मीना खलखाे हत्याकांडःपुलिसकर्मी बरी,कोर्ट की अभियाेजन और विवेचना पर कड़ी टिप्पणी

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Yagyawalkya Mishra
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मीना खलखाे हत्याकांडःपुलिसकर्मी बरी,कोर्ट की अभियाेजन और विवेचना पर कड़ी टिप्पणी

Raipur।विवेचना के समय से ही प्रकरण में विवेचना कार्यवाही बेहद निम्न स्तर की थी। विवेचना के दौरान अभियोजन ने यह स्थापित नहीं किया है कि मीना खलखो की हत्या आरोपियों को आबंटित हथियार और उन्हें दी गई गोली के लगने से हुई।अभियोजन ने केवल गवाहों की संख्या बढ़ाई,लेकिन विवेचना के दौरान कथित अपराध से संबंधित तथ्यों को स्थापित नहीं किया। अभियोजन की लापरवाही से साक्ष्य का पूरा अभाव था,अभियुक्त संदेह के घेरे में आने पर भी दोषसिद्धि की ओर नहीं जा पा रहे हैं, क्योंकि संदेह कितना भी गहरा हो वह साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता। सूबे की सियासत को हिला देने वाले मीना खलखाे हत्याकांड में अभियुक्तों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करते हुए द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने श्रीमती शाेभना कोष्टा ने अपने निर्णय में यह टिप्पणी की है।













 क्या है मीना खलखाे कांड





   अविभाजित सरगुजा के गांव करचा थाना चांदो जिला बलरामपुर में पुलिस ने यह दावा किया था कि,5-6 जुलाई 2011 की दरमियानी रात 2 से 3 के बीच नवाडीह चेडरा नाला में पुलिस की मुठभेड़ नक्सलियाें के दस्ते से हुई,जिसमें एक महिला नक्सली की मौत हुई है। पुलिस ने इसकी पहचान मीना खलखाे के रूप में की और तब यह दावा किया था कि,मीना खलखाे नक्सली है और इसका नाम पूर्व में भी नक्सली अपराध में आया है। तब तत्कालीन एसडीओपी कुसमी एस आर दीवान ने यह बताया था कि, यह पूर्व में भी थाना चांदो में दर्ज नक्सली अपराध क्रमांक 16/11 में बतौर आरोप दर्ज है,और पुलिस को इसकी तलाश थी।हालांकि कुछ ही घंटों के भीतर इस पूरे दावे की कलई खूल गई और यह साबित हुआ कि, मीना खलखाे जो करचा गांव की रहने वाली थी, वह गांव की एक सामान्य सी लड़की थी जो कि,पांच जुलाई की शाम घर से सायकल लेकर अपने सहेली के यहां नवाडीहकला गई थी, और पुलिस ने उसे मुठभेड़  में शामिल बता दिया।पुलिस ने इस मुठभेड़ को लेकर चांदो थाने में अपराध क्रमांक 25/11 के तहत धारा 47,148,149,307 धारा 25/27 आर्म्स एक्ट के तहत अपराध भी रजिस्टर कर लिया। जिस जगह पुलिस ने मुठभेड़ का दावा किया था, उस इलाके में रहने वालों ने किसी भी मुठभेड़ से इंकार कर दिया था। मामला जब तूल पकड़ने लगा तो तत्कालीन रमन सरकार ने एकल सदस्यीय न्यायिक जांच आयाेग गठित किया था,29 अगस्त 2011 को श्रीमती अनिता झा की अध्यक्षता में गठित एकल सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग ने 26 फरवरी 2015 को इसकी रिपोर्ट शासन को पेश की,जिसमें आयोग ने माना कि,यह पुलिस मुठभेड़ नही थी, और मीना खलखाे की मौत पुलिस के हथियारों से हुई। इस न्यायिक जांच आयोग ने सिफारिश की थी कि,जिम्मेदार पुलिसकर्मियाें के विरूद्ध अनुसंधान किया जाए।  न्यायिक जांच की रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने प्रकरण की जांच सीआईडी को साैंप दी। सीआईडी ने इस मामले में अपराध क्रमांक 1/15 के तहत धारा 302,34 में विवेचना शुरू कर दी,और इस पर चालान प्रस्तुत किया।सीआईडी ने इस मामले में तत्कालीन चांदो थानेदार निकोदिन खेस जो कि कथित नक्सली मुठभेड़ में पुलिस टीम को लीड कर रहे थे और आरक्षक धर्मदत्त धनिया और जीवनलाल रत्नाकर को बताैर आरोपी कोर्ट मे बताया। सीआईडी ने कोर्ट में पेश डायरी में बताया कि,मीना खलखाे की हत्या आरक्षक धर्मदत्त धनिया और जीवनलाल रत्नाकर ने अपने हथियारों से की,और थाना प्रभारी ने झूठे साक्ष्य गढ़े। इस पर विचारण करते हुए कोर्ट ने थाना प्रभारी निकोदिन खेस के खिलाफ धारा 302,201 और 193 जबकि आरक्षक धर्मदत्त धनिया और जीवनलाल रत्नाकर के खिलाफ धारा 302 के तहत कार्यवाही शुरू कर दी।

















कोर्ट में क्या हुआ





     कोर्ट में मीना खलखाे के पिता बुद्धेश्वर और उसकी मां कोतियार ने बयान दिया कि,उनकी बेटी घर पर रहती थी, शाम को सहेली के यहां सायकल से निकली थी, सुबह उसके शव बलरामपुर अस्पताल में मिलने की खबर मिली। पिता और मां ने यह बयान कोर्ट में दर्ज कराया कि, शव देख कर ऐसा लगा कि,मीना के साथ बलात्कार हुआ था,लड़की को रात भर पुलिसवाले रोक के रखे,उसके साथ बलात्कार किया और बेहोश होने पर गोली मार दिए।मीना खलखाे काे करीब से गोली मारी गई थी,मीना खलखो के वस्त्राें का परीक्षण करने वाली अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि, मीना के अंतःवस्त्राें में वीर्य और शुक्राणू मिले थे। राज्य न्यायलिक विज्ञान प्रयोगशाला में संयुक्त संचालक जीएस साहू और पीएम करने वाले डॉ मरकाम ने यह बताया कि,गोली लगने से आई चाेट अत्यधिक रक्तस्त्राव से मौत हुई, और मौत की प्रकृति मानव वध याने हत्या थी।अदालत ने यह माना कि, मीना खलखाे की हत्या की गई थी। अब अदालत को उपलब्ध साक्ष्याें से यह तय करना था कि, अभियुक्ताें ने ही एसएलआर रायफल से वह गोलियां चलाईं जिससे कि, मीना की हत्या हुई।





   अदालत में सिपाही अशाेक उइके ने बयान दिया कि,गोली उस दल से चली जिसका नेतृत्व निकोदिन खेस कर रहे थे,उसके साथी ललित केरकेट्टा ने बताया था कि, एक लड़की को गोली लगी है,गोली बारहवीं बटालियन के आरक्षक ने चलाई थी,आरक्षक अशाेक उइके ने यह माना कि, नक्सली मुठभेड़ नही हुई थी। उसे घटनाक्रम में जीवनलाल का नाम याद आया लेकिन धर्मदत्त के बारे में वह कुछ बता नही पाया।





   कोर्ट में राज्य न्यायलिक विज्ञान प्रयाेगशाला में संयुक्त संचालक जीएस साहू ने बताया कि, जांच के लिए 315 कारतूस का खाली खाेखा भेजा गया था। मृतका मीना खलखाे को लगी गोली पुलिस के हथियार से निकली थी या नक्सलीयाें के हथियार से,इसका अंतर करने के लिए कोई तथ्य नही आया था।





   अदालत के सामने इस संबंध में कोई तथ्य ही पेश नही किया गया जिससे कि, यह स्थापित हो सके कि, किस हथियार के चलने से किस गोली से मीना खलखाे की मौत हुई।जबकि साक्ष्य विचारण हो चुका था और अभियुक्त कथन लंबित था, थानेदार निकोदिन खेस की मौत हो गई,और उसके बाद इस केस से उनका नाम स्वाभाविक रूप से हटा दिया गया।

















अदालत ने अभियोजन और विवेचना पर क्याें टिप्पणी की





  इस मामले के फैसले में जो कि,54 पृष्ठों का और जिसमें 83 बिंदू हैं,उसमें अदालत ने पाया कि, यह तय कर सकें कि, आखिर किस हथियार या कि गोली से मीना खलखाे की हत्या हुई,उसके लिए साक्ष्य ही नही रखे गए थे। न्यायाधीश श्रीमती शोभना कोष्टा ने निर्णय के दाैरान अलग अलग बिंदूओं में  लिखा है −





अभियोजन ने ज़ब्त हथियारों को प्रकरण में विचारण के दौरान प्रस्तुत नहीं किया,और ना ही आर्टिकल के रुप में साक्ष्य से प्रमाणित किया, अभियोजन को जप्त किए दोनों शस्त्रों को अदालत में पेश करना था। दोनों एसएलआर रायफल थी।आरोपियों को वितरित हथियारों के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है, दस्तावेज़ी साक्ष्य के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन द्वारा कथित उक्त हथियार आरोपियों को ही आबंटित हुए थे।अभियोजन का यह दायित्व था कि वह यह प्रमाणित करता कि उक्त शस्त्र आरोपीगणों के हैं ख़ाली कारतूस और छर्रे आरोपियों के ही हथियार से निकले हैं, लेकिन अभियोजन ने ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है कि घटना स्थल से जप्त संपत्तियाँ आरोपियों की थी या घटना दिनांक को आरोपियों को आबंटित थीं।विवेचक साक्षीगण ने सदृढ़ विवेचना नहीं की है। विवेचना के दौरान आरोपियों के घटना स्थल पर जाते समय उनके हथियार वितरण के संबंध में परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार उनके हथियार और गोलियों का संबंध स्थापित करने में और आरोपियों के ही हथियार से मृतिका की मृत्यु होने के संबंध में कार्यवाही करनी थी।लेकिन दस्तावेज़ों में आरोपियों को हथियार वितरण और उन्ही हथियारों से फैसला होने के संबंध में कारतूस के ख़ाली खोखों और छर्रों में मिलान का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया।अभियोजन ने घटना स्थल से जप्त वस्तुओं को प्रकरण में प्रस्तुत नहीं किया।उसे प्रस्तुत कर प्रदर्शाकिंत कराना था जिसमें अभियोजन की लापरवाही दिखती है।







   अदालत के फैसले में यह उल्लेखित है कि, आरोपियों ने कोई बचाव साक्ष्य नहीं दिया।



 









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मीना खलखाे की अस्पताल में ली गई तस्वीर















 









  तब कांग्रेस ने मुद्दा बना दिया था,और आज कांग्रेस की ही सरकार है





    जबकि मीना खलखाे हत्याकांड हुआ,तब कांग्रेस विपक्ष में थी,और नंद कुमार पटेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। बेहद संवेदशील स्व. नंद कुमार पटेल ने इस मसले को लेकर तत्कालीन भाजपा सरकार को घेर दिया था। मानवाधिकार के ढेराें मंच पर तब इस मामले ने खूब चर्चाएं बंटोरी।मीना खलखो हत्याकांड यह मसला देश विदेश के मीडिया की सुर्खियां बना। यह विचित्र संयाेग है कि, इस मामले में जबकि अदालत ने विवेचना और अभियाेजन की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी की है और मीना खलखाे मामले में फैसला सुनाया है तब प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार है। यह सवाल भी अनसूलझा है कि, मीना खलखाे के साथ बलात्कार होने का मसला सामने आया था, तब यह बात आई थी कि, बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई।अदालत की कार्यवाही में भी मीना के पिता माता ने इन आरोपाें को दोहराया, पीएम करने वाले चिकित्सक और परीक्षण करने वाली राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयाेगशाला की महिला अधिकारी ने यह अदालत को बताया कि, वीर्य और शुक्राणू मिले थे तो विवेचना करने वाली एजेंसी और अभियाेजन ने इस मामले को लेकर विवेचना और विवेचना के बाद पेश चालान में क्या किया, और इस मामले को लेकर यदि चुप्पी साधी तो क्याें साधी, और यदि कुछ पाया तो क्या पाया था।













  तो मीना खलखाे की हत्या तो हुई, पर कैसे और किस हथियार से इसे पूरी न्यायिक व्यवस्था जिसमें विवेचना करने वाली संस्था और उसकी विवेचना को कोर्ट में प्रस्तुत कर के पक्ष रखने वाला अभियाेजन वे दस साल आठ महिने और तीस दिन के बाद भी नही बता सके। रायपुर की अदालत ने यह फैसला पांच अप्रैल 2022 को सुनाया था।



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