Raipur. भानुप्रतापपुर विधानसभा के उप चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के प्रयोग ने सभी राजनैतिक विश्लेषकों को चौंकाया है। सर्व आदिवासी समाज ने उप चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी खड़ा किया था, इस निर्दलीय प्रत्याशी ने क़रीब नौ राउंड तक बीजेपी को तीसरे नंबर पर ढकेले रखा। सर्व आदिवासी समाज मूलतः सामाजिक संगठन है, लेकिन आदिवासी हित,आरक्षण और पेसा एक्ट जैसे मसलों पर सरकार से नाराज़ इस संगठन ने प्रयोग की तर्ज़ पर भनुप्रतापपुर उप चुनाव में प्रत्याशी उतार दिया।19 वे राउंड याने अंतिम परिणाम में जरुर हालात बहुत बदले और बीजेपी ने दूसरा मुक़ाम हासिल कर लिया और सामाजिक प्रत्याशी के रुप में खड़े निर्दलीय से बीस हज़ार ज़्यादा वोट बीजेपी ने हासिल किए।हालाँकि सीएम बघेल इसे प्रयोग को ख़ास महत्व के लायक़ नहीं मानते। उन्होंने इस मसले पर हुए सवाल के जवाब में कहा कि, जो लोग क़सम खिलाए थे और बड़ी बड़ी बात दावा कर रहे थे वे तो कहीं टिके ही नहीं।
क्या है मसला
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के लिए एक संगठन है जिसका नाम सर्व आदिवासी समाज है। यह सामाजिक संगठन के रुप में काम करता रहा है। आदिवासी आरक्षण, पेसा एक्ट जैसे मसलों को लेकर इस संगठन की सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर नाराज़गी है। क़रीब चार महीने पहले बड़ी सामाजिक पंचायत में क़द्दावर आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने यह प्रस्ताव दिया था कि, प्रदेश की सभी आदिवासी सीटों पर समाज अपना प्रत्याशी खड़ा करे, क्योंकि पार्टी के बैनर तले खड़े होने वाले लोग समाज के लिए कुछ नहीं करते। वे तब भी चुप रहते हैं जबकि समाज का अहित हो। इस विचार को लेकर गंभीरता से मंथन शुरू भी हुआ। इस बीच अचानक भानुप्रतापपुर में उप चुनाव की घोषणा हो गई। यह सीट विधायक मनोज मंडावी के निधन से ख़ाली हुई और एक महीने के भीतर चुनाव की तारीख़ें आ गईं। सर्व आदिवासी समाज ने इस उप चुनाव में ही प्रयोग के रुप में प्रत्याशी उतार दिया। सर्व आदिवासी समाज ने बैठक कर डीआईजी रहे अकबर राम कोर्राम को निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में उतारा और समर्थन दे दिया।
क्या रहे परिणाम
चुनाव प्रचार के दौरान सर्व आदिवासी समाज ने सामाजिक रुप से लामबंदी की कोशिश की।कोई गाँवों से सामूहिक शपथ लेने के वीडियो भी सामने आए। जबकि 8 दिसंबर को मतगणना के परिणाम आने शुरु हुए तो लोग तब चौंके जबकि शुरुआत के क़रीब नौ से दस राउंड अकबर राम कोर्राम ने बीजेपी को ही तीसरे स्थान पर ढकेल दिया। लेकिन उसके बाद नजारा पलटा और पंद्रहवें राउंड आते आते बीजेपी दूसरे नंबर पर आ गई। अंतिम उन्नीसवाँ राउंड ख़त्म होने पर चुनाव कांग्रेस ने 21098 मतों से जीत लिया लेकिन तीसरे स्थान पर सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम की मौजूदगी सतत बनी रही। अंतिम परिणाम में कांग्रेस से सावित्री मंडावी को 65327, बीजेपी के ब्रम्हानंद नेताम को 44229 और अकबर राम कोर्राम को 23371 मत मिले।
अब आगे क्या
ये नतीजे देखने में ख़ास ना लगे लेकिन जिन्हें आदिवासी समाज के अंतस में चल रही उथल-पुथल का मुकम्मल अंदाज है, उन्हें इस में बहुत सी उम्मीदें साफ़ दिख रही हैं। सर्व आदिवासी समाज के विनोद नागवंशी ने द सूत्र से कहा
“यह विचार सबसे पहले 2018 में आया था, उसके बाद भी इसमें मंथन चलता रहा। यह हमने पाया कि, पार्टियों से जुड़े आदिवासी वर्ग के लोग ना तो पार्टी फोरम पर और ना ही विधानसभा में समाज के अहित का ना विरोध करते हैं और ना ही कुछ बोलते हैं। पेसा एक्ट में पंचायतों के अधिकार ही सीमित कर दिए गए, आदिवासी वर्ग के आरक्षण पर भी सरकार ने कुछ नहीं किया। तब यह फ़ैसला लिया गया कि, हमें अपना प्रतिनिधि भेजना चाहिए। भानुप्रतापुर में सामाजिक सहयोग से बेहद कम समय में हमने प्रयास किया और समझना चाहा कि आख़िर आगे बेहतर करने के लिए क्या क्या करना होगा। जिन्हें यह केवल 23 हज़ार वोट लगते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि यह उप चुनाव में मिले वोट हैं, उप चुनाव जिसे सरकार ही लडती है और जीत भी जाती है। हम इस नतीजे से खुश हैं और निश्चित तौर पर अगर हालात नहीं सुधरे तो 2023 में और बेहतर तैयारी से मैदान में समाज होगा”
सर्व आदिवासी समाज की ओर से प्रत्याशी जो कि बैलेट पेपर पर बतौर निर्दलीय थे, उन अकबर राम कोर्राम का भी कुछ ऐसा ही कहना है।अकबर राम कोर्राम ने द सूत्र से कहा
“बेहद कम समय था, पर उसके बावजूद समाज ने भरपूर साथ दिया। 2023 में हम पूरी ताक़त से विधानसभा में उतरेंगे। पेसा एक्ट आरक्षण मसले जैसे मुद्दों पर सामाजिक अहित का लंबा सिलसिला है।”
सीएम बघेल महत्वपूर्ण नहीं मानते
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भानुप्रतापपुर की जीत से ख़ासे उत्साहित हैं।वे इस जीत को जिसमें कांग्रेस को 21 हज़ार से जीत मिली, उसे राज्य सरकार के चार वर्ष के कार्यकाल पर जनता का भरोसा और स्व. मनोज मंडावी के प्रति लोगों का स्नेह मानते है। सीएम बघेल सर्व आदिवासी समाज के इस प्रयोग को क़तई महत्वपूर्ण नहीं मानते। वे बीते चुनाव (2018) के आँकड़ों के हवाले के साथ कहते हैं
“भानुप्रतापपुर के वोटिंग ट्रेंड को आप एनालिसिस करेंगे तो पिछले समय जोगी कांग्रेस और आप पार्टी चुनाव लड़ी थी, दोनों को लगभग नौ साढ़े नौ हज़ार वोट मिला था दोनों को जोड़ लें तो अठारह उन्नीस हज़ार होता है।इस समय दोनों खड़े नहीं थे, भाजपा को भी उतना ही वोट मिला,उसके वोट स्थिर हैं।इस समय वोट कुछ कम पड़े प्रतिशत कम रहा तो मैं नहीं समझता कि सर्व आदिवासी समाज का खुद का कोई वोट था। वो जो ना कांग्रेस को देना चाह रहे थे ना भाजपा को देना चाह रहे थे। जो आप पार्टी और जोगी कांग्रेस का वोट है हालाँकि मतदाता बदल गए होंगे, लेकिन आँकड़े उसी प्रकार के हैं जो लोग क़सम खिलाए थे और बड़ी बड़ी बात दावा कर रहे थे, वो तो कहीं टिके ही नहीं”