BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा 58 फीसदी आरक्षण निरस्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होनी थी जो टल गई है। ये सुनवाई अर्जेंट हियरिंग के तहत होनी थी। हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण निरस्त करने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता बी.के मनीष ने स्पेशल लीव पिटीशन दायर किया है। अब इस मामले में 14 अक्टूबर को कोर्ट में फिर से सुनवाई होगी। आपको बता दें कि ये पिटीशन हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई थी।
मामले में जल्द सुनवाई की मांग
मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने इस फाइल को अपने पास रख लिया है। इसके पहले ये बताया जा रहा था कि वे इस पर तत्काल सुनवाई के संबंध में आज आदेश पारित कर सकते हैं। याचिकाकर्ता बीके मनीष के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा राज्य सिविल सेवा के सफल अभ्यर्थियों की सूची 30 सितंबर को जारी होने की संभावना थी। ऐसे में मामले पर जल्द सुनवाई की मांग की गई। आपको बता दें कि आदिवासी नेता योगेश ठाकुर और जांजगीर चांपा जिला पंचायत की सदस्य विद्या सिदार द्वारा भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करने की बातें सामने आ रही हैं।
58 फीसदी आरक्षण का मामला
छ्त्तीसगढ़ की रमन सरकार ने राज्य की शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 58 फीसदी कर दिया था। इसके तहत अनुसूचित जाति के आरक्षण का कोटा 16 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी कर दिया गया था। वहीं अनुसूचित जनजाति का कोटा बढ़ाकर 32 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों का कोटा 14 फीसदी रखा गया था। हालांकि सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गईं।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रमन सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया
फैसला लागू होने के करीब एक दशक बाद बीते दिनों ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रमन सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार दे दिया था। हाईकोर्ट ने आरक्षण की सीमा अधिकतम 50 फीसदी रखने का निर्देश दिया था। हालांकि इस दौरान बढ़े आरक्षण के चलते जो नई नियुक्तियां हुई हैं उन्हें बरकरार रखा गया है। आगे आने वाली भर्तियों में कोर्ट द्वारा तय आरक्षण के तहत नियुक्तियां की जाएंगी।