Raipur. सुप्रीम कोर्ट में ईडी के खिलाफ दायर याचिकाओं को लेकर जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने सख़्त रुख़ अपनाया है। शीर्ष अदालत ने दो टूक अंदाज में सवाल किया कि, संविधान का अनुच्छेद 32 के तहत क्या इस अदालत को खुला मंच समझ लिया गया है, जबकि 482 की व्यवस्था है तो निचली अदालत में जाइए। शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं के सीधे सुप्रीम कोर्ट आने पर आपत्ति जताते हुए टिप्पणी की - ये तुच्छ याचिकाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट के बेहद सख़्त तेवर के बीच इन याचिकाओं के तहत पेश अंतरिम ज़मानत के आवेदन वापस ले लिए गए हैं।
क्या है मसला
ईडी के पीएमएलए की धारा 50 को संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए उसे रद्द किए जाने की माँग के साथ याचिकाएं दायर की गईं। यह याचिकाएं उन लोगों के द्वारा जारी की गई जिन्हें ईडी छत्तीसगढ़ के शराब घोटाला मामला में समन कर रही है। इन याचिकाओं के साथ ही अंतरिम ज़मानत आवेदन या कि ईडी की संभावित कार्रवाई से राहत माँगी गई है। सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार किया गया और इन याचिकाओं को ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान गठित पीठ ने सुना। इस अवकाशकालीन पीठ में दो सदस्य जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी हैं। इन दोनों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
शीर्ष अदालत के बेहद कड़े तेवर
शीर्ष अदालत में इन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराज़गी ज़ाहिर की है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई करते हुए कहा
“जबकि धारा 482 है आप संबंधित कोर्ट जाने के बजाय यहाँ आने का मंच बना रहे हैं क्या ? आप निचली अदालत में चुनौती देने के बजाय यहाँ सर्वोच्च न्यायालय में समन को चुनौती दे रहे हैं।”
अवकाशकालीन पीठ ने कहा
“हाँ ये तुच्छ याचिकाएँ हैं।अगर गुण दोषों के आधार पर बहस की जाती तो ..! लेकिन क्या वरिष्ठ वकीलों की भी ये जवाबदेही नहीं है कि ऐसे मामलों में उचित निर्णय ले, सही मार्गदर्शन दें।”
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने खिन्नता से कहा
“जिस तरह की प्रथा इन याचिकाओं में दिख रही है, वह परेशान करने वाली है।”
सॉलिसीटर जनरल तुषार और एसीजी ने कहा
इन याचिकाओं में पेश आवेदन पर सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा
“यह नया चलन है, संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कोई कार्रवाई आदेश प्राप्त करने का यह नया चलन है।लोगों से संपर्क कर के कहा जा रहा है कि, अग्रिम ज़मानत माँगने के बजाय क़ानून की शक्तियों को चुनौती दे और इसके लिए संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करें।”
अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एस वी राजू ने कहा
“इस तरह की दलीलों के साथ यहाँ आने से रोकने की जरुरत है। कुछ व्यवस्था ( टिप्पणियों) की आवश्यकता है वर्ना ऐसे मुक़दमों की बाढ़ आ जाएगी।”
इन दोनों टिप्पणियों पर शीर्ष अदालत ने सहमति जताई है।