छत्तीसगढ़ में माओवादी वारदात की जनवरी से ही आशंका थी, भीतरी इलाकों में पुलिस कैंपो की पहुंच से बौखलाए थे, टारगेट किलिंग भी बढ़ी थी

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Yagyawalkya Mishra
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छत्तीसगढ़ में माओवादी वारदात की जनवरी से ही आशंका थी, भीतरी इलाकों में पुलिस कैंपो की पहुंच से बौखलाए थे, टारगेट किलिंग भी बढ़ी थी

Raipur. अरनपुर में 26 अप्रैल को हुई माओवादी घटना जिसमें आईईडी ब्लास्ट के साथ वाहन को उड़ाया गया, वह घटना इस रूप में बड़ी है कि शहादत का आँकड़ा ज़्यादा है। लेकिन अगर जनवरी से लेकर अब तक की घटनाओं पर नज़र डालें तो समझ आता है कि माओवादियों की सबसे निचली इकाई याने पीएमजीए के ज़रिए नक्सली हाट-बाज़ारों में टार्गेट किलिंग कर रहे थे। यदि नारायणपुर जैसी घटनाओं को भी जोड़ दें तो घटना इस रुप में भी दर्ज है कि घर में घुसकर गोली मारकर फरार हो गए। जहां तक पुलिस के इनपुट का मसला है तो ये अंदेशा जनवरी में ही जताया गया था कि 2023 में माओवादी बड़े हमले करेंगे। बस्तर में पदस्थ आला अधिकारी ने जनवरी में चर्चा में इस सहाफ़ी से यह कहा था कि मौजूदगी दिखाने और लोगों के संगठन छोड़ जाने के माहौल को खारिज करने के लिए नक्सली बड़ी वारदात की कोशिश करेंगे।



इसके पीछे बस्तर पुलिस की वह रणनीति है, जिसके तहत सुरक्षा कैंप अंदरूनी इलाक़ों में पहुँचते जा रहे हैं, यह कैंप माओवादियों के लिए उनके कोर एरिया को क़रीब क़रीब घेर चुके हैं। लेकिन वह बड़े हमला का मौक़ा जिसकी तलाश नक्सली कर रहे हैं, ऐसा माना जाता है कि अभी बचा हुआ है। अरनपुर की घटना में नक्सलियों को समय मिला और एक अवसर भी (जो केवल संयोग से हासिल हुआ ) कारण बन गया। कैंप की रणनीति से पहले ज़रा समझिए कि अरनपुर की घटना को लेकर हम क्यों लिख रहे हैं कि, नक्सलियों को संयोग से समय और अवसर मिल गया। 



कैसे हुआ अरनपुर कांड



25 अप्रैल की शाम दंतेवाड़ा कार्ली से नहाड़ी के पास ककाड़ी के लिए डीआरजी की टीम निकली। यह इनपुट था कि वहाँ नक्सली इकट्ठा हैं।ककाड़ी,अरनपुर थाने का इलाक़ा है और अरनपुर से थोड़ा आगे जाने पर रास्ता अंदर की ओर कटता है, जो ककाड़ी पहुँचाता है। क़रीब सुबह चार पाँच बजे डीआरजी और माओवादियों के बीच फायरिंग हुई। फ़ायरिंग के बाद सर्चिंग में एक घायल नक्सली और 1 अन्य जो कि नक्सली सहयोगी बताया गया उसे लेकर वापस अरनपुर पहुँचे। डीआरजी की टीम अरनपुर दोपहर को निकली। जवानों ने एक निजी वाहन को रुकवाया और उस पर सवार होकर दंतेवाड़ा के लिए निकले।अरनपुर से  दंतेवाड़ा की ओर ठीक तीन किलोमीटर पहुँचने पर जबकि समय क़रीब 1.20 का था, ब्लास्ट हुआ और इस कदर भयावह ब्लास्ट हुआ कि कोई भी जीवित नहीं बचा।निजी वाहन के तो परखच्चे उड़े ही, चालक समेत किसी भी जवान का शव भी इस स्थिति में नहीं था कि, किसी का भी शरीर पूरी तरह विक्षत ना हुआ हो।कई जवानों के शरीर लोथड़े में तब्दील हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि आईडी में साठ किलो से उपर की क्षमता के विस्फोटक लगाए गए थे। एक साथ दस जवानों की शहादत की खबर ने पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली तक को हिला दिया।



जो शहीद हुए वो डीआरजी क्या है



डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड को डीआरजी कहा जाता है। यह एक दल है जिसमें आत्मसमर्पित नक्सली और गोपनीय सैनिक शामिल होते हैं। इसमें डीएफ़ याने ज़िला पुलिस बल भी शामिल होता है।डीआरजी में मौजूद यही आत्मसमर्पित नक्सली जब मुठभेड़ में और सूचना में सफल होते हैं तो उन्हे डीएफ याने पुलिस बल में शामिल कर लिया जाता है।उसके पहले इन्हें बेसिक प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि यह डीएफ की मदद कर सकें। आज ऐसे कई आत्मसमर्पित नक्सली इसी ज़रिए डीएफ का हिस्सा हैं बल्कि टीआई रैंक तक पहुँच चुके हैं।



नक्सलियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत हैं डीआरजी



चुंकि यह पूर्व नक्सली होते हैं इसलिए यह इलाक़े के भौगोलिक स्थिति परिवेश से मुकम्मल वाक़िफ़ होते हैं। यह ना केवल भौगोलिक परिवेश से वाक़िफ़ होते हैं बल्कि माओवादियों के मददगार और उनकी रणनीति से भी वाक़िफ़ होते हैं और इसलिए नक्सलियों को इस डीआरजी से हमेशा नुक़सान हुआ और वे इस डीआरजी को सबसे बड़ा ख़तरा मानते भी हैं और इस लिहाज से दुश्मन भी। नक्सलियों की सबसे निचली इकाई पीएलजीए अक्सर कर गाँव में इन्हीं पर या कि इनके परिजनों पर निशाना साधती है।लेकिन यह भी सही है कि, नक्सलियों की तमाम कोशिशों के बावजूद डीआरजी कमजोर क़तई नहीं हुई बल्कि और ज़्यादा ताकतवर ही हुई।अरनपुर कांड में शहीद हुए जवान डीआरजी के थे, और यह केवल संयोग से माओवादियो को मिला वह अवसर है जो उन्हें किसी बड़े कैंप पर हमले से भी ज़्यादा बेहतर महसूस करा सकता है।



क्यों यह माना जा रहा था कि नक्सली हमला करेंगे



नक्सली अपने प्रभाव क्षेत्र में सुरक्षा बलों के कैंपो के विरोधी हैं। वे इस विरोध के प्रदर्शन के लिए ग्रामीणों को आगे करते हैं। लेकिन बेहद प्रभावशाली धैर्य के साथ फ़ोर्स अंदरूनी ईलाके में कैंप लगाते जा रही है। यह कैंप चार चरणों में लगाए गए हैं।पहले चरण में यह संभाग मुख्यालय से ज़िला मुख्यालय के बीच लगाए गए, दूसरे चरण में यह ज़िला मुख्यालय से ब्लॉक मुख्यालय के बीच,तीसरे चरण में यह मुख्य सड़कों से सहायक सड़कों के बीच और चौथा चरण अभी चल रहा है जबकि यह ब्लॉक से अब गाँवों के भीतर पहुँच रहे हैं। इन कैंप के ज़रिए बस्तर पुलिस अपनी उस त्रिवेणी पर काम करती है जो आईजी सुंदरराज की थॉट प्रोसेस मानी जाती है। यह है ‘विश्वास विकास सुरक्षा’ कैंप के खुलते ही इलाक़े फ़्री होते हैं, फिर वहाँ सड़क समेत बाक़ी काम शुरु होते हैं। वे काम जिसे विकास कहा जाता है। कैंप के ज़रिए वह व्यवहार स्थापित किया जाता है जिसे विश्वास कहा जाता है, और कैंप की मौजूदगी सुरक्षा का मानक है। इस अंतिम चरण के साथ नक्सली और सिमटे हैं, और उनके प्रभाव क्षेत्र में कमी आई है, इसकी स्वीकारोक्ति माओवादियों के अभिलेखों में भी मिलती है। ज़ाहिर है ऐसे में माओवादियों को बड़े हमले की तलाश है, और इनपुट भी यही हैं। 



2021 के बाद बड़ा नुक़सान दर्ज



26 अप्रैल 2023 की घटना के पहले बड़ा नुक़सान सुरक्षा बलों को 2021 में उठाना पड़ा था। टेकलगुड़ा में सीआरपीएफ कोबरा पर माओवादियों ने हमला किया था जिसमें मौक़े पर 23 जवान शहीद हुए थे।



दस जवानों में एक डीएफ सीधी भर्ती का, शेष सरेंडर नक्सली



 जो दस जवानों की शहादत हुई है उनमें एक डीएफ की सीधी भर्ती का जवान था,जिनका नाम संतोष तामो है।शेष सरेंडर नक्सली थे, जिनमें दो जोगा सोढी और मुन्ना राम कड़ती डीआरजी  के सदस्य हुए और आउट ऑफ टर्न के साथ हेड कांस्टेबल हो चुके थे। जबकि तीन आरक्षक बनने वाले थे और तीन गोपनीय सैनिक के रुप में डीआरजी के सदस्य थे।



शहीद जवानों की तस्वीरें 



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