CM बघेल के माओवादियों से सशर्त बातचीत की पहल पर माओवादियों का आया सशर्त प्रस्ताव

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Yagyawalkya Mishra
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CM बघेल के माओवादियों से सशर्त बातचीत की पहल पर माओवादियों का आया सशर्त प्रस्ताव

Raipur।बीते 8 अप्रैल को पत्रकारों से बातचीत के दौरान माओवादियों से संवाद के मसले पर सीएम बघेल ने सकारात्मकता प्रदर्शित करते हुए जबकि यह कहा  “मैं शुरु दिन से यह कह रहा हूँ,यदि नक्सली भारत के संविधान पर विश्वास व्यक्त करे तो किसी भी प्लेटफ़ॉर्म पर आए तो बात करने को तैयार हैं” तो शायद ही किसी को अंदाज था कि, माओवादियों की ओर से कोई जवाब आएगा,क्योंकि बातचीत के मसले पर जब भी सरकार ने बात कही तो यह प्राथमिकता में रहता ही रहा है कि, नक्सली संविधान के दायरे में आएँ या कि संविधान पर भरोसा करते हुए आएँ तो बात हो जाएगी। यूपीए सरकार के समय गृहमंत्री पी चिदंबरम की उस पहल को छोड़ कोई ऐसा इतिहास नहीं है, जबकि संवाद बिलकुल होने ही वाला था, यह संवाद हो नहीं पाया क्योंकि आंध्रप्रदेश पुलिस ने शीर्षस्थ नक्सली नेताओं में एक राजकुमार को 1 जुलाई 2010 को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया, माओवादियों ने तब इस मुठभेड़ को फ़र्ज़ी करार दिया,इस आशय की खबरें थी कि चेरुकुरी राजकुमार उर्फ़ आज़ाद उस प्रस्तावित वार्ता में माओवादियों की ओर से संवाद करने वालों में प्रमुख हो सकते थे।सच जो भी हो पर इसके बाद संवाद की पहल पर नई दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक और अबूझमाड़ से लेकर तेलंगाना की सरहद तक फिर ऐसा कोई संवाद या कि संवाद के लिए दोनों ओर से ऐसी कोई गंभीरता फिर नही दिखी।तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम के पहले और फिर उसके बाद जब भी बातचीत का ज़िक्र हुआ सरकार ने पहले संविधान को मानने और फिर संवाद करने की बात कही और नक्सलियों ने हर बार इसे ख़ारिज किया, कुछेक बार यह भी देखा गया कि माओवादियों ने इस मसले पर जवाब ही नहीं दिया।लेकिन जबकि सीएम बघेल ने यह प्रस्ताव दिया तो नक्सलियों की ओर से जवाब आया है। हालाँकि यह जवाब जो कि दो पन्नों में है उसमें अगर इस वाक्य को खोजें कि संवाद के लिए नक्सली तैयार हैं या नहीं तो उसका जिक्र पत्र के आख़िरी आठवें पैराग्राफ़ में मिलता है, जिसमें शुरु में यह लिखा गया है कि हम संवाद के लिए हमेशा तैयार हैं।लेकिन इस पैराग्राफ़ की शुरुआती पंक्तियों के आगे जबकि पढ़ा जाए या कि इसके ठीक पहले दर्ज इबारत को पढ़ें तो समझ आता है कि यदि केवल वाक्यों में तलाशना हो कि माओवादी चर्चा के लिए तैयार हैं तो वो वाक्य मौजूद है,लेकिन पूरा पढ़ने पर साफ़ है कि आठवें पैराग्राफ़ के शुरुआत में जुड़ा यह वाक्य पढ़ कर लहालोट होने या कि यह मान लेना कि माओवादी तैयार हो गए हैं, यह सिरे से ग़लत होगा।











सीएम बघेल पर तीखा तंज



नक्सलियों ने सीएम बघेल के संविधान को मानने की बात पर इसे बेईमानी भरा कथन बताया है।बस्तर में जंगलों के भीतर मौजुद गाँवों में हवाई हमले को लेकर सवाल किया गया है कि, यदि मुख्यमंत्री भी इस सच्चाई कि, इन इलाक़ों में हवाई बमबारी हुई है से इंकार करते हैं तो यह जाँच करा दें कि, किस देश की सेना आकर बस्तर के जंगलों में हवाई बमबारी की है।इस विज्ञप्ति में बस्तर में माओवादियो के ख़ात्मे के लिए विश्वास विकास और सुरक्षा के बघेल सरकार के फ़ार्मूले का ज़िक्र करते हुए व्यंग्य किया है कि,यह दरअसल देशी विदेशी कार्पोरेट घरानों का विश्वास जीतने उनके विकास के लिए आवश्यक योजना पर अमल करने और उनके आर्थिक और अन्य हितों को सुरक्षा देने का फ़ार्मुला है।बस्तर के भीतर चल रहे आंदोलनों का ज़िक्र है जिनमें कई सशस्त्र बलों के कैंप के विरोध में चल रहे हैं।जिन पर दमन करने के आरोप लगाते हुए कहा गया है कि भारत के संविधान को मानने का जो सवाल है तो जनता के संवैधानिक अधिकारों का घोर उल्लंघन सरकारें ही कर रही हैं।









ये हैं शर्तें







इस विज्ञप्ति के आख़िरी पैरे पर माओवादियों ने जिन कठिन शर्तों को पूरा करने के एवज़ में संवाद करने की बात लिखी है, यह शर्तें चेरुकुरी राजकुमार उर्फ़ आज़ाद की ओर से रखी गई केंद्रीय सरकार से बातचीत की उन शर्तों की शब्दशः कॉपी लगती है जो कि तब के दौर में चर्चाओं में थीं। दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प की शर्तों में पार्टी याने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( माओवादी),पीएलजीए समेत उनकी विचारधारा से सहमति रखने वाले जन संगठनों से प्रतिबंध हटाने, कैंपो को हटाकर सशस्त्र बलों को वापस भेजने, हवाई बमबारी को बंद करने और जेलों में बंद नक्सली नेताओं को रिहा करने की माँग है। इन शर्तों का उल्लेख करते हुए लिखा गया है इससे शांति वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनेगा।इन शर्तों पर सरकार से राय भी स्पष्ट रुप से प्रकट करने की बात लिखी गई है।











 



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