Raipur,18 अप्रैल 2022। बहु आयामी उद्देश्यों के साथ बीते 15 फ़रवरी से शुरु हुए डिजिटल सदस्यता अभियान में क़रीब 31 विधानसभाओं में नतीजे निराशाजनक आने से दिल्ली की भृकुटी टेढ़ी हो गई है। जिन्हाेने इस अभियान में शानदार काम किया है, वे शाबाशी के साथ अहम जवाबदेही भी हासिल कर सकते है,लेकिन खतरा उन्हे है जिन्होने बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया है। संकेत हैं कि इन विधानसभा क्षेत्रों में डिजिटल सदस्यता अभियान के जवाबदेहों से ना सिर्फ़ सवाल जवाब होंगे बल्कि कार्यवाही भी हो सकती है।
क्या थी डिजिटल सदस्यता
डिजिटल सदस्यता अभियान की कमान सीधे 24 अकबर रोड याने कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यालय के पास थी, कांग्रेस के डाटा सेंटर में क़रीब पाँच सौ लोग लगातार इस काम में जुटे हुए थे।इसके तहत विधानसभा वार मतदान केंद्र स्तर तक कार्यकर्ताओं का चिन्हांकन होना था। एंड्राइड मोबाईल पर कांग्रेस पार्टी मेंबर शीप एप था जिसमें नाम मोबाइल नंबर और एपिक नंबर के साथ सेल्फ़ी लेकर भेजा जाता था, जिसके बाद ओटीपी आता था, उसके भरते ही कांग्रेस की तुरंत सदस्यता हो जाती।इसमें यह क़वायद इसलिए भी थी ताकि फर्जीवाड़े की आशंकाओं को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाए।कांग्रेस ने भाजपा के मिस कॉल से सदस्यता बनाओ अभियान की तरह कोई गफ़लत गड़बड़ी ना हो इसलिए व्यापक क्रॉस चेक की व्यवस्था रखी थी। इस डिजिटल मेंबऱशीप से हर मतदान केंद्र में मौजूद कार्यकर्ता की जानकारी सीधे डाटा सेंटर में दर्ज हो गई।इस अभियान से बूथ स्तर तक कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यालय ने सीधे संपर्क संवाद के साथ साथ उन्हें सक्रिय करने की व्यवस्था रख ली।
किन पर थी जवाबदेही
हर प्रदेश में कॉआर्डिनेटर या कि प्रदेश में डिजिटल सदस्यता अभियान के प्रभारी बनाए गए। छत्तीसगढ़ में इसकी कमान अमरजीत चावला के पास थी। राजीव भवन में कंट्रोल रुम बनाया गया जहां 11 लोकसभा क्षेत्र के लिए 11 पदाधिकारी थे जो रोज़ाना संसदीय क्षेत्र की विधानसभाओं में जवाबदेह व्यक्तियों से संवाद करते थे। विधानसभा स्तर पर ज़िला और विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख लोगों को जिनमें ज़िलाध्यक्ष विधायक मेयर ज़िला पंचायत अध्यक्ष भी शामिल थे उन्हें चीफ़ इनरोलर्स बनाया गया, इन चीफ़ इनरोलर्स ने इनरोलर्स बनाए,और इस क्रम में डिजीटल सदस्यता अभियान को क्रियान्वित किया गया।ये लोग डिजिटल सदस्यता अभियान में जितने गंभीर थे वो एप के ज़रिए स्पष्ट रुप से दिल्ली तक सीधे पहुँचता रहा। जिससे यह स्पष्ट हो गया कि कितने बड़े नाम है जिसने मेहनत नहीं की और उनके भी नाम पहुँच गए जिन्होंने मेहनत की।
लक्ष्य था प्रति विधानसभा 10 हज़ार लेकिन
इस अभियान के लिए प्रति विधानसभा दस हज़ार का लक्ष्य रखा गया था लेकिन 90 विधानसभा में से 31 विधानसभाओं में 8000 का आँकड़ा बमुश्किल हासिल हुआ। इनमें चर्चित विधायक बृहस्पति सिंह का क्षेत्र रामानुजगंज भी है जहां केवल 937 सदस्य बने।वैसे ही मनेंद्रगढ़ विधानसभा हैं जो विधायक विनय जायसवाल का क्षेत्र है जहां 1309 सदस्य बने।क़द्दावर मंत्री रविंद्र चौबे के विधानसभा क्षेत्र में केवल 2523 सदस्य बने हैं।
आँकड़ा ये भी है
ऐसी विधानसभा जिन्होंने तीस हज़ार से उपर डिजिटल सदस्य के आँकड़े हासिल किए उनकी संख्या 31 है। उसमें भी टॉप पर भाटापारा विधानसभा है जहां 45879 सदस्य बनाए गए, जबकि स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव का विधानसभा क्षेत्र 45821 सदस्यता के साथ अंबिकापुर प्रदेश में दूसरे स्थान पर है।कोंडागांव विधानसभा जहां से पीसीसी चीफ़ मोहन मरकाम विधायक हैं वहाँ 36316 सदस्य बने जबकि पाटन में जहां से मुख्यमंत्री बघेल विधायक है वहाँ 34976 सदस्य बने हैं। कोरबा जहां जय सिंह अग्रवाल विधायक हैं वहाँ 32950 सदस्य हैं। विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत के क्षेत्र जांजगीर चाँपा में यह आँकड़ा 34022 दर्ज है।मंत्री शिव डहरिया के विधानसभा क्षेत्र में आँकड़ा 32738 है।