Ambikapur।हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन के विराेध में चल रहे आंदोलन में विरोध आज और तेज हो गया जबकि,सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले पूरे प्रदेश से आदिवासीयाें ने परसा पहुंच कर आंदोलन को समर्थन देते हुए एन एच 130 पर चक्काजाम कर दिया,वहीं परसा ईस्ट केते खदान से कोयला ले जाने वाले रेल्वे ट्रेक को भी बाधित कर दिया है। हालांकि प्रशासन ने एन एच से गुजरने वाले वाहनों का मार्ग परिवर्तित कर दिया है,लेकिन पंक्तियाें के लिखे जाने तक हजारों की संख्या में प्रदेश भर से पहुंचे आदिवासी सड़क पर डटे हुए हैं,खबरें हैं कि, देर शाम के पहले आदिवासी सड़क से नही हटेंगे। सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले पहुंचे आदिवासीयाें का नेतृत्व पूर्व सांसद साेहन पोटाई कर रहे हैं।इस विरोध प्रदर्शन में महिलाओं की संख्या बेहद प्रभावी है।
नही रोका गया उत्खनन तो प्रदेश भर में आदिवासी सड़कों पर उतरेंगे
सर्व आदिवासी समाज के लैटरपेड में मुख्यमंत्री बघेल को संबोधित पत्र में कहा गया है कि, खनन प्रस्ताव अनुमति मे बहुत सारी वैधानिक खामियां हैं।पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में आने वाले सरगुजा में किसी भी काम के लिए ग्राम सभा की अनुमति जरूरी है,लेकिन किसी भी ग्राम सभा से अनुमति नही ली गई है,बल्कि फर्जी ग्राम सभा कराने की कवायद प्रशासन ने की है। सर्व आदिवासी समाज की ओर से उल्लेख किया गया है कि, आदिवासियाें में टोटम प्रणाली होती है,जो पौधे जीवित एवं स्थान पर आधारित होते हैं,पेन देव देवी जो आदिवासी पूर्वज हैं,वे उस भूमि की विशिष्ट स्थानाें पर निवास करते हैं,उन्हे किसी दूसरी भूमि मेंं स्थानांतरित नही कर सकते। विस्थापन का मतलब है कि,आदिवासियाें के दृढ प्राकृतिक आस्था प्रणाली का विनाश होगा।
इस पत्र में चेतावनी दी गई है कि, परसा कोल ब्लॉक उत्खनन की अनुमति को निरस्त और परसा ईस्ट बासेन में कोयला खनन को तत्काल बंद यदि नही किया गया तो पूरे प्रदेश में सर्व आदिवासी समाज उग्र आंदोलन करेगा।
दस वर्षाें से जारी है आंदोलन
परसा में कोल उत्खनन के खिलाफ बीते दस वर्षाें से आंदोलन जारी है। हसदेव अरण्य को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन को राहुल गांधी तब मदनपुर पहुंचकर समर्थन दे चुके हैं, जबकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नही थी,तब राहुल गांधी ने यह आश्वस्त किया था कि, यदि कांग्रेस सरकार बनी तो आपको जंगल जमीन से नही हटाया जाएगा। लेकिन परसा कोल ब्लॉक उत्खनन की अनुमति और परसा ईस्ट बासेन में कोयला खनन के एक्सटेंशन को अनुमति तब दी गई है जबकि प्रदेश में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार है। हसदेव अरण्य को लेकर आंदोलन अब व्यापक होने लगा है, सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले हजाराें आदिवासियाें की उपस्थिति तो आज नुमाया हुई है, लेकिन हसदेव बचाओ के नाम से साेशल मीडिया पर जबर्दस्त ट्रेंड चल रहा है,हसदेव बचाओ अभियान के समर्थन में ना केवल देश बल्कि विदेशाें से भी लोगों ने समर्थन दिया है।
सीएम बघेल की दो टूक − देश को कोयला चाहिए लेकिन नियमों का उल्लंघन नही होना चाहिए
हसदेव अरण्य को लेकर तमाम विरोध के बीच सीएम भूपेश बघेल की इस मामले में जो टेक है,वो संकेत देती है कि, राज्य सरकार उत्खनन नही रोकेगी,हालांकि वह यह सुनिश्चित करेगी कि, कानून और नियमों का उल्लंघन ना हो। मुख्यमंत्री बघेल ने रायपुर हैलीपेड पर पत्रकारों से चर्चा में 18 मई को कहा है
कोयला वहीं है,जहां पहाड़ और जंगल है,जंगलाें को बचाने के लिए नीतियां बनी हैं,वन विभाग उसे देखते हैं,उसके लिए वन अधिनियम है,पर्यावरण कानून है। उन नियमों का उल्लंघन नही होना चाहिए,प्रभावित लोगों को मुआवजा बराबर मिलना चाहिए।देश को बिजली चाहिए तो तो काेयले की जरूरत तो पड़ेगी,आज कोयले के लिए पैसेंजर ट्रेन को खुद भारत सरकार रोक रही है।कोयला निकलेगा तो वहीं से जहां खदान है, लेकिन इसके लिए जो नियम है उसका पालन होना चाहिए,उसमें कोताही नही होनी चाहिए।
लेकिन 130 कोल ब्लॉक घने जंगलों से बाहर हैं
सीएम बघेल के बयान के विपरीत हसदेव अरण्य आंदोलनकारी और पर्यावरण के लिए संघर्षरत लोग यह दावा करते हैं कि,प्रदेश के 180 कोल ब्लॉक में कोयला भंडारण 58000 मिलियन टन है,इनमें से 130 कोल ब्लॉक जंगलों से बाहर हैं,जिस हसदेव अरण्य में खनन को लेकर विरोध में आदिवासी हैं और दूसरी तरफ सरकार है वहां केवल पांच हजार टन कोयला भंडार है।इस दावे के साथ ही यह सवाल भी किया जा रहा है कि,जब यह स्थिति है तो हाथियाें के घर और मध्य भारत के फेफड़े के रूप में पहचाने जाने वाले हसदेव के घने जंगलों को जिसे भारतीय वन्य जीव संस्थान ने जैव विविधता से समृद्ध परिपूर्ण वन क्षेत्र माना है जिसमें स्पेशिज वन कैटेगरी के जानवरों की रिहाईश है,उसे लेकर ही सरकार उत्खनन की जिद पर क्याें है।