चूहे भी कमजोर, ये क्या हुआ छोड़ो ये ना सोचो, एयरपोर्ट मसले पर बीजेपी नाराज़ क्यों?

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Yagyawalkya Mishra
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चूहे भी कमजोर, ये क्या हुआ छोड़ो ये ना सोचो, एयरपोर्ट मसले पर बीजेपी नाराज़ क्यों?



 















हमारे तो चुहे भी कमजोर हो गए हैं.. और इधर





भारतीय मौज ना ले तो भला भारतीय कैसा, अब देखिए ईडी की कार्रवाई जारी है। आबकारी याने शराब में गड़बड़ी मामले में ईडी ने 2000 करोड़ के घोटाले का दावा करते हुए अनवर ढेबर को गिरफ़्तार किया। जो संकेत हैं उसके अनुसार अब धर पकड़ और तेज होगी। लेकिन पहले कोयला घोटाला और अब आबकारी में हज़ारों करोड़ों के घोटाले की खबरों के बीच राजीव भवन में अक्सर दिखने वाले एक कांग्रेसी ने दुख जिन शब्दों में व्यक्त किया वो अद्भुत था। दुख कहिए या मौज पर उस वरिष्ठ कांग्रेसी ने कहा



“हमारा क्या बताएँ,हमारे घर के तो चुहे भी कुपोषित हो रहे हैं, बेहद कमजोर हो गए हैं, और इधर हज़ार करोड़ पार!”





ग़ज़ब का खेल आबकारी में.. शराबी क्यों दुखी





आबकारी विभाग में जो खेल हुआ है, याने कि जैसा ईडी कह रही है, वह चकित करता है। आबकारी के आला अधिकारियों से लेकर सेल्स मेन तक सब नदिया में डुबकी लगा रहे थे।डुप्लीकेट होलोग्राम के ज़रिए सरकार के ख़ज़ाने को सीधी चपत लगी। ईडी की प्रेस रिलीज़ में किसी राजनीतिक आका का ज़िक्र है,आने वाले समय में जबकि चुनाव और क़रीब होंगे तो शायद नाम अधिकृत रुप से सामने आए।बहरहाल इस लंबे लिफ़ाफ़े के खुलने से कुछ शराबी दुखी हैं। सहाफ़ी ने पूछा भई आपको क्या दुख, तो जवाब आया - हम तो सोच रहे थे कि, सरकार के ख़ज़ाने में हमारा नियमित योगदान है..बहुते गड़बड़ हो गया।





ये क्या हुआ.. छोड़ो ये ना सोचो





उत्तर छत्तीसगढ़ के एक सर्किट हाउस में हुए एक संवाद की खासी चर्चा है। मसला एक दबंग नेत्री और महिला अधिकारी के बीच का है। किसी कार्यक्रम में अवहेलना और किसी और कार्यक्रम में प्रशासन की रोक टोक की शिकायत से दबंग महिला नेत्री का ग़ुस्सा टॉप पर चला गया। भिड़ंत महिला अफ़सर से हो गई। बेहद नाराज और बिफरी महिला नेत्री ने दो टूक अंदाज में कहा 



“सुनोऽऽऽऽऽ…मैं फ़लाँ टाइप की फ़लाँ हूँ मुझे जानती नहीं हो.. पता करवा लेना समझी”



 बताते हैं कि फ़ायर ब्रांड धूम धड़ाम की सियासत की वजह से चर्चाओं में रहने वाली महिला नेत्री के तेवर देख देर तक सन्नाटा पसरा रहा।





सायजी का मसला,ये दुखी क्यों वो ख़ुश क्यों





नंद कुमार साय जी कांग्रेस के हो गए हैं, हालाँकि भूपेश सरकार के आते ही वे हर मुमकिन मौक़े पर तारीफ़ भरपूर करते ही थे। अब औपचारिक रुप से भूपेश भैया याने कांग्रेस के हो गए हैं। लेकिन मसला थोड़ा अजीब सा हो गया है। खबरें हैं कि कांग्रेस के भीतरखाने ख़ासकर आदिवासी नेताओं में कोई उत्साह नहीं है लेकिन उत्साह दिखाया जा रहा है। इधर बीजेपी के भीतर कोई दुख नहीं है लेकिन दुख जताया जा रहा है। पता नहीं इन खबरों में सच कितना है और सच है तो वजह क्या है ?





इन आईपीएस साहब को दान पुण्य ज़कात करना चाहिए





क़िस्से बाजों का भी जवाब नहीं है।ईडी जब इधर उधर फिरती है धर पकड़ करती है तो एक आईपीएस साहब का ज़िक्र चले आता है। हालिया दिनों जो शराब लॉबी पर शिकंजा कसा तो क़िस्से बाज फिर शुरु हो गए, कि परेशान हैं हलाकान हैं। कोयला घोटाला और अवैध वसूली मामले में जब कार्यवाही हुई तब भी इन साहब की चर्चा की इसी अंदाज में हुई। ये आईपीएस साहब को दान धर्म ज़कात करना चाहिए। क़िस्सेबाजों की बातें कहीं सही ना निकल जाएँ।





बिरनपुर मसला, राज्यपाल से मिलेगा साहू परिवार





बिरनपुर मसला थमता नहीं दिख रहा है। थमेगा भी कैसे सियासत भी तो कुछ है कि नहीं।समाज की सामाजिक बैठकों का दौर जारी है।इस बीच खबर है कि भुनेश्वर साहू के पिता समाज के प्रतिनिधियों के साथ राज्यपाल से मिलने की कोशिशों में है।अंग्रेज़ी में अपेक्षाकृत सहज राज्यपाल जी के लिए विषय समझना कठिन नहीं होगा।





शौक-ए-दीदार है तो नज़र पैदा कर





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सीएम प्रशासनिक मुखिया हैं, ज़ाहिर है अभिभावक भी हैं। अधिकारी उनके चरण छुएँ और चरणों के पास बैठ जाएँ ये स्नेह स्वाभाविक है। इसमें ग़लत कैसा है। अंबिकापुर एयरपोर्ट पर सीएम भूपेश पहुँचे तो चरण स्पर्श के बाद अधिकारी चरणों के पास बैठ गए। यादगार तस्वीर खींच गई। पर राजनीति का क्या कहिएगा, विपक्षी नेता सवाल उठा रहे हैं।





अंबिकापुर एयरपोर्ट में ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी नाराज़ हो गई





हालिया दिनों सीएम भूपेश अंबिकापुर एयरपोर्ट पहुँचे। पहले बताया गया कि एयरपोर्ट टर्मिनल और एटीसी टर्मिनल का लोकार्पण करेंगे। पर पता चला कि सीएम साहब रनवे देख एयरपोर्ट की प्रगति देख लौट गए।लेकिन इतने पर ही बीजेपी ख़फ़ा हो गई है। ख़फ़ा होना बनता भी है। जहाज़ का उतरना,एयरपोर्ट की स्वीकृति, कहाँ कहाँ को जहाज़ उड़ेगा यह सब केंद्र सरकार का मसला है। कार्यक्रम के लिए किसी ने बीजेपी को पूछा ही नहीं। बीजेपी को लगा कि ये तो ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता “ठाकुर का कुँआ” का मसला हो रहा है।बताते हैं सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह जी कुपित हुई हैं और फ़ोन उपर तक खड़का दिया है।अब लायसेंस अटक जाए या सुरक्षा मानक में चूक की रिपोर्ट आ जाए तो कैसे होगा।प्रशासन को बैलेंस करना चाहिए था मसला।





सुनो भई साधो







1- राज्य प्रशासनिक सेवा का वह कौन अधिकारी हैं जो केंद्रीय एजेंसियों की धमक के बीच पुरज़ोर पूजापाठ कर रहे हैं करा रहे हैं, बताते हैं ईश्वर प्रसन्न हैं इसलिए संकट से बचे हुए हैं।





2- यह क्यों कह रहे हैं कि कर्नाटक चुनाव में यदि बीजेपी हार गई तो ईडी की कार्रवाई भरपूर तेज होगी और जीत गई तो तेज़ी का रिकॉर्ड टूट जाएगा ?



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