याज्ञवल्क्य मिश्रा, RAIPUR. अब से कुछ देर बाद करीब 12 बजे विधानसभा में ही कैबिनेट की बैठक होने वाली है। कई अहम प्रस्तावों को इसमें मंजूरी मिल सकती है। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा चर्चा पत्रकार सुरक्षा कानून की है, जिसे कैबिनेट में मंजूरी मिल सकती है। पत्रकार सुरक्षा कानून का बिल इसी बजट सत्र में पेश किए जाने की घोषणा सीएम बघेल कर चुके हैं।
पत्रकार सुरक्षा कानून क्या है?
पत्रकार सुरक्षा कानून, प्रदेश में पत्रकारों को सुरक्षा देने का कानून है। इसके लिए पूरे राज्य का दौरा कर के मसौदे तय किए गए थे। सीएम के मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग खुद इसकी कमान संभाले हुए थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक राज्य के अंतिम छोर पर मौजूद पत्रकारों से चर्चा विमर्श के बाद उन विषयों को चिन्हित किया गया। इससे पत्रकारों को परेशानियां होती हैं। यह बिल पत्रकारों को पत्रकारिता के लिए सुरक्षित और बेहतरी के लिए बनाया जाना बताया गया है। दावा है कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद पत्रकारों के लिए बेहतर माहौल लाया जा सकेगा।
इस बिल में IPC से सीधी टकराहट नहीं
पूरे प्रदेश के दौरे के बाद तैयार बिल के ड्राफ्ट को सचिव स्तर के अधिकारियों ने इसे अंतिम रुप दिया है। बिल में इस बात की विशेष सावधानी बरती गई है कि यह किसी तरह से ऐसे प्रावधानों को आकर्षित ना करें कि, यह उलझे। संकेत हैं कि आईपीसी से सीधी टकराहट से बचा गया।
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राज्य स्तर पर समिति का प्रस्ताव
बताया गया है कि इस बिल में गांव खेड़े में सक्रिय पत्रकार से लेकर राज्य स्तर पर सक्रिय पत्रकारों को समाहित किया गया है। लेकिन इस बिल से संरक्षण पाने वाले पत्रकार ही रहें इसके लिए कुछ मापदंड भी प्रस्तावित हैं। जैसे कि, महीने में कुल खबरें, मासिक वेतन या महीने में हासिल समाचारों से पारिश्रमिक। इन मापदंडों के साथ एक रजिस्टर (पुस्तिका) में इन पत्रकारों के नाम दर्ज होंगे। सूत्रों के अनुसार इस बिल में समिति का प्रस्ताव भी है, जिनमें पत्रकार भी शामिल होंगे या कि यह पत्रकारों की ही समिति होगी। पत्रकार तंत्र से उपजी परेशानी को लेकर अपनी शिकायत इस समिति को देगें और फिर वह तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करेगी।
छत्तीसगढ़ पहला राज्य जो ऐसा बिल ला रहा है लेकिन ..
छत्तीसगढ़ पहला राज्य होगा, जो पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बिल ला रहा है। लेकिन यह सवाल भी है कि, जो समिति बनेगी उसकी सिफारिशें कितनी शक्तिशाली होंगी। कभी ऐसा भी होता है, जबकि पत्रकार ने केवल रिपोर्टिंग की और रिपोर्टिंग की वजह से पूरी तरह फर्जी घटना रच कर उसे अभियुक्त बना दिया गया और 13 साल बाद कोर्ट ने बरी करते हुए टिप्पणी में लिखा- “यह प्रकरण अनावेदक को फंसाने के लिए गढ़ा जाना प्रतीत होता है। ऐसे मामलों में समिति की सिफारिशें कितनी शक्तिशाली होंगी, शेर भी हो लेकिन नख हीन दंत हीन हो तो अर्थ क्या ही रह जाएगा। लेकिन अंततः इस बिल में क्या है और यह कितना बेहतर प्रभावी होगा यह तब ही पता चलेगा जबकि सदन के पटल पर यह रखा जाएगा।