Raipur. छत्तीसगढ़ अब नार्को टेस्ट के लिए आत्मनिर्भर हो गया है। छत्तीसगढ़ में रायपुर स्थित एम्स को इसकी मंजूरी मिल गई है। इसकी जानकारी गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने दी है। ताम्रध्वज साहू ने विधानसभा में जानकारी देते हुए बताया है कि अब बड़े अपराधों में इस्तेमाल किए जाने वाले नार्को टेस्ट के लिए देश के बड़े राज्यों में नंबर नहीं लगाना पड़ेगा। नार्को टेस्ट के लिए छत्तीसगढ़ अब आत्म निर्भर बन गया है। राज्य सरकार ने नार्को टेस्ट के लिए जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर ली है और रायपुर एम्स के साथ मिलकर इसके लिए जरूरी मशीनें भी मंगा ली गयी हैं ।
क्या होता है नार्को टेस्ट?
नार्को-एनालाइसिस टेस्ट को ही नार्को टेस्ट कहा जाता है। आपराधिक मामलों की जांच-पड़ताल में इस परीक्षण की मदद ली जाती है। NCBI यानि की नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन के अनुसार नार्को टेस्ट एक डिसेप्शन डिटेक्शन टेस्ट है। जिस कैटेगरी में पॉलीग्राफ और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट भी आते हैं। अपराध से जुड़ी सच्चाई और सबूतों को ढूंढने में नार्को परीक्षण काफी मदद कर सकता है। NCBI कहता है कि न्यायालय में नार्को टेस्ट की रिपोर्ट मान्य नहीं है, लेकिन जांच एजेंसियां थर्ड टॉर्चर के मानवीय विकल्प के रूप में इसके लिए अनुमति लेती हैं। नार्को टेस्ट से पहले व्यक्ति का फिटनेस टेस्ट किया जाता है। जिसमें लंग्स टेस्ट, हार्ट टेस्ट जैसे प्री-एनेस्थिसिएटिक टेस्ट होते हैं।
पांच रेंज मुख्यालयों में साइबर थानों की स्थापना
प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने विधानसभा में अनुदान मांगों पर चर्चा करते हुए जानकारी दी है कि छत्तीसगढ़ पुलिस अपराधियों पर लगाम कसने के लिए लगातार नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रही है। बढ़ते हुए साइबर अपराधों पर नकेल कसने के लिए सभी पांच रेंज मुख्यालयों में साइबर थानों की स्थापना की जा रही है। अपराधों पर लगाम लगे इसके लिए दुर्ग में फारेंसिंक साइंस लेबोरेट्री कालेज की स्थापना भी की जाएगी। वर्तमान में प्रदेश के 11 जिलों में डायल 112 की सुविधा थी जिसमें अब 17 अन्य जिलों को भी शामिल कर लिया गया है। इस तरह से अब डायल 112 की सुविधा 28 जिलों में होगी।