Sukma। सुकमा पुलिस ने बेगुनाह को जेल में बस इसलिए भेज दिया क्योंकि उसका नाम एक स्थाई वारंटी के नाम से मेल खाता था।कोर्ट को इसका पता तब चला जब वास्तविक वारंटी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया, और तब मामले में की जानकारी अधिवक्ता बिचेम पोंदी ने कोर्ट को बताया कि केवल नाम की समानता की। वजह से पुलिस ने ग़लत व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया और वह बेगुनाह बीते 9 महिने से जेल में है। कोर्ट ने मामले से जुड़े अभिलेख देखे और पाया कि, जिसे पूर्व में जेल भेजा गया है, वह निर्दोष है, उसे तत्काल छोड़ने के आदेश दिए साथ ही एसपी सुकमा को इस गंभीर लापरवाही के लिए जवाबदेह अधिकारियों कर्मचारियों के विरुध्द अनुशासनात्मक कार्यवाही करने और उस कार्यवाही की सूचना अदालत को देने के लिए पत्र भेज निर्देशित किया है।
क्या है मामला
साल 2014 में थाना चिंतागुफा में अपराध क्रमांक 10/2014 दर्ज किया गया। इस एफआईआर में धारा 147,148,149,307 प्रभावी थी। इस एफआईआर में यह आरोप था कि, रामाराम गाँव के बड़े तालाब के पास सुरक्षाकर्मियों के उपर फायरिंग की गई थी।इस मामले में जिन्हें आरोपी बताया गया था, उनमें मिनपा का पोड़ियामी भीमा भी आरोपी बनाया गया था। पोड़ियामी भीमा के साथ कुंजाम देवा,कवासी हिड़मा पिता जोगा,करटम दुला,पोड़ियाम कोसा, पोड़ियाम जोगा,कवासी हिड़मा पिता मुया को पुलिस ने सीजेएम कोर्ट
सुकमा में 11 अप्रैल 2016 को पेश किया जहां इन सभी को ज़मानत दे दी गई। ज़मानत मिलने के बाद आरोपियों के खिलाफ 4 फ़रवरी 2021 को तब स्थाई वारंट जारी हो गया जबकि वे पेशी पर नहीं आए। इसके पाँच महिने के बाद पुलिस ने 5 जुलाई 2021 को स्थाई वारंट तामीली के रुप में पोड़ियामी भीमा को गिरफ़्तार कर पेश कर दिया। कोर्ट ने पोड़ियामी भीमा को जेल भेज दिया।
क़रीब नौ महिने बाद 3 मार्च 2022 को पोड़ियामी भीमा के साथ कुंजाम देवा,कवासी हिड़मा पिता जोगा,करटम दुला,पोड़ियाम कोसा, पोड़ियाम जोगा,कवासी हिड़मा पिता मुया एक साथ कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने जज को बताया कि इनके ख़िलाफ़ वारंट है, ठीक उसी वक्त इनके वकील बिचेम पोंदी ने कोर्ट को बताया कि,पुलिस ने 9 महिने पहले निर्दोष पोड़ियामी भीमा को प्रकरण में आरोपी पोड़ियामी भीमा बता कर जेल भेज दिया है।
कोर्ट ने अंतिम प्रतिवेदन में गिरफ़्तारी पत्रक से किया मिलान
अधिवक्ता बिचेम पोंदी ने आवेदन देकर कोर्ट को तथ्य बताया। जिस पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कमलेश कुमार जुर्री ने प्रकरण का अंतिम प्रतिवेदन निकलवाया और गिरफ़्तारी पत्रक में चस्पा तस्वीर और शारीरिक पहचान चिन्हों के साथ कोर्ट में मौजूद पोड़ियामी भीमा से मिलान करने पर पाया कि, कोर्ट में अन्य आरोपियों के साथ समर्पण करने आया व्यक्ति ही वह वास्तविक व्यक्ति है, जिसके विरुद्ध पुलिस ने मामला दर्ज किया है, और 9 महिने पहले से जेल में बंद पोड़ियामी भीमा का इस प्रकरण से कोई लेना देना ही नहीं है।इसके बाद जज कमलेश कुमार जुर्री ने जेल में बंद पोड़ियामी भीमा को अविलंब रिहा करने के आदेश दे दिए।
बोले अधिवक्ता बिचेम पोंदी
अधिवक्ता बिचेम पोंदी ने इस मामले को पुलिस की कार्य शैली का उदाहरण बताया है। उन्होंने द सूत्र से कहा
नक्सल प्रभावित इलाक़ों में पुलिस की कार्यप्रणाली न्यायालयीन प्रक्रिया को ग्रामीणों के लिए और जटिल इन्हीं वजहों से बनाती है।