छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणियों की मौत बनी चिंता का विषय, चौंके पर्यावरण विद् और वन्य प्रेमी, कहा- जंगल को खत्म होने से रोकना होगा

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छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणियों की मौत बनी चिंता का विषय, चौंके पर्यावरण विद् और वन्य प्रेमी, कहा- जंगल को खत्म होने से रोकना होगा



Raipur. छत्तीसगढ़ में वन्य पशुओं की मौत चिंता का विषय बनती जा रही है। इसमें बाघों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। यह मुद्दा छत्तीसगढ़ के विधानसभा में भी उठाया गया है। जिसके बाद छत्तीसगढ़ के पर्यावरण विद् और वन्य प्रेमी चौंक गए हैं। दरअसल प्रदेश के विधानसभा में 19 बाघों पर सरकार ने जो करोड़ों रुपए खर्च किए हैं उसमें विपक्ष लगातार भूपेश सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। जिसके बाद मु्द्दे पर राजनीति गरमाई हुई है। लेकिन इसी बीच सोचने वाली बात तो ये कि राज्य में वन्य प्राणियों की मौत आखिर क्यों हो रही है? 







बाघों की मौत का आंकड़ा





वहीं अगर बात बाघों की मौत को लेकर करें तो मीडिया रिपोर्ट और NTCA से प्राप्त जानकारी के अनुसार साल 2006 से नेचुरल डेथ और शिकार के कुल 36 बाघों की मौत होने के मामलों की जानकारी मिली है। जिसमें 10 मौतें कांग्रेस के शासन में आने के बाद यानी दिसंबर 2018 बाद हुई हैं। इन आंकड़ों में बाघ की खाल, शरीर के अंग को मिलने और तस्करी करने के आंकड़े को भी शामिल किया गया है। जिन्हे मौतें मानी गई हैं। विषेशज्ञों के अनुसार इन्हे मौत मानी भी जानी चाहिए।







नेचुरल डेथ और क्राइम से जुड़े मामले





मिली जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में साल 2018-19 में शिकार (क्राइम से जुड़े मामले) के 52 मामले सामने आए हैं। जिसमें संभागवार कांकेर में 5, बिलासपुर में 16, रायपुर में 13, दुर्ग में 10, सरगुजा में 7, सुकमा-जगदलपुर में 1 मामले सामने आएं हैं। इसी तरह साल 2020 से 31 मई 21 तक 70 मामले सामने आए हैं। जिसमें संभागवार कांकेर में 4, बिलासपुर- 22, रायपुर- 20, सरगुजा- 16 और दुर्ग में 9 मामले सामने आए हैं। वहीं साल 2022 के अक्टूबर तक इन मामलों में कमी आई और 13 मामले देखने को मिले हैं। इसमें  अगर बात नेचुरल डेथ की की जाए तो 16 जनवरी 2020 से 21 मई 2021 तक 235 से ज्यादा वन्य प्राणियों की मौत हुई है। 1 जनवरी 2022 से लेकर 1 अक्टूबर तक 80 से ज्यादा मौत देखने को मिली है।





'शिकार होने पर वन विभाग करे कड़ी कार्रवाई'







वन्य प्राणी प्रेमी नितिन सिंघवी का कहना है कि गर्मी में पानी की खोज में सभी जानवर जंगल से बाहर निकलते हैं। जब जंगल में पानी कम होने के कारण जानवर भटक जाते हैं। जिससे शिकार होने की संख्या बढ़ जाती है। वहीं शिकार को दर्ज नहीं किया जाता है। विशेष रूप से शहर से जुडे अभ्यारण्य इलाकों में ज्यादा होता है। तेंदुआ और बाघ की खाल पकड़ाना अपने आप में ही एक प्रमाण है कि हमारे यहां शिकार बढ़ रहा है तो शिकार की घटनाओं के लिए वन विभाग को व्यापक रूप से कार्रवाई करनी चाहिए।







जंगल खत्म होने के कारण रहवासी इलाकों में आ रहे जानवर





पर्यावरण विद् आलोक शुक्ला का कहना है कि छत्तीसगढ़ में जो वन्यप्राणियों के रहवास के इलाके हैं उसमे लगातार खनन परियोजना और अन्य निर्माण कार्यों के कारण जो वन्य प्राणी है वो आबादी क्षेत्रों की तरफ आ जा रहे हैं। इससे इंसानों के साथ संघर्ष की स्थिति लगातार बढ़ रही है। इस संघर्ष में वन्यप्राणी और इंसान दोनों ही मारे जा रहे हैं। हम हाथी का उदाहरण ही ले लें तो 55 के आस पास हाथी मारे गए और 200 के करीब इंसान भी मारे गए हैं। लेकिन उसके बाद भी हम देख रहे है की कहीं पर भी प्राकृतिक  रहवास के  इलाके और वन्य प्राणी के इलाकों को डेवलप करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।  







कार्पोरेट्स और भ्रष्टाचार के लिए खत्म कर रहे जंगल- शुक्ला





आलोक शुक्ला का कहना है कि जंगल के इलाकों को कुछ कार्पोरेट्स के मुनाफे और भ्रष्टाचार के लिए खत्म किया जा रहा है। उदाहरण के लिए हमारे पास हसदेव है। भारतीय वन्य संस्थान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हसदेव में किसी भी प्रकार के खनन परियोजना की परमिशन दी गई तो मानव हाथी संघर्ष इतना व्यापक हो जाएगा आप कभी सम्भाल नहीं पाएंगे। बावजूद उस रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए उस खनन परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है और पेड़ काटे जा रहे हैं। हसदेव जैसे इलाकों को खनन मुक्त नहीं रखा, तो उनकी संरक्षित करने की दिशा में प्रयास नहीं किया तो तमाम योजनाओं पर करोड़ों रुपए लगाने का कोई अवचित्त नहीं हैं। वन्य प्राणियो की मौत और इंसानों के साथ संघर्ष की स्थिति आने वाले समय में बढ़ती रहेगी।







 



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