JAGDALPUR. ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का समापन हो गया है। 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में शामिल होकर आराध्य देवी मां दंतेश्वरी और मां मावली लौट गई हैं। माता की डोली और छत्र को बस्तर राज परिवार समेत दशहरा समिति के सदस्यों ने विदाई दे दी है। इसके साथ ही दशहरा पर्व का समापन भी हो गया है। बताया जा रहा है कि देर रात माता की डोली और छत्र का दंतेवाड़ा में आगमन हुआ। बता दें कि 28 जुलाई से यह उत्सव शुरू हुआ था।
75 दिन तक चलने वाला उत्सव खत्म
जानकारी के अनुसार 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में माता शामिल हुईं थीं और उन्हें सम्मान विदाई दे दी गई हैं। जगदलपुर के मां दंतेश्वरी मंदिर परिसर से जिया डेरा तक डोली और छत्र को लाया गया। इसके बाद जिया बाबा को सम्मान सौंपा गया है। अब यहां से माता रानी दंतेवाड़ा जाएंगी। (12 अक्टूबर) आज ही बस्तर दशहरा का विधिवत समापन हुआ है। बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
इधर, बस्तर सांसद और दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि हर साल की तरह इस साल भी बड़े धूमधाम से दशहरा का पर्व मनाया गया। दूरदराज से लोग बस्तर दशहरा की भव्यता देखने के लिए पहुंचे थे। मावली परघाव की रस्म से लेकर भीतर और बाहर रैनी की रस्मों को लोगों ने बेहद करीब से देखा। उन्होंने कहा कि मां दंतेश्वरी का आशीर्वाद बस्तर वासियों पर सदैव बना रहे।
सड़कों पर फूलों से सजावट, जवानों ने दी सलामी
जानकारी के अनुसार जिन-जिन जगहों से माता की डोली और छत्र को दंतेश्वरी मंदिर से जिया डेरा तक लाया गया। वहां की सड़कों को फूलों से सजाया गया था। इसके साथ ही जवानों ने हर्ष फायर कर सलामी भी दी। इस मौके पर शहर के सैकड़ों लोग मौजूद थे। दर्शन करने भक्तों का हुजूम उमड़ा। शारदीय नवरात्र की पंचमी को राजा ने माता को दशहरा में शामिल होने आमंत्रण दिया था। वहीं अष्टमी को माता जगदलपुर पहुंचीं थीं।