Raipur. शराब घोटाले की जाँच कर रही ईडी को रायपुर स्पेशल कोर्ट ने अनवर ढेबर समेत चार अभियुक्तों की चार दिन की रिमांड दे दी है। ईडी ने कोर्ट में अनवर ढेबर, नितेश पुरोहित, त्रिलोक सिंह ढिल्लों और अरुण पति त्रिपाठी को पेश किया था। ईडी ने कोर्ट में दलील दी कि, इन सभी अभियुक्तों से आरोप के संबंध में अभिलेखों के साथ पूछताछ किया जाना शेष है।ईडी ने बताया है कि, अनवर ढेबर समेत कुछ के मोबाईल के डाटा को लेकर भी पूछताछ की जानी है।कोर्ट में नितेश पुरोहित के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एम्स की रिपोर्ट भी ईडी ने जमा की साथ ही मेकाहारा से मनोचिकित्सक भी कोर्ट में पेश हुए।
कोर्ट में ये कहा ईडी ने
कोर्ट में ईडी ने बताया कि, बीते सात मई, दस मई और बारह मई को ईडी ने कई जगहों पर सर्च ऑपरेशन चलाया है।इस सर्च ऑपरेशन में कई अभिलेखों को बरामद किया गया। उन अभिलेखों का इन अभियुक्तों से आमना सामना और व्यापक पूछताछ बची हुई है। ईडी ने कोर्ट में कहा अनवर और पुरोहित के मोबाइल के डाटा रिकवर किए गए हैं डाटा का एनेलिसिस कर के इस संबंध में अभियुक्तों से पूछताछ बची है।ईडी के अधिवक्ता डॉ सौरभ पांडेय ने बताया
“सेक्शन 50 में ईडी को कई लोगों के कथन मिले हैं। सेक्शन 50 में यह अवसर दिया जाता है कि ये जो अभिलेख हैं ये जो कथन हैं उससे मनी लॉंड्रिंग प्रतीत होता है, वे अपना पक्ष बताएँ कि, उनका क्या कहना है। चैट से लेकर अभिलेख बहुत कुछ है जिस पर रिमांड चाहिए थी।कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क सुनें और हमें चार दिनों की रिमांड दी है।”
नितेश पुरोहित की मेडिकल रिपोर्ट पेश
ईडी की हिरासत में मौजूद नितेश पुरोहित को लेकर बचाव पक्ष का दावा था कि, यह सिजोफ्रेनिक है। नितेश पुरोहित की ओर से 328 और 329 के तहत आवेदन पेश किया गया था। यह आवेदन तब पेश किया जाता है जबकि यह बताया जाए कि कोई व्यक्ति न्यायालय की कार्यवाही को समझ पाने में सक्षम नहीं है तो न्यायालय सिविल सर्जन को बुलाकर मेडिकल परीक्षण करा कर उनकी रिपोर्ट लेते हैं।दस मई को जब नितेश पुरोहित गिरफ़्तार किए गए थे तब एम्स के डॉक्टर द्वारा जाँच की गई थी, उनकी रिपोर्ट कोर्ट में जमा कर दी गई थी। उसके बाद अदालत ने सिविल सर्जन को पत्र भेज कर रिपोर्ट तलब की। इस पर शासकीय चिकित्सक उपस्थित हुए। एम्स और शासकीय चिकित्सक की रिपोर्ट नितेश पुरोहित के दावे को समर्थन देने वाली नहीं पाई गई हैं।
क्या है शराब घोटाला
ईडी के अनुसार छत्तीसगढ़ का शराब घोटाला अभूतपूर्व भ्रष्टाचार है। इसमें राज्य की मशीनरी का दुरूपयोग कर के राज्य के ख़ज़ाने को ही चपत लगा दी गई। ईडी के अनुसार डिस्टलरी से शराब निकलती थी और राज्य द्वारा संचालित 800 शराब दुकानों में पहुँचती थी, लेकिन तीन वर्षों तक इन दुकानों से क़रीब तीस से चालीस फ़ीसदी ऐसी बिक्री हुई जिसका कोई हिसाब किताब राज्य के अभिलेखों में दर्ज नहीं हुआ। राज्य के ख़ज़ाने को प्रारंभिक तौर पर क़रीब दो हज़ार करोड़ रुपए की चपत लगी। इस पैसे में “राजनैतिक आका” का सबसे ज़्यादा शेयर था। अनवर ढेबर जो कि कथित रुप से इस सिंडिकेट को संचालित करते थे उनका एक निश्चित प्रतिशत बंधा हुआ था।