RAIPUR: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (bhagwan jagannath rath yatra) का भव्य समारोह शुरू हो चुका है। सीएम भूपेश बघेल ने सोने की झाड़ू से बुहारी लगाकर रथ यात्रा की शुरूआत की। बरसों से चली आ रही इस परंपरा को छेरापहरा (chera pehra) की रस्म कहते हैं। जिसे हर बार सीएम ही पूरी करते हैं। उसके बाद ही भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है। छेरापहरा से पहले सीएम भूपेश बघेल (bhupesh baghel) ने भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना की। इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश में खुशहाली की कामना भी की। उन्होंने जगन्नाथ मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की आरती की। सुख समृद्धि के साथ साथ सीएम ने प्रदेश में अच्छी बारिश की कामना भी की। रथ-दूज का यह त्यौहार छत्तीसगढ़ की संस्कृति का भी अहम हिस्सा है, ठीक पड़ोसी राज्य ओडिशा की तरह। छत्तीसगढ़ में ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।
अटूट साझेदारी का हिस्सा
उत्कल संस्कृति यानि कि ओडिशा की संस्कृति और दक्षिण कोसल यानि कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति के बीच ये सांस्कृतिक और धार्मिक साझेदारी अटूट रही है। ये भी माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण-तीर्थ ही रहा है। यहीं से वे जगन्नाथपुरी जाकर स्थापित हुए। शिवरीनारायण वही जगह मानी जाती है जहां त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने माता शबरी के मीठे बेरों को स्वीकार किया था। यहां वर्तमान में नर-नारायण का मंदिर भी बनाया गया है।
ओडिशा की तर्ज पर पूरी होती हैं रस्में
ओडिशा की तरह छत्तीसगढ़ में भी भगवान जगन्नाथ को प्रसाद के रूप में चना और मूंग ही अर्पित किया जाता है। जिसके पीछे ये मान्यता है कि इस प्रसाद से निरोगी जीवन प्राप्त होता है। जगन्नाथ रथ यात्रा की तरह महानदी भी ओडिशा और छत्तीसगढ़ दोनों के लिए जीवनदायिनी है। महानदी की तरह ही भगवान जगन्नाथ की कृपा दोनों प्रदेशों को समान रूप से मिलती रही है।