छत्तीसगढ़ में धर्म, संप्रदाय जाति के मुद्दे को लेकर सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल, ED-CBI छापों के पीछे क्या छिपा?

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Sushil Trivedi
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छत्तीसगढ़ में धर्म, संप्रदाय जाति के मुद्दे को लेकर सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल, ED-CBI छापों के पीछे क्या छिपा?

RAIPUR. पिछले 15 दिनों में महानदी में बहुत पानी बह गया। यह पानी बहुत तेजी से बहा। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की घटनाओं की छाया छत्तीसगढ़ पर लगातार पड़ती रही। एक ओर पूरे छत्तीसगढ़ में धर्म, संप्रदाय जाति के मुद्दे को लेकर सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल मची रही तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर सरकारी अधिकारियों, व्यवसायियों और कांग्रेस के नेताओं के घरों और दफ्तरों पर ईडी और सीबीआई के ताबड़तोड़ छापे पड़ते रहे। 



कर्नाटक का बजरंग दल बैन छत्तीसगढ़ में भी छाया रहा



कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के बाबत उल्लेख आने के बाद ही छत्तीसगढ़ भर में बजरंग दल ने ताबड़तोड़ रैलियां निकालकर प्रदर्शन करने का सिलसिला शुरू कर दिया। ये प्रदर्शन कहीं-कहीं उग्र और अनियंत्रित भी हुए। एकाएक जगह-जगह हनुमान चालीसा के पाठ का विशाल आयोजन होने लगा। इस पूरे घटना क्रम को बीजेपी का समर्थन बना रहा। इतना ही नहीं, कांग्रेस को बजरंग बली का विरोधी भी घोषित किया जाने लगा। इस आकस्मिक और उत्तेजनापूर्ण घटनाचक्र का सामना करने के लिए कांग्रेस ने भी हनुमान जी की प्रार्थना और हनुमान चालीसा के पाठ का सहारा लिया। 



कांग्रेस नेता हनुमान मंदिर में भक्ति भाव प्रदर्शित कर यह सिद्ध करते रहे कि उनका विरोध बजरंग दल की कानून और व्यवस्था विरोधी गतिविधियों से है। इसके साथ ही, कांग्रेस ने राम वन गमन पथ की योजना और अंतरराष्ट्रीय रामलीला आयोजन का प्रचार बड़े पैमाने पर फिर से करना शुरू कर दिया। ऐसे समय में कांग्रेस को एक अप्रत्याशित समर्थन विश्व हिंदू परिषद से मिला जब उसके एक शीर्ष नेता ने छत्तीसगढ़ सरकार की राम वन गमन पथ योजना की सराहना की। विश्व हिंदू परिषद के द्वारा राज्य सरकार की यह सराहना बजरंग दल और भाजपा के लिए अत्यंत असहज सिद्ध हुई। 



बेमेतरा घटना ने भी सरकार को घेरने का मौका दिया



बीजेपी ने बेमेतरा जिले में हुई एक हत्या और उसके बाद भी कुछ और हत्याएं और आगजनी की घटनाओं को लगातार सरकार को घेरने के लिए आधार बनाए रखा। भाजपा के वरिष्ठ नेता पीड़ित साहू परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करने का कार्यक्रम करते रहे। बीजेपी इस घटना के द्वारा पिछड़े वर्ग के प्रति सरकार की तथाकथित उदासीनता और एक धर्म विशेष के प्रति अप्रत्यक्ष सहानुभूति को मुद्दा बनाती रही। कांग्रेस के लिए हत्या का मामला यह घटना एक दुखता हुआ मामला बना रहा। वह इस पूरी घटना को राजनीति तथा साम्प्रदायिकता से दूर रखकर, कानून और व्यवस्था के रूप में संभालने की कोशिश करती रही।

 

कोयला, चावल भी मुद्दा बने



पहले कोयले के परिवहन के मामले में अवैध उगाही को लेकर ईडी और सीबीआई ने पिछले माह में कार्रवाई की थी और अब इस माह शराब के मामले में कहीं बड़े पैमाने पर अधिकारियों, व्यवसायियों और कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध कार्रवाई की गई। इन केंद्रीय एजेंसियों ने अपनी कार्रवाई में यह संकेत दिया कि राज्य में अवैध काम-काज राजनीतिक संरक्षण में हुआ है। इस बिंदु पर कांग्रेस ने बहुत विरोध प्रदर्शन किया और एजेंसियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने का संदेश दिया है। यह सब चल ही रहा था कि केंद्र सरकार ने राज्य में चावल के स्टॉक में हेराफेरी किए जाने की शिकायत की जांच के लिए एक केंद्रीय दल भी भेज दिया। अब इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच जबानी जंग शुरू हो गई है। यह स्पष्ट है कि भाजपा अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विरुद्ध प्रचार के लिए भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बना रही है।



साय के जाने से बीजेपी बैकफुट पर



इस बीच बीजेपी को तब एक बड़ा राजनीति धक्का लगा जब उसके एक वरिष्ठतम नेता नंद कुमार साय ने भाजपा को छोड़कर एकाएक कांग्रेस का दामन थाम लिया। साय राज्य के बड़े आदिवासी नेता भी हैं, जो भाजपा के शीर्ष के संगठनात्मक पदों पर रहने के साथ ही कुछ समय पहले तक भारत सरकार के केंद्रीय अदिवासी आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। भाजपा ने साय को कांग्रेस में जाने से रोकने की बड़ी कोशिश की किंतु वह सफल नहीं हुई। साय के भाजपा छोड़ने से यह संदेश गया कि पार्टी में बुजुर्ग नेताओं की पूछपरख अब नहीं है। इतना ही नहीं, इससे यह धारणा बनी कि भाजपा को राज्य में आदिवासी हित की ज्यादा परवाह नहीं है। यह बात अलग है कि साय के भाजपा छोड़ने से उत्तर छत्तीसगढ़ में भाजपा को कोई प्रभावी चुनावी क्षति नहीं होगी। बहरहाल, यह संकेत मिल रहे हैं कि कुछ और असंतुष्ट तथा टिकिट से वंचित हो सकने वाले बीजेपी नेता पार्टी छोड़ सकते हैं। 



इस समय राज्य में आदिवासी और धर्मांतरित आदिवासी वर्ग के बीच सामाजिक व्यवहार को लेकर तनाव की स्थिति बनी हुई है। यह स्थिति अब और भी जटिल हो गई है, क्योंकि राज्य में धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण न देने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया गया है। इससे यह धारणा बनी है कि अब आदिवासी वोट एक-जुट नहीं रहेंगे। 



सर्व आदिवासी समाज, आप की भी चुनौती



कांग्रेस के एक भूतपूर्व वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम ने कुछ समय पहले सर्व आदिवासी समाज के नाम से एक राजनीतिक संगठन बनाया है। इस संगठन ने बस्तर में एक उपचुनाव में भाग लेकर उल्लेखनीय संख्या में वोट भी पाये थे। अरविंद नेताम कुछ समय तक बीजेपी में भी रहे है। अब उन्होंने एक बड़ी घोषणा की है कि सर्व आदिवासी समाज आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। इतना ही नहीं, वह उन 21 और भी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेगा, जहां आदिवासी पर्याप्त संख्या में हैं। नेताम ने राज्य के अन्य छोटे दलों के साथ गठजोड़ करने की इच्छा भी जाहिर की है। नेताम के इस कदम की चर्चा पहले से ही राजनीति हल्कों में पहले से ही थी। उनका गठबंधन कोई बड़ी चुनावी सफलता की उम्मीद नहीं कर सकता किंतु भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही कुछ परेशानी का कारण बन सकता है।



इधर आम आदमी पार्टी लगातार अपने संगठन को मजबूत करने में लगी हुई है। आम आदमी पार्टी के केंद्रीय संगठन के कुछ और नेता छत्तीसगढ़ आ गए है। ये नेता राज्य में जगह-जगह बैठकें कर लोगों को पंजाब राज्य की तरह शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने की बात कर रहे हैं। एक दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर प्रचार अभियान चलाना चाहती है। 



फिलहाल कांग्रेस को लीड



कांग्रेस ने कर्नाटक के चुनाव प्रचार में छत्तीसगढ़ की किसान हित की योजनाओं को प्रमुखता दी थी। कर्नाटक में उल्लेखनीय विजय से छत्तीसगढ़ कांग्रेस को बहुत सुखद संदेश मिला है। कांग्रेस को यह विश्वास है कि कर्नाटक में हिंदुत्व का कार्ड ना चलने और पुराने जातीय मतदान के स्वरूप के बदलने से विकास का मुद्दा चुनाव में ज्यादा प्रभावी होगा। उसकी किसान न्याय योजनाओं और भरोसे के काम का कोई तोड़ बीजेपी के पास अभी नहीं है। 



स्थिति यह है कि राज्य में अब भी कांग्रेस की जीत के आसार ज्यादा नजर आ रहे हैं। 10 पॉइंट्स के स्केल में कांग्रेस 5.25 और बीजेपी 4.75 अंकों पर नजर आ रही हैं।

 


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