सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल ने आरक्षण संशोधन विधेयक पर छत्तीसगढ़ सरकार का रखा पक्ष, राज्यपाल सचिवालय को हाईकोर्ट का नोटिस

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The Sootr CG
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सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल ने आरक्षण संशोधन विधेयक पर छत्तीसगढ़ सरकार का रखा पक्ष, राज्यपाल सचिवालय को हाईकोर्ट का नोटिस

BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 6 फरवरी, सोमवार को एक महत्वपूर्ण मामले सुनवाई हुई है, जिसमें राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पैरवी की। इस दौरान उन्होंने कहा कि राज्यपाल को आरक्षण संशोधन विधेयक समेत किसी भी विधेयक को इस तरह रोकने का अधिकार नहीं है। वहीं हाईकोर्ट ने इस पर राज्यपाल के सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।



दो अलग-अलग याचिकाएं हुई है दायर



आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने आरक्षण विधेयक को लेकर दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। 6 फरवरी, सोमवार को दोनों ही मामलों में जस्टिस रजनी दुबे ने एक साथ सुनवाई की। दरअसल, राज्य सरकार द्वारा तय किए गए आरक्षण के मुद्दे पर एक याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और हाईकोर्ट के अधिवक्ता के साथ ही राज्य सरकार ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें एक खास बात ये रही कि छत्तीसगढ़ शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा। इसमें उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर किसी विधेयक को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद जवाब के लिए कोर्ट ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर दिया, जिसमें उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए कहा गया है। अब जब अगले सप्ताह सुनवाई होगी, तब राज्यपाल सचिवालय की ओर से जो जवाब मिलेगा उसके अनुसार सुनवाई की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।



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सिब्बल ने दिए ये तर्क



हाईकोर्ट में राज्य सरकार की पैरवी करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ अपनी सहमति या असहमति व्यक्त कर सकते हैं। बिना किसी ठोस वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता या राजभवन में लंबित नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है।



वकील हिमांक ने उठाया है संवैधानिक मुद्दा



दूसरी ओर, सामाजिक कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सीनियर वकील हिमांक सलुजा ने भी इस मुद्दे पर एक याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने सीधे तौर पर कहा है कि विधानसभा से पारित विधेयक को रोकने का राज्यपाल को संवैधानिक अधिकार नहीं है, उनके मामले को भी कोर्ट ने साथ-साथ रखते हुए जवाब मांग लिया है। 



ये है मामला



आपको बता दें कि राज्य सरकार ने पिछले दिनों विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। इसमें राज्य में विभिन्न वर्गों के आरक्षण को बढ़ाते हुए नया संशोधित विधेयक पेश किया गया। सदन में पास होने के बाद इसे राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है। लेकिन राज्यपाल अनुसुईया उईके ने इस पर कई आपत्तियां लगाते हुए रोके रखा है। आपको ये भी बता दें कि जो नया विधेयक है उसके मुताबिक प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया है।


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