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CG नान घोटाला मामला; रायपुर कोर्ट में सुनवाई के दाैरान ऐसा क्या हुआ था कि,ED को आनन फानन में SC से सुनवाई से स्टे लेना पड़ा था

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Yagyawalkya Mishra
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CG नान घोटाला मामला; रायपुर कोर्ट में सुनवाई के दाैरान ऐसा क्या हुआ था  कि,ED को आनन फानन में SC से सुनवाई से  स्टे लेना पड़ा था

Raipur. नान घोटाला मामले में इतना शोर गुल हुआ है और हो रहा है कि, उस शोर ने इतना ध्यान खींचा हुआ है कि इस फेर में रायपुर कोर्ट में जो कुछ दर्ज हुआ है, उस ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता है। रायपुर कोर्ट में यह मामला अपने अंतिम चरण में था जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पर स्टे लगा दिया। यदि यह स्टे नहीं होता तो इस मामले में फ़ैसला आ जाता और ईडी का नान घोटाले का केस शायद तब नहीं टिकता क्योंकि प्रकरण के सबसे अहम गवाह याने विवेचना अधिकारी ने अपने बयान में जो कुछ कोर्ट को कहा बताया है, उसके बाद यह संभावना कम ही है कि, केस कोर्ट में टिका रहता या कि कथित रुप से दोषी अनिल टूटेजा और आलोक शुक्ला समेत अन्य को सजा होती। क़ानूनी जानकार यह मानते हैं कि विवेचना अधिकारी के कोर्ट में दिए बयान के बाद 36 हज़ार करोड़ के घोटाले के रुप में प्रचारित इस मामले में शून्य भी साबित नहीं होता।











आरोप क्या है







 नान घोटाले में आरोप यह है कि घटिया अमानक चावल वितरण किया गया। ट्रांसपोर्टेशन में भी घोटाला किया गया। 12 फ़रवरी 2015 को ACB और EOW ने नान कार्यालय याने नागरिक आपूर्ति निगम में छापा मारा, और करोड़ों रुपये के साथ डायरी, डिजिटल अभिलेख जप्त किए गए। ACB और EOW ने तब 27 लोगों के खिलाफ केस बनाया जिसमें से सोलह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई। इस मामले में दो अधिकारी अनिल टूटेजा और आलोक शुक्ला ( दोनों ही IAS ) के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति केंद्र सरकार से 2018 के चुनाव के ठीक पहले आई। इनमें से अनिल टूटेजा वही अधिकारी हैं जिन्हें लेकर आज यह बात कही जाती है कि, वे बेहद प्रभावशाली हैं। इस क़दर प्रभावशाली कि, उन्होंने हाईकोर्ट से ज़मानत हासिल करने से लेकर केस डायरी तक में हस्तक्षेप और निर्देशन रखा। लेकिन इन सब से अलग अगर रायपुर कोर्ट में चलने वाले नान घोटाले की कार्यवाही को देखें, अभिलेखों को गौर से पढ़ें तो समझना मुश्किल हो जाता है कि, सच किधर है। जिस डायरी के पन्नों को लेकर तत्कालीन पीसीसी चीफ़ भूपेश बघेल ने तत्कालीन सीएम डॉ रमन सिंह और उनकी पत्नी पर सवाल खड़े किए जिसका ज़िक्र बतौर सीएम रहते हुए खुद भूपेश बघेल आज भी करते हैं, आख़िर उन पन्नों को लेकर जो उल्लेख है वह चौंकाता है। बचाव पक्ष के वकीलों में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता  कहते हैं







“यह इकलौता मामला होगा जिसमें जिस सरकार के ACB और EOW विंग ने जाँच की और करोड़ों का घोटाला बताया, उसी मामले में वही सरकार विधानसभा में यह लिखित में दे दे कि,कोई घोटाला नहीं हुआ।36 हज़ार करोड़ का घोटाला लिखा गया, बोला गया लेकिन कोर्ट में तो यह साबित नहीं हो पाया।जिन पन्नों का ज़िक्र होता रहा है, उसे लेकर भी कोर्ट में आ चुका है कि, उन्हें साक्ष्य के लायक़ उपयुक्त याठोस नहीं माना गया।I.O. याने विवेचना अधिकारी का बयान सब बता देता है कि घोटाला हुआ या नहीं और जाँच क्या हुई”

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कोर्ट में क्या हुआ 







रायपुर कोर्ट की विशेष अदालत जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के केस देखती है वहाँ नान का यह मामला विशेष दांडिक प्रकरण 794/15 के रुप में दर्ज है। नान घोटाला को लेकर ACB/EOW की कार्रवाई जिसने प्रदेश की सियासत में वह भूचाल लाया कि आज भी वह मसला गरमाता है उसमें वह अधिकारी जिसने ACB के अनुसार घोटाले की प्रारंभिक सूचना और सूचना पर प्रतिवेदन तैयार किया, उन आर के दुबे ने कोर्ट में कहा है कि, सूत्र के आधार पर सूचना उन्होंने तैयार की थी, आर के दुबे ने कोर्ट में प्रतिपरीक्षण में कहा

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“1 जनवरी 2015 को सूत्र सूचना प्राप्त हुई थी, इस सूचना पर जाँच 42 दिनों तक की गई।12 फ़रवरी 2015 को इस सूचना का सत्यापन प्रतिवेदन तत्कालीन एसपी रजनेश सिंह को दे दिया।”







प्रति परीक्षण याने क्रॉस एग्जामिनेशन में ACB/EOW के इस अधिकारी ने यह बयान दिया







“सूत्र सत्यापन के दौरान कोई जाँच नहीं की गई।सोर्स ने जो बताया उसी के आधार पर सूत्र सत्यापन रिपोर्ट तैयार कर दी गई, और देहाती नालसी तैयार कर दी गई”

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सूत्र सत्यापन रिपोर्ट में क्या था







 ACB और EOW ने जो कार्यवाही की उसका आधार 12 फ़रवरी 2015 की वह देहाती नालसी है, जिसे सूत्र सत्यापन रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया था। यह रिपोर्ट एक सूत्र ( सोर्स ) का ज़िक्र करती है जिसके अनुसार नान में बड़ा घोटाला चल रहा है,जिसमें चावल की गुणवत्ता,ब्रोकन, क्वालिटी और अन्य मानक पर रिजेक्ट चावल के होने की बात मौजूद थी। रिपोर्ट में लिखा गया था कि,कम गुणवत्ता के चावल को पास कराने के एवज़ में नान के अधिकारी राईस मिलरों से अवैध वसूली करते हैं।प्रदेश के मुख्यालय के अधिकारियों द्वारा पूरा रैकेट चलाया जाता है, भारी मात्रा में अवैध धन की उगाही कर के हैडक्वार्टर में जमा होता है। अवैध धन केंद्रों में एकत्रित होता है और वहाँ से नान मुख्यालय में एकत्रित होता है, शिव शंकर भट्ट इसे वितरित करता है।नान में कार्यरत अरविंद, जीतराम, श्रीनाथ,कीर्तिकांत, डी के चंद्रवंशी,बी के देवांगन के ज़रिए वरिष्ठ अधिकारियों को धनराशि का वितरण होता है।प्रतिमाह क़रीब दो करोड़ की अवैध वसूली हर माह की जा रही है। इसी सूत्र सत्यापन रिपोर्ट को लेकर ACB के अधिकारी आर के दुबे ने कोर्ट में कहा कि, यह रिपोर्ट उन्होंने सूत्र के मुताबिक़ लिखी इसके लिए कोई जाँच नहीं की किसी का बयान नहीं लिया।



 13 जनवरी 2022 को रायपुर कोर्ट में दर्ज इस बयान में आर के दुबे ने किसी भी इंटरसेप्शन या मोबाईल रिकॉर्डिंग को ख़ारिज किया और कहा







“मैंने इस प्रकरण में सूत्र सत्यापन के दौरान नान के अधिकारी, कर्मचारियों के मोबाइल की बातचीत को सुने जाने व रिकॉर्ड किए जाने वाली आवश्यकता के बारे में उच्च अधिकारियों को नहीं लिखा।”

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1 अगस्त 2022 से शुरु हुआ I.O. संजय देवस्थले का बयान







इस मामले में रायपुर कोर्ट में 1 अगस्त 2022 को प्रकरण के विवेचना अधिकारी संजय देवस्थले का बयान शुरु हुआ। यह बयान और इस पर प्रति परीक्षण 15 सितंबर तक जारी रहा। जबकि संजय देवस्थले इस प्रकरण की जाँच कर रहे थे, वे EOW में टीआई थे। इस वक्त वे राज्य आर्थिक ब्यूरो में DSP हैं। सात सितंबर से संजय देवस्थले का प्रतिपरीक्षण याने क्रॉस शुरु हुआ था। जो 15 सितंबर तक चला था।तत्कालीन टीआई संजय देवस्थले को नान घोटाले की जाँच की कमान 17-18 फ़रवरी 2015 को सौंपी गई थी।इसके पहले तक अशोक जोशी इस प्रकरण की जांच कर रहे थे।











कोर्ट में संजय देवस्थले का बयान







जबकि नान कार्यालय में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की टीम पहुँची, नान में पदस्थ गिरीश शर्मा के पास से बीस लाख जप्त किया गया। कोर्ट में संजय देवस्थले ने इस संबंध में यह बताया कि, वह बीस लाख रुपए प्रकरण के साथ उन्हें अशोक जोशी ने नहीं सौंपे बल्कि बैंक जमा का रसीद मिला था। इस तथ्य के साथ संजय देवस्थले ने कोर्ट में कहा

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“यह सही है जप्तशुदा नोट साक्ष्य की विषयवस्तु थी, साक्ष्य की विषय वस्तु विचारण के दौरान न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाती है। बीस लाख रुपए की रक़म बैंक में जमा करने के संबंध में न्यायालय से अनुमति लेने संबंधी कोई दस्तावेज केस डायरी के साथ नहीं मिला था। डायरी में उल्लेख है कि,गिरीश शर्मा से पूछताछ हुई और वीडियोग्राफ़ी कराई गई लेकिन मुझे केस डायरी के साथ गिरीश शर्मा का लिखित बयान और कोई वीडियो रिकॉर्डिंग प्राप्त नहीं हुई थी।”







 नान घोटाले के इस मामले में EOW ने जिन्हें साक्षी ( सरकारी गवाह) बनाया उन्हें लेकर संजय देवस्थले ने कोर्ट में यह माना है कि,उन्हें सरकारी गवाह बनाने की अनुमति कोर्ट से नहीं ली गई थी।इन सरकारी गवाह में वे गिरीश शर्मा शामिल हैं जिनके पास से बीस लाख बरामद पाए गए।संजय देवस्थले ने कोर्ट को बताया है कि,छापे के दौरान नगद राशियाँ प्राप्त हुई थीं,उसके संबंध में उन अभियुक्तों से स्पष्टीकरण लिया गया था। जिनके स्पष्टीकरण से ईओडब्लू संतुष्ट हो गया, उनके विरुद्ध इस मामले में  चालान पेश नहीं हुआ लेकिन अलग से अनुपातहीन संपत्ति के मामले के तहत चालान पेश हुआ।











इंटरसेप्शन पर क्या बताया गया कोर्ट को

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जबकि नान घोटाले पर कार्यवाही हुई, यह बात आई कि, इंटरसेप्शन हुआ था। नान के अधिकारी कर्मचारी लंबे अरसे से निगरानी में थे। लेकिन कोर्ट में इस मसले पर विवेचना अधिकारी संजय देवस्थले ने कोर्ट को बताया कि, कोई रिकॉर्डिंग का आदेश किसने दिया कब दिया उन्हें नहीं पता है। ना ही इसका उल्लेख डायरी में था, और ना ही उन्हें यह जानकारी थी कि, किसी भी मोबाइल कंपनी को इंटरसेप्शन का निर्देश दिया गया है। विवेचना अधिकारी ने कोर्ट में कहा







“मुझे जानकारी नहीं है कि इंटरसेप्शन किया गया। FIR में भी उल्लेख नहीं है।केस डायरी में भी उल्लेख नहीं है कि, इंटरसेप्शन किस अधिकारी के निर्देश पर किस अधिकारी कर्मचारी के द्वारा किस माध्यम से किया जा रहा था।मुझे राकेश जाट ने दो पेन ड्राइव दिए थे। पेनड्राइव से संबंधित 65 B साक्ष्य अधिनियम का प्रमाण पत्र नहीं है।उस में कॉंपेक्ट डिस्क लिखा गया है। मैंने कोई आदेश इंटरसेप्शन का ना तो दिया और ना ही मैंने किया।”







संजय देवस्थले ने आगे बताया है







“राकेश जाट ने जो मुझे पेन ड्राइव दिए थे उसमें बातचीत किस माध्यम से किसके द्वारा रिकॉर्ड की गई इसकी जानकारी विवेचना के दौरान नहीं मिली।मैंने मोबाइल कंपनी से CDR निकाल कर जाँच भी नहीं कि है कि,कथित बातचीत की पुष्टि CDR से होती है या नहीं नहीं होती।नान के अधिकारी कर्मचारियों के संबंध में मिले मोबाइल नंबर के कॉल डिटेल निकाल कर मैंने यह पुष्टि नहीं की है कि, उनके बीच बातचीत हुई थी या नहीं। राकेश जाट ने जो ट्रांसस्क्रिप्ट मुझे दीं उन पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर नहीं थे।”











डायरी के पन्ने जिन पर सियासत में आज भी बवाल कटता है 









नान घोटाला 36 हज़ार करोड़ का था या कि नहीं था, और यदि था भी तो दस करोड़ का था भी या नहीं, यह मसला भी है, लेकिन बात अब उस डायरी की जिसमें लिखे कोड नाम को सीएम डॉ रमन सिंह और उनके परिवार से जोड़ा जाता था, या कि उसमें कई और कोड नाम थे जिन्हें लेकर आज भी राजनैतिक मंच पर आरोप जमकरलगाए जाते हैं। उन पन्नों को लेकर कोर्ट में दी गई जानकारी दिलचस्प है। कोर्ट में बताया गया है







“गिरीश शर्मा के पेन ड्राइव से कुल 41-42 प्रिंट आउट मिले थे। इनमें सीएम मैडम, मंत्रीजी,मंत्रीजी के पीए, मिश्राजी मंत्रालय घर,ढिंढोरे मंत्री जी के पीए आदि बहुत से नामों का उल्लेख था।इनमें बहुत से लोक सेवकों के नाम और अन्य प्रविष्टियाँ थीं जिनका इस प्रकरण से लेना देना नहीं था।इसके जाँच के लिए पृथक से प्राथमिकी पंजीबद्ध की गई थी। यह प्राथमिक जाँच 03/2015 के नंबर से दर्ज की गई। इसकी जाँच तत्कालीन DySP EOW विश्वास चंद्राकर ने की थी।इसकी जाँच रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई थी।”











जाँच में बताया गया - बतौर साक्ष्य मान्यता नहीं है







कोर्ट को इस  प्राथमिक जाँच रिपोर्ट के बारे में जानकारी दी गई है।में विश्वास चंद्राकर के हवाले यह बताया गया है कि  निष्कर्ष में लिखा गया







“उक्त प्रिंटआउट में किये गया इंद्राज के आधार पर ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो पाया है, जिसे न्यायालय के समक्ष शंकाओं से परे सिद्ध किया जा सके। गिरीश शर्मा के पेन ड्राइव से प्राप्त प्रिंट आउट खुले पेपर की श्रेणी में आते हैं जो साक्ष्य में ग्राह्य नहीं है। इसलिए उसकी प्रविष्टि के संबंध में किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की जा सकती।”







प्राथमिक जाँच में यह बताया गया कि बतौर साक्ष्य इन पेपरों की कोई अहमियत नहीं है और कार्यवाही नहीं हो सकती। लेकिन नान घोटाला मामले में कोर्ट में पेश अभिलेखों में यह 41 पन्ने मौजूद हैं।यह प्रदर्श P-442 के नाम से मौजूद है। इस मसले पर विवेचना अधिकारी संजय देवस्थले ने कोर्ट से कहा है







“ये 41 पन्ने किसने बनाए, कैसे बनाएँ और डायरी में कहां से आया, इसकी कोई जानकारी मुझे नहीं है। इन 41 पन्नों में हस्ताक्षर भी नहीं थे।मुझे नहीं पता कि, गिरीश शर्मा से प्राप्त पेनड्राइव ब्लैंक था या उसमें कोई साक्ष्य। जिस समय पेनड्राइव जप्त हुआ उस समय हम लोगों ने लैपटॉप या कंप्यूटर से उसी समय उसकी जाँच कर के पेन ड्राइव की अंतर्निहित वस्तु नहीं देखी थी।”











डायरी के पन्नों को लेकर आगे संजय देवस्थले का कोर्ट में बयान है







“गिरीश शर्मा ने मुझे कभी नहीं बताया कि,उसने MD ( अनिल टूटेजा) के आदेशानुसार लिखाए गए ब्यौरे पेनड्राइव में सुरक्षित रखे हैं।ना ही MD ने लेनदेन का कोई भी इंद्राज खुद बोलकर करवाया।ना ही मैंने नान के कर्मचारियों के साथ उल्लेखित वितरित राशि को लेकर पूछताछ की। डायरी में सर्किट हाउस, कॉफी हाउस,वेदांता अस्पताल जैसे जो उल्लेख हैं उनके बारे में कोई जाँच नहीं की गई।आलोक शुक्ला, अनिल टूटेजा, यश टूटेजा और आनंद दुबे से कोई रक़म प्राप्त नहीं हुई।







 संजय देवस्थले ने कोर्ट में डायरी के पन्ने और रक़म को लेकर क़रीब 23 बार सिलसिलेवार तरीक़े से यह कहा है कि,गिरीश शर्मा ने अनिल टूटेजा को लेकर कोई ऐसी  बात नहीं कही है जिससे कि,रक़म को लेकर डायरी में दर्ज किसी बात का कनेक्शन अनिल टूटेजा से जुड़े।











घोटाला हुआ भी था या नहीं ! 







नान घोटाला तीन बिंदुओं पर आश्रित था, पहला था अमानक चावल को लेना, दूसरा था अमानक नमक, तीसरा था ट्रांसपोर्टिंग। इन मसलों पर EOW/ACB के विवेचना अधिकारी संजय देवस्थले के बयान क्रमवार हैं। बचाव पक्ष बड़ी कुशलता से इस पूरे मामले में उन तथ्यों को कोर्ट तक ले आया, जिससे यह प्रश्न उठ खड़ा हो कि, घोटाला हुआ भी या नहीं हुआ। मसला यह है कि, यदि नान के ज़रिए बड़ा घोटाला हो रहा था तो नान को उसके ऑडिट में लाभ हुआ या हानि।कोर्ट में विवेचना अधिकारी संजय देवस्थले ने कहा







“दस्तावेज़ों में मेरे द्वारा ऐसा कोई दस्तावेज प्रेषित नहीं किया गया था जिसमें नागरिक आपूर्ति निगम को हुयी हानि का उल्लेख हो।मैंने नमक परिवहन से हानि के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं की थी।यह सही है कि,नमक और चावल परिवहन के संबंधित बिल, वाउचर और भुगतान संबंधी दस्तावेज देखे बग़ैर यह नहीं बताया जा सकता कि, नमक और चावल का परिवहन हुआ या नहीं।किसी भी अंतर्जिला परिवहन के संबंध में कोई दस्तावेज नान मुख्यालय, जिला प्रबंधक एवं किसी भी परिवहनकर्ता से कोई दस्तावेज जप्त नहीं किया।विवेचना के दौरान नान मुख्यालय से किसी भी परिवहनकर्ता को भुगतान करने संबंधी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ।”







संजय देवस्थले ने नमक मसले पर कोर्ट में आगे कहा







“मैंने सेग्रीगेशन से संबंधित कोई जांच नहीं किया,इसलिए मैं यह नहीं बता सकता कि,सेग्रीगेशन से कोई हानि नागरिक आपूर्ति निगम को हुयी थी या नहीं।यह कहना सही है कि प्रकरण में मैंने ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया है जिसमें सेग्रीगेशन न कराये जाने से नान को हानि होने का उल्लेख हो”







नान घोटाले के जाँच अधिकारी संजय देवस्थले ने चावल घोटाले पर पूछे गए सवालों पर अदालत में कहा







“भारतीय खाद्य निगम द्वारा दी गयी किसी भी रिपोर्ट में चावल के किसी भी सैंपल के समक्ष अमानक शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है।25 प्रतिशत से अधिक ब्रोकन चावल अमानक माना जाता है।यह कहना सही है कि,विश्लेषण रिपोर्ट में 273 नमूनों में  से केवल 5 नमूनों में 30 फीसदी से अधिक ब्रोकन पाया गया था।एक अन्य विश्लेषण रिपोर्ट में 474 सैंपलों में से 456 मानक स्तर के मिले थे, 18 सैंपल में ही अमानक स्तर होना रिपोर्ट में उल्लेखित है।”







नान घोटाले के जाँच अधिकारी ने कोर्ट से कहा







“यह कहना सही है कि, विवेचना के दौरान मुझे इस संबंध में कोई दस्तावेज़ी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ कि,कथित घटना समय में छत्तीसगढ़ राज्य में कहीं भी अमानक स्तर का चावल का उपार्जन और वितरण किया गया हो।विवेचना के दौरान क़रीब 26 राइस मिलरों के कथन लिए गए थे। उनमें से किसी भी राईस मिलर ने यह नहीं बताया



कि,उसके द्वारा जून 2014 से फ़रवरी 2015 के बीच नान में चावल जमा कराया है।विवेचना के दौरान मैंने स्वंय विभिन्न ज़िलों में जाकर उक्त राईस मिलरों द्वारा जमा कराए गए चावल और उनके भुगतान संबंधी दस्तावेज प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया गया।उन सभी राईस मिलरों ने मुझे यह नहीं बताया कि उनके द्वारा किस अधिकारी/कर्मचारी को किस तिथि किस माह में कितना पैसा दिया गया।यह कहना सही है कि, किसी भी राईस मिल ट्रांसपोर्टर अथवा नमक सप्लायर द्वारा किसी भी अभियुक्त को राशि दिये जाने के संबंध में मुझे कोई कथन नहीं दिया गया था।विवेचना के दौरान मुझे ऐसा कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ कि, जप्तशुदा रक़म जून 2014 से फ़रवरी 2015 के बीच जमा की गयी थी।”











 बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं से जिरह के दौरान आईओ देवस्थले कोर्ट को  बताते हैं







“अभियोग पत्र में प्रस्तुत किसी भी दस्तावेज में डॉ आलोक शुक्ला ने न तो कोई आदेश पारित किया है,और न ही किसी दस्तावेज पर उनके हस्ताक्षर हैं।”











विधानसभा में रमन सिंह सरकार ने लिखित जवाब में घोटाला नकारा था







 जिस नान घोटाले को लेकर हंगामा बार बार बरप जाता है। उस घोटाले में यह विषय भी है कि, डॉ रमन सिंह की सरकार के समय नान घोटाला सामने आया। तत्कालीन सरकार की एजेंसी EOW/ACB ने छापा मारा, पूरे घोटाले को 36 हजार करोड़ का बताया गया। लेकिन उन्हीं डॉक्टर रमन सिंह की सरकार ने विधानसभा में लिखित जवाब में घोटाले को नकार दिया। विधानसभा में डॉ रमन सिंह की सरकार से सवाल हुआ था







“क्या कैलेंडर वर्ष 2015 में अक्टूबर 2015 तक नागरिक आपूर्ति निगम में अमानक चावल संग्रहित करने का मामला प्रकाश में आया है ? यदि हाँ तो कब ? ज़िलेवार आरोपी अधिकारियों कर्मचारियों के नाम सहित जानकारी देवें.. क्या राज्य सरकार द्वारा संपूर्ण अमानक चावल राईस मिलरों को देकर उसे उच्च गुणवत्तायुक्त चावल में बदली करा लिया गया है ? अमानक चावल लेने के दोषी राईस मिलरों के विरुध्द शासन द्वारा क्या क्या कार्यवाही की गई ?







 इसके जवाब में डॉ रमन सिंह सरकार ने विधानसभा में लिखित जवाब में कहा







“जी नहीं। शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता। जी नहीं..प्रश्नांक ( क ) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता।”











ED क्यों हड़बड़ाई क्यों स्टे लिया







नान घोटाले की जाँच ईडी भी कर रही है। जैसा कि नियम है ईडी सीधे मामला दर्ज नहीं करती। वह थाने में या अन्य एजेंसी में दर्ज मामले के आधार पर मामला क़ायम करती है। ईडी ने जो मामला क़ायम किया था उसका आधार ईओडब्लू/एसीबी द्वारा दायर मामला था। उस मामले में रायपुर कोर्ट में सुनवाई अपने अंतिम स्तर पर थी और विवेचना अधिकारी के बयान के बाद मुलज़िम बयान जैसी औपचारिकता बची थी। यह होते ही जैसा कि दावा किया जाता है कोर्ट फ़ैसला दे देता और ईडी को आशंका थी कि, मामला रायपुर कोर्ट में साबित नहीं होगा और सभी बरी हो जाएँगे। यदि ऐसा होता तो ईडी की कार्यवाही हो ही नहीं पाती।नतीजतन ईडी ने सुप्रीम कोर्ट से इस मसले की रायपुर कोर्ट में सुनवाई करने से रोक का आदेश ले लिया।



   विदित हो सुप्रीम कोर्ट में ईडी ने इस मामले में प्रमुख अभियुक्त बनाए गए अनिल टूटेजा और आलोक शुक्ला की हाईकोर्ट से मिली ज़मानत ख़ारिज करने की माँग करते हुए याचिका दायर की है। ईडी ने इसी के साथ डिजिटल साक्ष्यों के साथ सुप्रीम कोर्ट को कहा है कि, अभियुक्तों ने इस मामले में उच्चस्तरीय संपर्कों का इस्तेमाल किया जिसमें एक विधि अधिकारी की अहम भुमिका है, और पूरी जाँच ( चालान ) अपने हिसाब से प्रस्तुत करा गए हैं।



 



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