Raipur. आरक्षण मसले पर राजभवन से एक पत्र जारी हुआ है। इसमें दस सवाल हैं, वे सवाल राज्य सरकार को परेशान कर सकते हैं। राज्यपाल अनुसूइया उइके ने राज्य सरकार से दस बिंदुओं पर क्रमवार जानकारी मांगी है। इनमें क्वांटिफाएबल डाटा आयोग का ब्यौरा और 50 परसेंट से ज्यादा आरक्षण की स्थिति क्यों बनी इसे लेकर भी सवाल खड़े करते हुए जानकारी मांगी है।
ये जानकारी मांगी है राज्यपाल ने
राज्यपाल अनुसूइया उइके ने जो जानकारी मांगी है उनमें विधिक सलाहकार से इस विषय पर मिला अभिमत भी शामिल है। राजभवन ने पूछा है “विधेयक पारित करने के पहले अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के संबंध में मात्रात्मक विवरण (डाटा ) संग्रहित किया गया था ? वह मात्रात्मक विवरण उपलब्ध कराएं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा है कि,अजा, अजजा और अपिव के आरक्षण का प्रतिशत राज्य की सेवाओं में प्रत्येक भर्ती साल के लिए पचास परसेंट से अधिक विशेष और बाध्यकारी परिस्थिति में ही हो सकता है, वो विशेष और बाध्यकारी परिस्थिति क्या है? हाईकोर्ट ने जो आरक्षण संबंधी पुराना अध्यादेश खारिज किया उसमें हाईकोर्ट ने ऐसी कोई विशेष परिस्थिति का उल्लेख नहीं पाया है, हाईकोर्ट के फैसले के ढाई महीने बाद क्या ऐसी विशेष परिस्थिति के बारे में कोई विवरण (डाटा ) प्रकाशित किया गया है, यदि हां तो डाटा दें। कैबिनेट में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में आरक्षण के प्रतिशत का उल्लेख किया गया है। लेकिन इन सभी राज्यों में पहले कमेटी का गठन हुआ, छत्तीसगढ़ में कौन सी कमेटी बनी जिसमें अजा, अजजा के सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़ेपन को ज्ञात किया गया, इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
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विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं और लौटा भी नहीं
विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर भूपेश बघेल सरकार ने अजजा को 32 फीसदी, अन्य पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी और अजा को 13 प्रतिशत इस तरह कुल 72 परसेंट का प्रावधान किया। 2 दिसंबर को यह पास हुआ और 2 दिसंबर को ही भूपेश कैबिनेट का मंत्री समूह राज्यपाल के पास इस विधेयक को हाथों हाथ लेकर गया कि राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर कर दें, लेकिन राज्यपाल ने अनिवार्य औपचारिकता का हवाला देते हुए तत्काल हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। करीब सात दिनों बाद राज्यपाल अनुसूइया उइके ने बेहद स्पष्ट कहा कि, विधेयक पर बहुत से विधिक प्रश्न हैं जो पूछना होगा, और अब यह पत्र जारी कर राजभवन ने सवाल पूछे हैं।