RAIPUR. हाथियों के हमले से सालभर के भीतर यानी 2021—22 में देशभर में 535 इंसानों की जानें गई हैं। जबकि इस अवधि में छत्तीसगढ़ में 64 को अपनी जा गंवानी पड़ी। हाथी-मानव द्वंद्व के बीच न सिर्फ इंसानों की मौत हुई है बल्कि हाथियों को भी इंसानों द्वारा अलग-अलग तरीके से मारा गया है। ये सब तब हुआ है, जब केंद्र से लेकर राज्य सरकारों द्वारा इस द्वंद्व को समाप्त करने के लिए एक से बढ़कर एक लघु और दीर्घकालिक योजनाएं हैं। लेकिन, अधिकांश कागजों तक सीमित हैं। या फिर उन पर कछुआ चाल से काम हो रहा है। वन विभाग के माध्यम से सिर्फ कार्यशाला और लोगों को जागरूक करने जैसे कदम उठाकर सरकारें इतिश्री कर ले रही हैं।
कई महत्वपूर्ण बातें और तथ्य सामने आए
दरअसल, हमने ऊपर जो आंकड़े पेश किए हैं उसे और कोई नहीं, पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में रायगढ़ सांसद गोमती साय के पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए बताए हैं। उनकी ओर से दी गई जानकारियों में कई महत्वपूर्ण बातें और तथ्य सामने आए हैं। योजनाएं तों बड़ी-बड़ी हैं, उनमें से अधिकांश को कर्नाटक समेत अन्य राज्यों में लागू किया गया है। छत्तीसगढ़ में इनका अभाव नजर आता है। आगे हम उनकी ओर से दी जानकारियों को छत्तीसगढ़ के संदर्भ में स्पष्ट करने जा रहे हैं।
पहले पढ़ें रायगढ़ सांसद गोमती साय के प्रश्न
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री यह बताएं
- .क्या सरकार देश में जंगली हाथियों के हमले से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या के प्रति जनता के गुस्से से अवगत है?
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पहले दो प्रश्नों के जवाब
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे बताया कि देश के विभिन्न भागों में हाथियों के हमले से होने वाली मानव मौतों की सूचनाएं मिली हैं। छत्तीसगढ़ और कर्नाटक सहित राज्यों से प्राप्त सूचना के अनुसार, जंगली हाथियों के हमले से हुई मानव मृत्यु और भुगतान की गई क्षतिपूर्ति का राज्य-वार ब्यौरा अनुबंध के रूप में संत्रग्न है।
ये हैं आंकड़े
छत्तीसगढ़ और कर्नाटक राज्यों से प्राप्त सूचना के अनुसार हसन लोकसभा क्षेत्र के सकलेशपुरा, अलूर, बेलूर तालुका और छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में हाथियों के हमले से हुई मानव मौतों का ब्यौरा देते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री चौबे ने बताया है कि हसन लोकसभा क्षेत्र के सकलेशपुरा, अलूर और बेलूर तालुका में साल 2021 में 15 मौतें हुई थीं, जिसमें कुल 90 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था। वहीं 2022 में सात मौतें हुईं और कुल 30 लाख 50 हजार रुपए का मुआवजा दिया गया, जबकि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में साल 2021-22 में कुल पांच मौतें हुईं और 37 लाख 50 हजार रुपए का मुआवजा दिया गया। वर्ष 2022-23 में अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें कुल 30 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया है।
द्वंद्व रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की बताई
केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने हाथी-मानव द्वंद्व रोकने और प्रबंधन की प्रारंभिक तौर पर जिम्मेदारी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की बताई। उन्होंने कहा कि राज्यों के वन विभाग, मीडिया आदि से सूचना के प्रचार-प्रसार सहित मानव-पशु संघर्ष के संबंध में आम जनता को संवेदनशील बनाने, उनका मार्गदर्शन करने और उन्हें सलाह देने के लिए जागरूकता अभियानों के माध्यम से एचईसी संबंधी मुद्दों का निराकरण करने के लिए स्थानीय लोगों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा वन विभाग, हाथियों की आवाजाही की निगरानी करने और मानव-पशु संघर्ष को टालने के लिए स्थानीय लोगों को आगाह करने और मानवों व हाथियों को होने वाली क्षति या उनके जीवन को बचाने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर पशुओं पर नजर रखने का कार्य कर रहे हैं।
स्पेशल कैंप व प्रशिक्षित पहरेदार सिर्फ कर्नाटक में
मंत्री ने बताया कि कर्नाटक राज्य से प्राप्त सूचना के अनुसार, स्थायी अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों के अलावा अस्थायी रूप से तैनात पहरेदारों को एंटी-डिप्रेडेशन कैम्प (एडीसी) और त्वरित कार्रवाई दलों के रूप में तैनात किया जाता है। वहां आरआरटी के पांच दल हैं जिनमें 20 पहरेदार तैनात किए गए हैं। वहीं एडीसी के 21 दल हैं और कुल 84 पहरेदारों को इसमें रखा गया है।
बाड़ेबंदी भी कर्नाटक में ही
वर्ष 2000 से अब तक कुल 74 जंगली हाथियों को पकड़ा गया और वनों में पुनः छोड़ा गया है। इसके अतिरिक्त, बैरीकेड और सौर बाड़ लगाने के चल रहे कार्य के अलावा कर्नाटक राज्य में मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए अब तक 9.50 किलोमीटर के रेलवे बैरीकेड और 44.0 किलोमीटर लंबी सौर बाड़ का निर्माण किया है।
रिजर्व की योजना कागजों में
मंत्री ने बताया कि हाथी संरक्षण और मानवों को उनसे बचाने के लिए कई बड़ी परियोजनाएं हैं, जिन पर काम जारी है। इसमें उन्होंने हाथियों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित करने और उनके लिए संसाधन जुटाने की बात शामिल है। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात करें तो लेमरु प्रोजेक्ट सालों से कागजों में कैद रहा तो अब काम हो भी रहा है तो बार-बार बाधाओं के चलते रुक जा रहा है। इसी तरह उन्होंने द्वंद्व रोकने के लिए पीड़ितों को मुआवजा देने, जंगल के अंदर हाथियों को रोकने के लिए चारा और पानी की व्यवस्था कराने समेत कई उपाय बताए हैं, लेकिन अधिकांश पर छत्तीसगढ़ में वही हाल है जैसा लेमरू प्रोजेक्ट का है।
हाथियों के हमले से राज्यवार मौतें व मुआवजा के लिए देखें ये सूची