शिवम दुबे, RAIPUR. आज पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा है। 74वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश भर में कई कार्यक्रम हो रहे हैं। 26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ था। इसी संविधान से आज पूरा देश चल रहा है। आज हम आपको छत्तीसगढ़ की कुल विभूतियों से परिचय कराएंगे, जिन्होंने सन् 1950 में संविधान बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
छत्तीसगढ़ के 6 लोगों ने निभाई अहम् भूमिका
भारतीय संविधान को बनने में छत्तीसगढ़ का भी विशेष योगदान रहा है। अहम भूमिका को निभाने के लिए छत्तीसगढ़ के 6 नामों को शामिल किया गया। हालांकि यह नाम उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश से आते थे। विकिपीडिया के भारतीय संविधान सभा पेज पर मध्य प्रांत और बरात के अंतर्गत दर्ज सदस्य नामों में से छत्तीसगढ़ के 6 नाम है। इनमें गुरु अगमदास, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी, घनश्याम सिंह गुप्ता, रविशंकर शुक्ल और रामप्रसाद पोटाई शामिल है।
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छत्तीसगढ़ के सदस्यों के हैं हस्ताक्षर
31 दिसंबर 1947 को पुनर्गठित संविधान सभा के 299 सदस्यों की अहम बैठक हुई, जिसमें सदस्यों की 2 साल 11 महीने 18 दिन में कुल 114 दिन तक बैठक चली। इसके बाद 24 जनवरी 1950 में इस संविधान को हस्ताक्षर कर मान्यता दी गई है। छत्तीसगढ़ के सदस्यों में 227 पेज पर रविशंकर ठाकुर, छेदीलाल के हस्ताक्षर, 228 पर घनश्याम गुप्ता, 229 पर रामप्रसाद पोटाई और 230 पर एनके त्रिपाठी के हस्ताक्षर हैं। सदस्यों की अगर बात की जाए तो इन नामों में मुख्यमंत्री रहे रविशंकर शुक्ल, अकलतरा से आने वाले बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, दुर्ग के रहने वाले घनश्याम सिंह गुप्त, कांकेर के रहने वाले रामप्रसाद पोटई, रायगढ़ के रायगढ़ के किशोर मोहन त्रिपाठी और सतनामी गुरु अगम दास हैं।
भाषण में छत्तीसगढ़ के सदस्य का उल्लेख
जानकारी के अनुसार 1947 में छत्तीसगढ़ से आने वाले घनश्याम सिंह गुप्त की अध्यक्षता में संविधान के हिंदी अनुवाद के लिए समिति गठित की गई थी। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भारत के संविधान पारित किए जाने के अवसर पर अपने भाषण में अनुवाद का उल्लेख करते हुए घनश्याम सिंह गुप्त की अध्यक्षता वाली अनुवाद समिति का विशेष रूप से उल्लेख किया था कि उनके द्वारा संविधान में प्रयुक्त अंग्रेजी के समानार्थी हिंदी शब्द तलाश में का कठिन कार्य किया गया है।
सरल हिंदुस्तानी जैसी कोई चीज नहीं
संविधान सभा की बैठकों के दौरान घनश्याम सिंह गुप्त ने 9 नवंबर, 1948 को हिंदुस्तानी भाषा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि सरल हिंदुस्तानी जैसी कोई चीज नहीं थी, उर्दू-उर्दू और हिंदी-हिंदी थी। घनश्याम सिंह गुप्त ने गणित से संबंधित उर्दू और हिंदी के शब्दों के उदाहरण भी दिए हैं।
रविशंकर शुक्ल ने भी किए थे विचार प्रगट
घनश्याम सिंह गुप्त का एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय वक्तव्य पंडित रविशंकर शुक्ल का भी है। पंडित रविशंकर शुक्ला ने 13 सितंबर 1949 को संविधान सभा में यह वक्तव्य दिया था। रविशंकर शुक्ल ने हिंदी राजभाषा उसका दायित्व विषय पर अपना वक्तव्य या अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने शिक्षा का माध्यम, प्रांत और भाषा का व्यवहार, न्यायालयों में अंग्रेजी, अंग्रेजी प्रावधान, आयरलैंड का उदाहरण, अंको का प्रश्न, शब्दों का प्रयोग, राष्ट्रभाषा सबकी सहमति से और भाषा का निर्माण जनता द्वारा जैसे बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित करवाया था।