एग्रीमेंट से लिव इन को विधिक मान्यता कैसे,भड़का महिला आयाेग,वकील नाेटरी तलब

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Yagyawalkya Mishra
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 एग्रीमेंट से लिव इन को विधिक मान्यता कैसे,भड़का महिला आयाेग,वकील नाेटरी तलब

Raipur। राजनांदगाँव क्षेत्र की निवासी एक महिला ने अपने पति के खिलाफ महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि, पति ने उसे और दो बच्चों को छोड़ दिया है, और खुद एक अन्य महिला के साथ घर पर रह रहा है। महिला आयोग ने जब पति को तलब किया तो उसने वकील से पचास रुपए के स्टैंप पर तैयार लिव इन रिलेशनशिप का एग्रीमेंट पेश कर दिया।पति इस एग्रीमेंट के जरिए यह बताना चाह रहा था कि, उसने विवाह नही किया है। इस अजीबोग़रीब एग्रीमेंट को देख महिला आयोग अध्यक्ष किरणमयी नायक भड़क गईं और उन्होंने इसे बनवाने वाले वकील को भी आयोग कार्यालय तलब कर लिया। हालाँकि पिछली पेशी में वकील साहब और संबंधित पक्ष नहीं आए तो अब बाजरिया पुलिस उन्हें तलब कराए जाने के निर्देश महिला आयोग ने दिए हैं।लिव इन रिलेशन को कॉंट्रेक्ट के रुप में एग्रीमेंट बन सकता है या नहीं यह तो बहस का मुद्दा है ही, लेकिन इस कॉंट्रेक्ट को पेश कर के पति महोदयने खुद से पत्नी के आरोपों को साबित कर दिया है। विधि विशेषज्ञों ने इस कॉंट्रेक्ट को प्रकरण के दृष्टिकोण से एडल्ट्री का प्रमाण मान लिया है।



क्या लिखा है कॉंट्रेक्ट में



 लिव इन रिलेशनशीप को लेकर  स्टांप पर जो ऐसा कॉंट्रेक्ट या कि अनुबंध बनाया गया है उसमें सात बिंदु हैं,जिनमें यह भी है कि भविष्य में दैहिक शोषण के आरोप नहीं लगाए जाएँगे,वे शारीरिक संबंध भी स्थापित करेंगे,आने वाले समय में एक दूसरे के विरुध्द किसी भी प्रकार से इस रिलेशनशीप के संबंध में कोई भुगतान/दावा नहीं करेंगे।इस कॉंट्रेक्ट में यह भी उल्लेखित है कि यदि कोई दोष अथवा दावा किया जाता है तो वह शून्य और नाजायज माना जाएगा।यह अनुबंध दोनों पक्षों की ओर से पृथक पृथकतैयार किया गया है, लेकिन दोनों के ब्यौरे/शर्त जैसा कि होता है शब्दशः समान हैं।





शपथ पत्र

एग्रीमेंट





दूसरी महिला से बच्चा भी



   पत्नी द्वारा दी गई शिकायत में यह उल्लेख था कि,जो महिला उनके पति के साथ रह रही है, उससे एक बच्चा भी उत्पन्न हो चुका है। आयोग की प्रारंभिक जाँच में इस बात को भी सही पाया गया है।



क्यों भड़का महिला आयोग



  इसमें इस तथ्य का उल्लेख नहीं है,यह जानकारी नहीं है कि पत्नी पूर्व से है।दूसरा यह कॉंट्रेक्ट इस रिलेशनशीप से यदि बच्चा उत्पन्न हुआ तो उसे लेकर बच्चे की ज़िम्मेदारी का कोई उल्लेख नहीं करता।पश्चिमी देशों के प्रचलन में लिव इन है क्योंकि परिवार को लेकर उनमें मान्यताएँ दूसरी हैं, जैसे कि परिवार या कि दायित्व बंधन हैं।लेकिन भारत में परिवार बंधन नहीं है।यह महिला  को पूरी तरह किसी भी विधिक संरक्षण या कि सहायता से शून्य करता है।




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एग्रीमेंट में उल्लेखित शर्तें




बोलीं महिला आयोग अध्यक्ष किरणमयी



 आप इसके विधिक पहलू पर जाएँगे तो यह विस्तृत बहस का मुद्दा बन सकता है। पर आयोग ने यह शपथ पत्र को जब पढ़ा तो यह पाया है कि, यह पुरुष को सुरक्षित करता है। वह महिला जो इसमें दूसरे पक्ष के रुप में शामिल है, यह संकेत देता है कि उसे क़ानून का ज्ञान नहीं है। एक शब्द है अनमैच्यौर, यह महिला की विधिक अनमैच्यौरटी है। यह बात बहुत स्पष्ट रुप से समझनी होगी कि, कोई भी अवैधानिक स्तर पर यदि रख ले तो आगे चलकर कोई क़ानूनी संरक्षण महिला को नहीं मिलेगा। मेरी अपील है कि यदि ऐसा कोई अभिलेख बनाकर किसी महिला को छलावे में रखा जा रहा है तो तत्काल हमारे व्हाट्सएप हेल्प लाईन नंबर पर संपर्क करें। यह नंबर है 9098382225।



क्या कहते हैं विधि विशेषज्ञ



   उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रणबीर सिंह मरहास कहते हैं



     अगर आप इस एग्रीमेंट के मजमून पर जाते हैं तो वकील का प्रथमदृष्टया दोष नही है, लेकिन पत्नी के आरोप प्रमाणित होते हैं, और यह पति का व्याभिचार प्रमाणित करता है।यह एग्रीमेंट भी तब प्रश्नांकित हो जाएगा जबकि उल्लेखित किन्ही दो पक्षाें में से  किसी एक पक्ष की ओर से आपत्ति आ जाए।



 क्रीमिनल लॉयर के रूप में ख्यातिलब्ध संजय अंबस्ट कहते हैं



   कोई पक्षकार आया और उसने जानकारी दी, यहां इस एग्रीमेंट के मसले पर दोनों पक्ष आए और कहा कि, बना दीजिए तो वकील ने बना दिया यदि यह यहीं तक है तो दोष नही है,लेकिन यह भी सही है कि, लिव इन अवधारणा ना तो भारत में प्रचलन में है ना इसे भारतीय व्यवस्था मान्यता देती है। पति ने पत्नी का तथ्य छुपाया है,यह पति के विरूद्ध अपराधिक मामले की पृष्ठभुमि तय कर देता है।यदि कोई विषय आगे चल कर आया तो यह एग्रीमेंट महिला के विधिक संरक्षण को कमजोर कर देगा।




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