BIJAPUR. खुद को बस्तर, अबूझमाड़ और यहां के आदिवासियों का हितैषी कहने वाले नक्सलियों ने जो किया उसे मानवता के नाम पर कलंक ही माना जाएगा। जिस गंभीर बीमारी से अबूझमाड़ के 39 ग्रामीण दम तोड़ चुके हैं, उसी का इलाज करने के लिए मेडिकल टीम ने मोटरबोट से नदी पार की। जिस बोट से मेडिकल टीम गांव गई थी, नक्सलियों ने चालक दल समेत उस मोटरबोट को अपने कब्जे में ले लिया। आधे घंटे तक तो आसपास में ही चालक दल से मोटरबोट चलाने की प्रैक्टिस की और जब लगा कि सीख गए तो लेकर चले गए। ऐसे में मेडिकल टीम को वापस जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल पाया। मजबूरी में उन्हें रात में डोंगी के सहारे नदी पार करनी पड़ी। जबकि यह खतरनाक भी हो सकता था।
गंभीर बीमारी का इलाज करने गई थी टीम
पूरा मामला बीजापुर-नारायणपुर के बीच स्थित अबूझमाड़ इलाके का है। यहां इंद्रावती नदी के उस पार उसपरी गांव है जहां गंभीर बीमारी से लोग जूझ रहे हैं और जहां बड़ी संख्या में ग्रामीणों की मौत हुई है। इसी गांव व आसपास के इलाकों में बीजापुर विधायक विक्रम मंडाली और कलेक्टर राजेंद्र कटारा के साथ ही एसपी आंजनेय वार्ष्णेय ने दौरा कर लोगों का हाल जाना था। तब यहां उनकी सुरक्षा में जवानों की तैनाती की गई थी। वहीं जब हालात की गंभीरता को देखते हुए मेडिकल टीम को यहां भेजा गया तब तक जवान इलाके से जा चुके थे। रविवार की दोपहर भी मेडिकल टीम को नदी पार कराने के लिए उस परी घाट पर नगरसेना की ओर से मोटरबोट नदी में उतारी गई थी। इसमें सवार होकर मेडिकल टीम ने नदी पार की और मरीजों के इलाज के लिए चली गई। वहीं वापसी के दौरान जैसे ही चालक दल ने मोटरबोट को मोड़ना चाहा, मौके पर नक्सली पहुंच गए। इस दौरान नगरसेना के जवान तो थे पर नक्सलियों के खौफ में बेबस खड़े रहे। नक्सली मोटरबोट में सवार हो गए और चालक दल के सदस्यों को इसे चलाने की टेकनीक पूछी। फिर करीब आधे घंटे तक वे घाट के आसपास ही मोटरबोट चलाने की प्रैक्टिस करते रहे। जब लगा कि अब उनका हाथ बैठ गया है तो चालक दल को नदी के पार छोड़ा और फिर नदी में ही दूर चले गए।
वापसी में लाचार हुई मेडिकल टीम, करनी पड़ी खतरे की सवारी
पूरा वाकया दोपहर दो बजे का है। नगरसेना की टीम के वापस आने के बाद प्रशासन को इस बात की जानकारी दे दी गई थी। लेकिन, इसके बाद भी शाम तक मेडिकल टीम की वापसी के लिए किसी तरह की व्यवस्था प्रशासन स्तर पर नहीं की जा सकी। इस टीम में 19 सदस्यीय मेडिकल स्टाफ का नेतृत्व कर रहे जिले के सीएमएचओ, बीएमओ और दो सरपंच भी शामिल थे। शाम से रात होने लगी पर किसी तरह की व्यवस्था नहीं दिखी। ऐसे में स्थानीय लोग आगे आए और एक डोंगी की व्यवस्था की गई। तेज बहाव के बीच डोंगी की सवारी घातक भी हो सकती थी लेकिन उन्होंने इसी से नदी पार की और भी वापस मुख्यालय से अपने-अपने घर को रवाना हुए। बहरहाल, इस घटना ने न सिर्फ प्रशासन की व्यवस्था और सुरक्षा के प्रति गंभीरता पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि नक्सलियों के असली चेहरे को भी उजागर किया है।