छत्तीसगढ़ में आरक्षण मसला: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मीडिया के सामने आए आदिवासी नेता, इसे बीजेपी की वैचारिक जीत बताया

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Shivam Dubey
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छत्तीसगढ़ में आरक्षण मसला: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मीडिया के सामने आए आदिवासी नेता, इसे बीजेपी की वैचारिक जीत बताया




Raipur. छत्तीसगढ़ में आरक्षण मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बीजेपी के आदिवासी नेताओं ने वैचारिक जीत बताई है। मंगलवार को बीजेपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। आदिवासी नेताओं ने इसके साथ ही कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है। छत्तीसगढ़ बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा है कि 58 प्रतिशत आरक्षण पर न्यायालय से दी गई अंतरिम राहत का अभिनंदन करते हैं। इस फैसले से न केवल प्रदेश की तात्कालीन बीजेपी सरकार के 58 प्रतिशत आरक्षण का फ़ैसला सही साबित हुआ है, बल्कि कांग्रेस जिस तरह इस मामले में दोहरी राजनीति करती रही है, उसका भी पर्दाफ़ाश भी हई है।



कांग्रेस के षड्यत्र का पर्दाफाश!



विक्रम उडेंसी का कहना है कि बीजेपी शासन काल में लागू आदिवासियों के 32% आरक्षण पर कांग्रेसियों ने षड्यंत्र कर हाईकोर्ट में याचिका लगवाई, अपास्त घोषित किए गए आरक्षण संशोधन अधिनियम 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया है। यह बीजेपी की वैचारिक जीत है। अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी यह समझ लेना चाहिए कि वे संविधान से ऊपर नहीं हैं। सही नीयत से कानून बनाने पर क्या होता है, यह माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से जाहिर हुआ है। अगर सच में आपकी नीति सस्ती राजनीति से प्रेरित नहीं बल्कि वास्तव में वंचितों को न्याय दिलाने की होती है, तो सारे संवैधानिक प्रावधानों पर विचार-विमर्श कर क़ानुन बनाया जाता है, जैसा भाजपा सरकार ने बनाया था। 




कांग्रेस का दोहरा चरित्र- विक्रम उसेंडी



विक्रम उसेंडी ने कहा है कि केवल समाज में विभेद पैदा करने, ‘बांटो और राज करो’ की नीति के तहत समाज के बीच ज़हर फैला कर अपनी रोटी सेंकना होता है, वह कांग्रेस के कृत्यों से देखा जा सकता हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि कांग्रेस नेता पद्मा मनहर और के पी खांडे ने हाईकोर्ट जा कर आदिवासियों का आरक्षण रुकवाया था। इसी तरह पिछड़े वर्ग को दिए आरक्षण के विरुद्ध कांग्रेस सरकार में ही कुणाल शुक्ला  हाईकोर्ट जा कर पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को रूकवाया था।  कांग्रेस सरकार ने आरक्षण की मुख़ालफ़त करने का पुरस्कार जहां खांडे को आयोग का अध्यक्ष बना कर दिया, वहीं कुणाल शुक्ला को कबीर शोधपीठ का अध्यक्ष बनाया। ऐसा दोहरा चरित्र केवल कांग्रेस का ही हो सकता है। 


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