BILASPUR. छत्तीसगढ़ में आरक्षण मसले पर राजभवन को अंतरिम राहत मिली है। आरक्षण मामले में राज्यपाल सचिवालय को जारी नोटिस पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। राज्य सरकार और एक अधिवक्ता ने बढ़ाए गए आरक्षण पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर नहीं करने के मामले में याचिका लगाई थी। जिस पर पूर्व में हाईकोर्ट ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी किया था। हाईकोर्ट से जारी नोटिस को चुनौती देते हुए सचिवालय ने आवेदन दिया था। हाईकोर्ट ने माना कि कोर्ट को अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है।
ऐसे समझें मामला
दरअसल, राज्यपाल द्वारा 76% आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने के मामले को लेकर सरकार और एक अधिवक्ता ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा था। इसी नोटिस के खिलाफ राज्यपाल सचिवालय ने भी हाईकोर्ट में नोटिस पर रोक लगाने का आवेदन किया था। नोटिस को चुनौती देते हुए राजभवन सचिवालय ने आवेदन पेश किया था। इस पर हाईकोर्ट ने अधिकार नहीं होने के तर्क पर अपनी सहमति जताई और अपने नोटिस पर रोक लगा दी।
आरक्षण मामले में राजभवन को जारी नोटिस पर रोक लगाने के मामले में BJP के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का बयान भी सामने आया है। राजभवन और राष्ट्रपति भवन सांविधानिक प्रमुख होते हैं। HC के जज को शपथ दिलाते हैं मंत्रियों को शपथ दिलाते हैं। आरक्षण के मामले में मिस अंडरस्टैंडिंग में नोटिस दिया गया था। इस पर रोक लगाना अच्छा निर्णय है। संवैधानिक संस्थाओं में विवाद की स्थिति निर्मित ना हो, इसलिए यह निर्णय लिया गया है।
आरक्षण विधेयक भूपेश सरकार ने पास किया
प्रदेश की भूपेश सरकार ने 76 फीसदी का आरक्षण विधानसभा से पास कर दिया है लेकिन राज्यपाल के यहां यह विधेयक लटका पड़ा है। राज्यपाल ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं जिसके बाद से हाईकोर्ट में यह याचिका लगाई गई थी। साथ ही कहा गया था कि राज्यपाल चाहें तो वे विधेयक को लौटा सकती हैं या फिर उस पर हस्ताक्षर करके उसे पास कर सकती हैं। लेकिन इस तरह उन्हे विधेयक को रोक कर रखने का अधिकार नहीं है। इसी मामले में हाईकोर्ट ने राज्यपाल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।