Rajnandgaon: छत्तीसगढ़ में बहुत जल्द नए आंदोलन की आहट सुनाई दे सकती है। ये आंदोलन करने वाले होंगे प्रदेश के कई तेंदूपत्ता संग्राहक जो सरकार से खासे नाराज हैं। ये नाराजगी नजर आई है प्रदेश के धुर नक्सल प्रभावित इलाके मानपुर ब्लॉक (Naxal affected area Manpur) में। इस ब्लॉक के एक दो नहीं पूरे एक दर्जन गांवों के तेंदूपत्ता संग्राहक सरकार के फैसले के खिलाफ बगावत पर अमादा हो गए हैं। संग्राहकों ने ऐलान कर दिया है कि अब वो सरकार की बजाए खुले मार्केट में तेंदूपत्ता बेचने का काम करेंगे। इस नए ऐलान के बाद ग्रामीणों ने खेड़ेगांव और शारदा गांव को तेंदूपत्ता संग्रहण केंद्र भी बना लिया है।
क्यों हो रहा है विरोध?
जिला मुख्यालय से तकरीबन 140 किलोमीटर दूर पर स्थित है मानपुर क्षेत्र। यहां के 12 से 13 गांवों में तेंदूपत्ता बेचने को लेकर बवाल मचा हुआ है। ग्रामीणों ने सरकार को तेंदूपत्ता बेचने से साफ इंकार कर दिया है। ग्रामीणों का कहा है कि वो अगर खुले बाजार में तेंदूपत्ता बेचेंगे तो उन्हें ज्यादा लाभ होगा। बजाए कि वो सरकार को तेंदूपत्ता बेचें। उन्होंने अपना तर्क मजबूत करने के लिए महाराष्ट्र का उदाहरण भी दिया है जहां तेंदूपत्ता का भाव 200 से 350 रुपये प्रतिकिलो तक है। जबकि छत्तीसगढ़ में उन्हें एक बंडल पर ही सरकार बस 400 रुपये अदा करती है। नाराजगी सिर्फ भावों को लेकर नहीं है। पिछले सत्र का बोनस जो कि 45 रुपये होना चाहिए वो भी अब तक उन्हें नहीं मिला है।
ये उठाया कदम
इस बात से गुस्साए ग्रामीणों ने खुद अपने ही अलग अलग संग्रहण केंद्र बना लिए हैं। संग्रहण केंद्र बनाने के लिए ग्रामीणों ने दो गांवों का चयन किया है। जिसमें से एक गांव है शारदा और दूसरा गांव हैं खेड़ेगांव। इन दोनों गांवों में सभी ग्रामीण तेंदूपत्ता का संग्रहण करेंगे। जैसे ही सारा तेंदूपत्ता एक जगह आ जाएगा उसके बाद उसे खुला बाजार में बेचने की तैयारी की जाएगी। ग्रामीणों ने तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए अलग से कार्ड भी तैयार किए हैं ताकि रूपयों के लेनदेन में कोई दिक्कत न हो।
क्या होगा फायदा?
राजनांदगांव में होने वाला तेंदूपत्ता अपनी क्वालिटी के चलते सिर्फ प्रदेश ही नहीं पूरे देश में डिमांड में रहता है। यही वजह है कि ग्रामीणों को उसका ज्यादा भाव मिलने की उम्मीद है। जो अब तक पूरी नहीं हुआ तो ग्रामीओं ने विरोध करना शुरू कर दिया है। अब ये ग्रामीण जल जंगल जमीन हमारी है की तर्ज पर काम कर रहे हैं। ये इलाका आदिवासी बाहुल क्षेत्र में भी आता है। सारे आदिवासी अब इस जिद पर अमादा हैं कि तेंदूपत्ता कहां कैसे बेचना है ये हम तय करेंगे।