RAIPUR. नक्सलवाद शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी गांव से हुई थी। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारु माजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन शुरू किया। माजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बड़े प्रशसंक थे। इसी कारण नक्सलवाद को 'माओवाद' भी कहा जाता है। वर्तमान स्थिति में पिछले 5 दशकों से भारत इस नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाया है। हर बार नक्सली सरकारों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला करते हैं, जिसमें अब तक सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं।
10 जवानों की हुई मौत
हाल ही में छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके दंतेवाड़ा का है, जहां डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की एक गाड़ी को नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट से उड़ा दिया। इस हमले में ड्राइवर समेत 10 जवानों की मौत हो गई। अधिकारियों ने बताया कि माओवादी कैडर की उपस्थिति की सूचना पर दंतेवाड़ा से डीआरजी बल को नक्सल विरोधी अभियान में रवाना किया गया था। अभियान के बाद वापसी के दौरान माओवादियों ने अरनपुर मार्ग पर बारूदी सुरंग में विस्फोट कर दिया।
सरकार से सीधी लड़ाई संभव नहीं
नक्सली आंदोलन के नेता माजूमदार और सान्याल चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग से प्रभावित थे। उनका सिद्धांत था कि सरकार के खिलाफ सीधी लड़ाई संभव नहीं है, इसीलिए मनोवैज्ञानिक तौर पर इसे लड़ा जाना चाहिए। इसमें सरकार नहीं बल्कि उसकी इच्छाशक्ति पर आक्रमण की बात कही गई। यह सोच समय के साथ चिंगारी से बारूद और अब आग बन गई। वहीं अब इस सोच से कम्युनिस्टो ने लोगों को जुटाना शुरू कर दिया है। इस ग्रुप में ज्यादातर लोग गरीबी और किसानों शामिल होते हैं, तो वहीं उनके सबसे बड़े दुश्मन जमींदार होते हैं।
छोटे संगठनों से बनाई पार्टी
70 के दशक में शुरू होने वाले यह संगठन तेजी से फैलता जा रहा है। इससे जुड़े संगठनों ने साल 1969 में सीपीआई (एमएल) का गठन किया। जिसके महासचिव चारू माजूमदार थे। इसी सिद्धांतों के हिसाब से नक्सलवाद जहर की तरह देशभर में फैला। कुछ सालों बाद मांग उठने लगी कि कम्युनिस्टों की एक पार्टी होनी चाहिए, जो गरीबों और सताए गए लोगों की बात रखे। इसके बाद साल 2004 में पीपुल्सवार और एमसीसीआई ने एक साथ मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन हुआ। इस खबर ने सरकारों की चिंता और बढ़ा दी। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जिन दो संगठनों ने मिलकर ये राजनीतिक पार्टी बनाई थी, उन्हें अमेरिका ने अपनी आतंकवादी संगठनों की लिस्ट में शामिल किया था।
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ये है संगठन का उद्देश्य
जैसे कोई भी नेता जनता को अपने तीखे और जोरदार भाषण से इंफ्लुएंस करता है, ठीक उसी तरह से नक्सलवाद भी चलता रहा है। नक्सवाद को लेकर बनाए गए नियम कायदे लोगों के कानों काफी अच्छे लगते हैं, खासतौर पर उन लोगों को जिन्हें सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिला है। इस खूनी संघर्ष से ज्यादातर वही लोग जुड़े हैं, जो अपने हक की लड़ाई को हथियार के बल पर लड़ने की सोच रखते हैं। नक्सलवाद को चलाने वाले कई नेता और कमांडर होते हैं। यानी ये किसी सैन्य टुकड़ी की तरह काम करते हैं, कमांडर अपने नक्सलियों में जोश भरने के लिए ऐसे भाषण देता है, जिससे उनका खून गरम हो जाए और सत्ता के खिलाफ नफरत इस कदर हावी हो जाए, कि वो किसी भी काम को अंजाम दे सके।
इन राज्यों में फैला है नक्सलवाद
करीब 50 साल पहले शुरू हुआ नक्सलवाद आज तक नासूर बनकर देश को चुभ रहा है। हालात ये हैं कि ये खूनी संघर्ष वाला आंदोलन कई राज्यों में फैल चुका है और इसका नेटवर्क खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। देश के करीब 11 राज्य नक्सलवाद से प्रभावित हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में नक्सली घटनाएं सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं। यहां के कई इलाकों में नक्सलियों का काफी ज्यादा खौफ है।
हर गांव और कस्बे में मुखबिर
देश के हर नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों की टुकड़ियां तैनात की जाती हैं, नक्सवाद के खिलाफ पुलिस और सीआरपीएफ का ऑपरेशन भी लगातार चलता है, जिसमें कई नक्सली मारे जाते हैं। ऐसे में बदले की भावना और सरकार के खिलाफ गुस्सा नक्सलियों को सुरक्षाबलों की जान का दुश्मन बना देता है। नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले सुरक्षाबलों पर नक्सली घात लगाकर हमला करते हैं, इसके लिए उनके मुखबिर हर गांव और कस्बे में रहते हैं। सुरक्षाबलों की मूवमेंट का पता लगने के बाद आईईडी ब्लास्ट या फिर बारूदी सुरंगे खोदी जाती हैं और अपने मंसूबे को अंजाम दिया जाता है। नक्सलियों को गुरिल्ला अटैक के लिए जाना जाता है। जिसका नतीजा हम हर साल तिरंगे में लिपटे जवानों के तौर पर देखते आए हैं।
पूरे देश में फैला नक्सलवाद
देश के जिस भी हिस्से में नकस्लवाद फल-फूल रहा है, उसकी सबसे बड़ी वजह उनका बेजोड़ नेटवर्क है। माना जाता है कि सुरक्षाबलों से ज्यादा मजबूत नेटवर्क नक्सलियों का है। जिसका इस्तेमाल कर वो छुपते हैं, सुरक्षाबलों को अपने ट्रैप में फंसाते हैं और फिर हमला करते हैं। इसके बाद जब सुरक्षाबलों का ऑपरेशन चलता है तो ये आदिवासी का चोला पहन लेते हैं और भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। कुछ लोग घने जंगलों में गायब हो जाते हैं। नेटवर्क इतना बड़ा होता है कि इन्हें सुरक्षाबलों की मूवमेंट की हर खबर मिलती है, जिससे ये खुद को बचा लेते हैं।