छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए डगर कठिन है पनघट की, लेकिन बीजेपी को धर्मांतरण और हिंदुत्व के बाद भी प्रायोजित ‘लहर’ की तलाश

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Yagyawalkya Mishra
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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए डगर कठिन है पनघट की, लेकिन बीजेपी को धर्मांतरण और हिंदुत्व के बाद भी प्रायोजित ‘लहर’ की तलाश

RAIPUR. चुनावी समर को अब ज़्यादा दिन शेष नहीं हैं। शनैः शनैः कई उलट पलट भी होने लगे हैं। अब तक अर्धचेतन सी दिख रही बीजेपी बहुत तेजी से सक्रिय है तो ‘मैन-टू-मैन’ टारगेट अंदाज के साथ आप पार्टी प्रचार प्रसार से बिल्कुल दूर मिशन मोड में काम करते दिख रही है। छजका की सक्रियता सतनाम पंथ बाहुल्य वाले विधानसभा सीटों पर विशेष फोकस है। बसपा का कैडर भी तेजी से सक्रिय हुआ है। इसके इतर बीते विधानसभा चुनाव में सारे रिकॉर्ड तोड़ 67 के आंकड़े को हासिल कर (उपचुनावों के साथ 71 का आंकड़ा) चुकी है। इसके साथ कांग्रेस के बही खाते में भयावह आपसी नाराजगी, संगठन और सत्ता में तालमेल का अभाव दिख रहा है, इससे पार्टी ‘अपूरणीय क्षति’ की अघोषित मगर तय स्थिति की ओर है। जाति के जिस कार्ड पर बंपर समर्थन मिला था, कांग्रेस उसी कार्ड में उलझने-फंसने लगी है। हाल आलम आज की तारीख में किसी और के लिए कितना शुभ है, यह भले साफ ना दिखे, लेकिन कांग्रेस के लिए ‘अशुभ’ किंतु साफ संदेश है। 



सरगुजा-बस्तर में नेता-वोटर दोनों खफा



सरगुजा और बस्तर यानी उत्तर और दक्षिण छत्तीसगढ़ में आदिवासी निर्णायक वोटर हैं। इस इलाके में विशेषकर बस्तर में आदिवासी अस्मिता मसला नहीं, बल्कि मुद्दा है। धर्मांतरण से आदिवासी की नाराजगी को उनकी परंपरा पूजा पद्धति संस्कार और संस्कृति पर सीधा हमला बताने समझाने में संघ सफल रहा है। इसलिए मसला लगातार सुलग रहा है। बस्तर इस वक्त कांग्रेसमय है, लेकिन विसंगति यह है कि ना तो कांग्रेस और ना ही उनके विधायक इस मामले में सीधे सीधे कुछ कह पा रहे हैं। आदिवासियों की नाराज़गी आरक्षण के मसले पर भी है, और इसके लिए भी उंगलियां भूपेश सरकार पर उठती हैं। आदिवासियों के बीच यह मानस स्थापित होता जा रहा है कि आरक्षण का मसौदा ही ऐसा तैयार हुआ कि कानूनी पेचीदगियों ने जगह बना ली। इसके अलावा कांग्रेस अपने ही कार्यकर्ताओं में असंतोष को थाम नहीं पा रही है। जगदलपुर में प्रियंका गांधी वाड्रा का दौरा हुआ, जबर्दस्त भीड़ उमड़ी, लेकिन भीड़ वोट में बदल जाएगी, इसकी गारंटी किसी के पास नहीं है। 



गारंटी तो यह भी नहीं है कि जैसे प्रियंका की सभा में मंच पर कांग्रेसी एक दिखे वैसे चुनाव तक बने रहेंगे। इस इलाके में आप और छजका की सक्रियता है। जबकि बीजेपी ने संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के साथ भीतर ही भीतर पुरजोर ताकत झोंकी हुई है। सरगुजा यानी उत्तर छत्तीसगढ़ में ‘सरगुजा पैलेस’ ने 2003 के अंदाज को अपना ले तो अचरज नहीं होना चाहिए। जोगी से लगातार ‘पैलेस’ के अपमान को पूरे धैर्य से झेलने के बाद चुनाव में सरगुजा पैलेस के सिपहसलारों ने 'अंतरात्मा की आवाज' पर फैसला किया और 2003 में बीजेपी ने उत्तर छत्तीसगढ़ में कब्जा हासिल कर लिया। बिला शक तब दिलीप सिंह जूदेव जैसा ‘जीवंत किंवदंती’ जैसा मिथकीय व्यक्तित्व भी था, जिसका लाभ बीजेपी को मिला था। हालांकि, इस इलाके में बीजेपी की सक्रियता प्रभावकारी नहीं है। बीजेपी को यहां किसी प्रायोजित ‘लहर’ का सहारा चाहिए।



मध्य छत्तीसगढ़ में जाति का मसला 



मध्य छत्तीसगढ़ वह इलाका है जहां के लिए पिछले चुनाव में जिस वर्ग ने वोट की झड़ी कांग्रेस के लिए लगा दी। उसी पिछड़े वर्ग में या कि कहें जाति के कार्ड में कांग्रेस फंस गई है। प्रमुख दो पिछड़ी जातियों में ज्यादा संख्या साहू वोटर की है और उसके बाद कुर्मी समाज की। सीएम भूपेश कुर्मी समाज से हैं और इसलिए वे कुर्मी कुल गौरव के रूप में स्थापित हैं। अब मसला साहू वोट को लेकर नुमायां हैं। परंपरागत रूप से साहू समाज बीजेपी का वोटर माना जाता है, लेकिन पिछड़ा वर्ग से सीएम के कांग्रेसी वादे ने इस वर्ग को भी खुशी से राजी किया कि वोट कांग्रेस को जाए। आखिर ताम्रध्वज साहू जो मौजूद थे। मध्य छत्तीसगढ़ के यही वो इलाके भी हैं जहां लगातार सांप्रदायिक टकराव की खबरें आ रही हैं। अगर यह संयोग है कि हर बार टकराव के एक सिरे पर साहू समाज होता है तो यह संयोग गजब है। चाहे कवर्धा का मसला हो या फिर बेमेतरा के साजा मसले के एक छोर पर साहू समाज रहा है। बीजेपी ने अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। हर बार बवाल बखेड़े पर बीजेपी की सक्रियता देखते बनती है। निचले मैदानी इलाके में सतनामी वोट बैंक है, जिस पर बसपा छजका पलक पांवड़े बिछाए बैठे है। 



धर्मांतरण का मसला इस सतनाम वोट क्षेत्रों में भी है। यह भी क्या गजब संयोग है कि, इन सतनाम वोट क्षेत्रों में साहू समाज भी प्रभावशाली संख्या के साथ मौजूद है। धर्मांतरण हिंदुत्व यह बीजेपी का कोर इलाका है और इसे बीजेपी बीते महीनों में साबित कर रही है। 20 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदने का जो ऐलान सीएम भूपेश ने किया है, यह उस किसान वर्ग का यह इलाका भी है। लेकिन मसला यह है कि बीस क्विंटल प्रति एकड़ की उपज वाला क्षेत्र उत्तर और दक्षिण छत्तीसगढ़ तो है ही नहीं। यह मध्य छत्तीसगढ़ भी पूरा का पूरा वैसी उपज वाला इलाका नहीं है। बेमेतरा जांजगीर, मुंगेली, दुर्ग, महासमुंद के कुछ इलाके बिलाशक बंपर धान की पैदावार करते हैं, लेकिन बस यही इलाके। मध्य छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी बसपा और छजका की गंभीर सक्रियता है।


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