ज्यादा मूल्य के लिए ज्यादा बड़ा मार्केट मिले। उसकी ब्रांडिंग से उसकी मांग बढ़े जिससे स्थानीय किसान खेती को लाभ का धंधा बनाकर आत्मनिर्भर बन सकें। 

अमल के लिए जिम्मेदार ट्राइफेड के अफसरों को पता ही नहीं

योजना के अंतर्गत सरकारी एजेंसियों को चुने गए उत्पाद की ब्राडिंग और मार्केटिंग करना होती है। मसाला संबंधित उत्पाद की ब्राडिंग करने की जिम्मेदारी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की एजेंसी ट्राईफेड यानि ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेंशन ऑफ इंडिया की है। लेकिन हालत यह है कि करीब 10 माह बीत जाने के बाद भी ट्राइफेड के अधिकारियों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि जब जिम्मेदार अधिकारियों को ही कुछ नहीं पता तो किसान का उत्थान कैसे होगा।

10 महीने बीते, पर अब तक किसानों को योजना का लाभ नहीं

एक जिला-एक उत्पाद के तहत खरगोन की मिर्ची को 25 जनवरी 2021 में चुना गया था। लेकिन करीब 10 महीने बीत जाने के बाद भी ट्राईफेड ने खरगोन से एक मिर्च भी नहीं खरीदी है। दरअसल ट्राईफेड के पूरे देश में ट्राइब्स इंडिया के नाम से शोरूम हैं। इनमें जनजातीय लोगों द्वारा निर्मित औऱ उत्पादित प्रोडक्ट की ब्रांडिंग औऱ मार्केटिंग की जाती है। लेकिन केंद्र सरकार की एक जिला- एक उत्पाद योजना के तहत मध्यप्रदेश जनजातीय बहुल खरगोन जिले में पैदा होने वाली मिर्च के चयन और उसकी ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग के संबंध में ट्राइफेड के स्थानीय अधिकारियों को अब तक कोई जानकारी नहीं हैं। नतीजा है कि खरगोन जिले में मिर्च उगाने वाले हजारों किसान अपनी उपज बेचने के लिए बिचौलियों के चंगुल से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। वे उनकी उपज औने-पौने दाम पर खदीदते हैं। कृषक प्रवीण बिरला ने कहा कि मिर्ची की लागत ज्यादा है। 10 से 12 रूपए प्रति किलो तुड़वाई लग रही है और मंडी में यह 40 रूपए किलो बिक रही है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। 

किसान से आधे दाम में मिर्च खरीदकर बाजार में दोगुने दाम पर बेचते हैं व्यापारी

सरकार की अनदेखी और लापरवाही का नतीजा यह है कि किसान ठगे जा रहे हैं। मंडी में गैर लाइसेंसधारी व्यापारी सिंडीकेट बनाकर किसानों से कम दाम पर उनकी उपज खरीदते हैं। इसके बाद उसे बड़े व्यापारी को बेचकर मोटा कमीशन कमाते हैं। किसान मंडी में 40 से 50 रूपए किलो तक मिर्ची बेचने को मजबूर है। वहीं मिर्ची के थोक व्यापारी परशराम आहूजा ने बताया कि खड़ी मिर्ची थोक में 100 से 150 रूपए तक बिक रही है। वहीं दुकानदार जुम्मनदास लालवानी ने बताया कि खड़ी मिर्च बाजार में 160 से 180 रूपए और पिसी मिर्च 200 से 220 रूपए किलो तक बिक रही है। मतलब किसान से जिस भाव में मिर्च खरीदी जा रही है, बाजार में वह दोगुने से लेकर चार गुना दाम में बेचा जाती है।

54 प्रतिशत मिर्च का उत्पादन सिर्फ निमाड़ में

बता दें कि मध्यप्रदेश में 87 हजार 743 हेक्टेयर से अधिक रकबे पर 2 लाख 18 हजार 307 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।  

निमाड़ क्षेत्र के जिलों का मिर्ची उत्पादन इस प्रकार है-

  • खरगोन में 25369 हेक्टयर रकबा पर 64200 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।
  • धार में 18535 हेक्टयर रकबा पर 25215 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।
  • खंडवा में 5439 हेक्टयर रकबा पर 15229 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।
  • बड़वानी में 5182 हेक्टयर रकबा पर 8291 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।
  • आलीराजपुर में 2015 हेक्टयर रकबा पर 5723 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।

यदि पूर निमाड़ क्षेत्र की बात करें तो इस क्षेत्र में 56540 हेक्टयर रकबा पर 118658 मीट्रिक टन मिर्ची की खेती होती है।

जिम्मेदारों का जवाब- नहीं खरीदी गई कोई मिर्ची

ट्राईफेड के सहायक प्रबंधक एके भगत ने बताया कि खरगोन से अब तक कोई मिर्ची नहीं खरीदी गई और न ही कोई प्रतिनिधि खरगोन से हमारे पास आया है। यदि कोई आएगा तो उसे योजना से जोड़ा जाएगा। हम उसके उत्पाद की ब्रांडिंग-मार्केटिंग करेंगे।

कलेक्टर ने दी DDH से बात करने की सलाह

एक जिला, एक उत्पाद के नोडल अधिकारी जिले में कलेक्टर हैं। जब इस संदर्भ में द सूत्र ने खरगोन कलेक्टर अनुग्रहा पी.  से बात करनी चाही, तो उनसे फोन पर संपर्क नहीं हुआ। जब इस संदर्भ में मैसेज किया, तो उन्होंने रिप्लाई कर उप संचालक उद्यानिकी यानि DDH से बात करने की सलाह दी।

मिर्च की ब्रांडिंग-मार्केटिंग के लिए अभी कुछ नहीं हुआ

खरगोन के वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी पर्वत सिंह बडोले ने बताया कि अक्टूबर में वाणिज्यक कर विभाग ने एक जिला-एक उत्पाद योजना के लिए भोपाल में एक कार्यक्रम रखा था। उसमें हमें बताया गया कि जल्द ही मिर्ची बेचने के लिए पूरा एक बेस तैयार करके दिया जाएगा। अभी खरगोन में एक ग्रीन चिली प्रोसिंग यूनिट स्वीकृत हो गई है। मार्केटिंग और ब्रांडिंग के लिए अभी कुछ नहीं हुआ है। ट्राईफेड का भी कोई आदेश नहीं नहीं मिला है। 

उद्यानिकी मंत्री ने न फोन उठाया, न ही मैसेज का जवाब दिया

इस मामले में द सूत्र के संवाददाता ने उद्यानिकी विभाग (horticulture department) के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह (bharat singh kushwah) से संपर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। इसके बाद जब उन्हें खरगोन के मिर्ची उत्पादक किसानों की समस्याओं का ब्योरा लिखकर व्हाट्सएप मैसेज के माध्यम से जवाब मांगा,तब भी उन्होंने कोई रिप्लाई करना मुनासिब नहीं समझा।

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