RAIPUR. इस पखवाड़े ईडी ने शराब लॉबी पर शिकंजा कसना शुरू किया है। इसी पखवाड़े ही कांग्रेस संगठन प्रभारी कुमारी सैलजा ने मंत्रिमंडल के सदस्यों और मुख्यमंत्री से वन टू वन संवाद किया है, ताकि समन्वय कहां बिगड़ा है, यह बेहतर समझा जा सके और निदान कैसे निकले इसी की राह सूझे। यही वो पखवाड़ा है, जिसमें बीजेपी ने “चलो मौके पर” कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसमें सरकार के प्रमुख योजनाओं की जमीनी हकीकत दिखाई-बताई जा रही है। इसी पखवाड़े से छजकां और आप ने डोर टू डोर संपर्क को और युद्धस्तर पर गति दे दी है। यही वह पखवाड़ा है, जबकि कर्नाटक में हुए चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली है। इस चुनाव को भी छत्तीसगढ़ मॉडल का असर बताया गया है, बिलकुल वैसे ही जैसे कि हिमाचल में जीत के बाद बताने की कवायद हुई। यह अलहदा है कि जितनी तेजी से यह प्रचार हुए या कि होते हैं उतनी ही तेजी से विलुप्त भी होते हैं। जैसे ही छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा छत्तीसगढ़ में होती है, समूचा विपक्ष कम से कम प्रदेश में हमलावर हो जाता है। बल्कि इस वक्त जिन मसलों पर बीजेपी समेत विपक्ष फोकस हैं वो मुद्दे उसी जनघोषणा के ही हैं, जिनके अधूरे होने या बिल्कुल काम ना होने या फिर हवाई दावे ज़्यादा जमीनी हकीकत शून्य के करीब की बात कही जाती है।
कांग्रेस में ज्यादा है गुटबाजी
गर्मी के इस मौसम में बीजेपी और कांग्रेस दोनों में से गुटबाजी की गहरी लू से ज़्यादा प्रभावित यदि कोई है तो वह है कांग्रेस। उत्तर छत्तीसगढ़ हो या दक्षिण छत्तीसगढ़ या फिर मध्य। कांग्रेस के भीतरखाने यह बेहद सार्वजनिक है कि “मैं ही मैं हूँ दूसरा कोई नहीं” की भावना ने कांग्रेस के भीतर ही कांग्रेस खड़ी कर दी है। हालांकि यह नजारा कांग्रेस के लिए नया नहीं है। कांग्रेस सत्ता में ना रहे तो भी यह स्थिति होती है। सत्ता में रहे तो इसमें बेहद तेजी होती है। सत्ता के शीर्ष पर बैठे भूपेश बघेल ने वही किया, वही नीति अपनाई, जो स्वाभाविक रूप से कोई भी उनकी जगह होता तो अपनाता। गड़बड़ बस यह हुई है कि एक कांग्रेस के भीतर एक और कांग्रेस। इलाके के क्षत्रप को दबाने के लिए नए का उभार और समर्थन कुछ ऐसा हुआ है कि मामला कोई जगहों पर “अस्तित्व के संघर्ष” का हो गया।
मसला संगठन तक ही नहीं है, मंत्रिमंडल में ही घमासान है, क्योंकि आखिर क्षत्रपों में कुछ मंत्री भी हैं। यही मसला था कि इस बार जबकि प्रदेश कांग्रेस संगठन प्रभारी कुमारी सैलजा पहुंचीं तो मंत्रियों और सीएम के साथ वन टू वन संवाद का दौर चला। इनमें संगठन प्रमुख पीसीसी चीफ़ मरकाम से संवाद भी शामिल था। एक कांग्रेस के भीतर और कांग्रेस का मसला कैसा है, इसका जायजा कुमारी सैलजा को पिछले दौरे में ही मिल गया था। इस बार कार्यकर्ताओं ने जो बंद लिफाफों में अपना दर्द सौंपा हैं, जब वे दिल्ली में पढ़ी होंगी तो शायद उन्हें समन्वय की राह अब कितनी कठिन और पथरीली है। उन्हें आखिर क्या, कैसे और कितनी जल्दी करना है, यह समझ बनाने में भी बेहतरी लगी होगी। खबरें जो बाहर नहीं आईं, वह यह बताती हैं कि कर्नाटक चुनाव की जीत की ख़ुशी के बीच छत्तीसगढ़ में ईडी के छापे, ईडी के आरोप और उन सब पर कुमारी सैलजा को दिया फीडबैक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तक पहुंचा होगा तो वह किसी के लिए असहज और कइयों को उम्मीदों के ताजा दम कर देगा।
बीजेपी को अब भी बहुत कुछ की दरकार
फील गुड पोजिशन बीजेपी के लिए भी नहीं है। कहने का आशय यह है कि मिशन मोड से जुट जाने की कवायद अभी बहुत ऊर्जा मांग रही है। बीजेपी ने प्रदेश स्तरीय आंदोलनों के बाद अब कुछ नए प्रयोग जरुर शुरू किए हैं, जो ध्यान खींच रहे हैं। जैसे “चलो मौके पर”, इसमें बीजेपी उन जगहों पर पहुंच रही है जो सरकार की फ्लैगशिप योजनाएं हैं और जिन्हें लेकर सरकार के दावे बेहद आकर्षक होते हैं। इसकी शुरुआत इसी सोमवार से हुई है। बीजेपी के लिए यह शुरुआत बिल्कुल मनमुताबिक सी हुई। गौठान योजना को लेकर बीजेपी मीडिया को साथ लेकर गई और उसके इस कदम से कांग्रेस बौखला गई और टकराव हुआ। बीजेपी के भीतरखाने चुनौती यह भी है कि कार्यकर्ता यदि प्रदेश अध्यक्ष को नेता माने तो संगठन के भीतर से ही कुछ और इशारे होने लगते हैं। लेकिन जिस बात पर बीजेपी खुश है, वो नंद कुमार साय की विदाई है। उनके जाने से बीजेपी के भीतर आदिवासी लॉबी उत्साहित हो गई है। दिलचस्प यह है कि नंद कुमार साय के आने से कांग्रेस संगठन के भीतर आदिवासी नेताओं में कोई उत्साह है, ऐसा दिखता नहीं। साय का पूरा जीवन कांग्रेस की आलोचना करते और बीजेपी में पदों पर रहते गुजर गया, अब आख़िरी वक्त क्या ख़ाक मुसलमां होंगे, वाला जुमला राजनैतिक समीक्षकों के बीच चर्चा में है।
यहां यह भी गौरतलब है कि ईडी की कार्रवाई को भी अब बीजेपी सरकार के खिलाफ आरोप की तरह इस्तेमाल करने लगी है। जैसे संकेत हैं, उस पर भरोसा करें तो ईडी की कार्रवाई से बीजेपी को जल्द बड़ा मुद्दा मिल जाएगा। इधर, आम आदमी पार्टी और छजकां इनका महासदस्यता अभियान और डोर टू डोर संपर्क अपनी गति पर है। जातिवार गौस्वारा यदि छजका के केंद्र में है तो आम आदमी पार्टी के लिए निचली मैदानी इलाकों के साथ दक्षिण छत्तीसगढ़ में सक्रियता चकित कर रही है।