Raipur. राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य श्रेणी में आर्थिक रुप से कमजोर की जनसंख्या तलाशने बने क्वांटिफाईबल डाटा आयोग का कार्यकाल फिर बढ़ गया है। खबरें हैं कि इसके बाद एक एक्सटेंशन और दिया जा सकता है।हालाँकि सूत्र बताते हैं कि सभी ग्राम पंचायतों के स्तर तक से आँकड़े मंगाए जा चुके हैं, लेकिन इस पूरी क़वायद के बावजूद अब तक हासिल आँकड़े सरकार को मजबूर कर रहे हैं कि, एक कोशिश और की जाए ताकि आँकड़ों में कहीं कोई चूक की संभावना ना रहे। सूत्राें के अनुसार आयाेग द्वारा अब तक हासिल आंकड़े और जो अनुमान लगाया गया था उनमें बहुत ज्यादा अंतर है।
क्या है क्वांटिफाईबल डाटा आयोग, क्यों बना
भूपेश बघेल सरकार ने 4 सितंबर 2019 को एक अध्यादेश जारी करके अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए भी 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। इससे राज्य में आरक्षण 72 फ़ीसदी हो गया था।उच्च न्यायालय ने इस अध्यादेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए सरकार से पूछा था कि, वह बताए कि उसके पास कौन सा डाटा है जिस आधार पर यह आरक्षण लागू किया जा रहा है।इसके बाद राज्य सरकार ने OBC और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का क्वाइंटिफाएबल डेटा प्रस्तुत करने के लिए आयोग का गठन किया।
आयोग ने काम कैसे शुरू किया
इस आयोग का गठन 2019 में ही कर दिया गया। लेकिन कोरोना की विभीषिका ने काम रोक दिया।1सितंबर 2021 में आयोग काम को ढंग से शुरु कर पाया।इस आयोग ने एप के ज़रिए गणना का काम शुरू किया। इस एप को आधार/राशन कार्ड/ मोबाईल नंबर के ज़रिए भरा जा सकता है।इसमें सारी जानकारी भरी जाती है। इसमें दी गई जानकारी को क्रॉस चेक करने ग्रामीण क्षेत्र मैदानी में प्रति चार पंचायत पर एक सुपरवाइज़र जबकि शेड्यूल इलाक़े में दो पंचायत पर एक सुपरवाईजर नियुक्त किया गया। शहरी इलाक़ों या कि नगरीय निकाय क्षेत्रों में डायरेक्टर नगरीय प्रशासन और ग्रामीण क्षेत्रों में इस में डायरेक्टर पंचायत को शामिल किया गया कि, वे भी इस काम में भूमिका केंद्रीयकृत रुप से निभाएँ। सर्वे शुरु होने के पहले इसका व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। आयोग ने बीजापुर से लेकर बलरामपुर तक दौरा किया और हर ज़िले में प्रशासन के अलावा सामाजिक संगठनों से भी संपर्क किया।इस दौरे के प्रचार प्रसार के मायने यही थे कि, आयोग तक अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य श्रेणी के आर्थिक कमजोर वर्ग के लोग पहुँचे और अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँ ताकि वे गणना में शामिल हो सकें।इस काम के लिए 5 हजार 549 सुपरवाइजर नियुक्त हुए,शहरी क्षेत्रों में इनकी संख्या 1 हजार 103 तथा ग्रामीण क्षेत्र के लिए 4 हजार 446 रखी गई।
सामान्य सभा और ग्रामसभा से अनुमोदन
एप में दी गई जानकारी की सत्यापन के लिए सुपरवाईजर थे। इसमें अहम बात यह है कि, जाति प्रमाण पत्र का होना अनिवार्य नहीं किया गया था। ना ही आधार अनिवार्य था और ना ही राशन कार्ड। राशन कार्ड अहम आधार जरूर बने लेकिन वह अनिवार्य नहीं माना गया। प्रारंभिक प्रकाशन के बाद दावा आपत्ति मंगाई गई और फिर अंतिम सूची तैयार की गई और नगरीय निकाय क्षेत्रों में सामान्य सभा से पुष्टि और अनुमोदन कराया गया और ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामसभा ने आवेदकों की पुष्टि और अनुमोदन किया।
इतनी क़वायद के बाद आँकड़े
राज्य के 146 ब्लॉक में से 85 ब्लॉक शेड्यूल हैं, जो सूत्र बता रहे हैं उसके अनुसार राज्य में अब तक के आँकड़े के अनुसार पिछड़ा वर्ग क़रीब 40 से 41 फ़ीसदी के आसपास हो रहे हैं। जबकि सामान्य वर्ग के गरीब क़रीब तीन फ़ीसदी हैं। जो आँकड़े हैं उसके अनुसार राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी क़रीब एक करोड़ बीस लाख के आस-पास है। राज्य की जनसंख्या में अनुमानित रुप से 22.61 फ़ीसदी का ग्रोथ रेट माना गया है।राज्य के दुर्ग ज़िले ग्रामीण में सर्वाधिक 72 फ़ीसदी पिछड़ा वर्ग के लोग पाए गए हैं, जबकि शहरी में यह आँकड़ा क़रीब 40 फ़ीसदी पर टिकता है।सीएम बघेल के गृह क्षेत्र पाटन में यह आँकड़ा 65 फ़ीसदी है। दुर्ग के बाद बेमेतरा ग्रामीण में क़रीब 62 फ़ीसदी, रायपुर ग्रामीण में 61 फ़ीसदी, जांजगीर में 53 फ़ीसदी और बिलासपुर ग्रामीण में क़रीब 44 फ़ीसदी का आँकड़ा हासिल होने की खबरें हैं। जो शेड्यूल ज़िले हैं जिनमें बस्तर सरगुजा के ज़िले शामिल हैं वहाँ यह आँकड़ा औसतन पैंतीस फ़ीसदी या इससे भी कम पर जाने की खबरें हैं।
फिर मियाद बढ़ने की संभावना
।कवायद है कि, इन आँकड़ों की फिर तस्दीक़ की जाए,इसके पीछे साेच यह है कि, शासकीय अमला जो इस पिछड़ा वर्ग से जुड़ा हुआ है, उसने शायद वह सहभागिता नहीं दिखाई जो कि दिखाई जानी थी,और इसलिए ही मियाद बढ़ी है। सरकार अंतिम आंकड़े के लिए पुरजाेर ताकत झोंक ही इसलिए रही है क्याेंकि कहीं किसी चूक या कि अगर−मगर की गुंजाईश ना रह जाए।