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RAIPUR. अविभाजित बिलासपुर (बिलासपुर, मुंगेली और जीपीएम) जिले की 9 विधानसभा सीटों में से इस बार साल 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की स्थितियां कैसे रहेंगी..? इस सवाल का जवाब आज की तारीख को देना इसलिए रिस्की कहा जाएगा क्योंकि अभी चुनाव के आते तक अरपा नदी से पता नहीं कितना और पानी बह जाएगा।
साल 2018 में क्या हुआ
साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बिलासपुर, मुंगेली और जीपीएम जिले की कुल 9 सीटों में से सर्वाधिक चार, बिल्हा बेलतरा मस्तूरी और मुंगेली से बीजेपी की जीत हुई थी। जबकि कोटा लोरमी और मरवाही विधानसभा क्षेत्र से जोगी कांग्रेस के प्रत्याशियों को विजय मिली थी। इन दोनों ही पार्टियों की तुलना में कांग्रेस को मात्र 2 सीटों तखतपुर और बिलासपुर में ही विजय प्राप्त हुई थी। अब नई परिस्थितियों में गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के कोटा और मरवाही और मुंगेली जिले की लोरमी विधानसभा सीट पर मरणासन्न जोगी कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत की उम्मीद वही कर सकता है जिसे राजनीति का एबीसीडी ना आता हो। जबकि तखतपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के लिए इस चुनाव में हालात बेहद खराब रहने वाले हैं। बिलासपुर मुंगेली और जीपीएम जिले की यह अकेली सीट है। जहां से आगामी चुनाव में कांग्रेस की पराजय की कहानियां हर किसी की जुबान पर अभी से बैठ गई हैं।
कांग्रेस को पार्टी और प्रत्याशी के दम पर मारना होगा मैदान
जोगी कांग्रेस की गैरमौजूदगी में कोटा लोरमी और मरवाही सीट पर कांग्रेस के लिए पिछली बार से अधिक बेहतर संभावनाएं इस बार बन रही हैं। अच्छे, योग्य और जीतने का दमखम रखने वाले प्रत्याशियों का चयन कर कांग्रेस इन तीन में से कम से कम 2 सीटों पर चुनाव जीतने की गुंजाइश पैदा कर सकती है। जबकि बिलासपुर में कांग्रेस के हालात विगत चुनाव की तरह बहुत बेहतर नहीं हैं। तब बीजेपी के कद्दावर नेता अमर अग्रवाल अपने खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी को तगड़े मैनेजमेंट के बावजूद नहीं रोक पाए और उन्हें 10 हजार से भी ज्यादा मतों से पराजय झेलनी पड़ी। इस बार कांग्रेस के लिए हालात इतने अच्छे नहीं हैं। गत चुनाव में बीजेपी के खिलाफ बिलासपुर में आम जनता ही ताल ठोककर खड़ी हो गई थी। इसके विपरीत इस चुनाव में कांग्रेस को पार्टी और प्रत्याशी के दम पर मैदान मारना होगा।
एक बार कांग्रेस, एक बार बीजेपी का पैटर्न
यहां कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि भारतीय जनता पार्टी यहां से किस प्रत्याशी पर दांव लगाती है और कांग्रेस किसे अपना योद्धा बनाती है। वहीं सरकार नहीं होने के कारण मस्तूरी के बीजेपी विधायक डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी क्षेत्र में कुछ विशेष काम नहीं करा पाए हैं। इसलिए चुनाव के पहले उनकी स्थिति 20 नहीं वरन 19 जैसी ही है। फिर मस्तूरी में कुछ चुनावों से एक बार कांग्रेसी एक बार बीजेपी का पैटर्न चल रहा है। इसलिए अब यहां भी कांग्रेस अच्छे और पार्टीजनों में जोश-खरोश भरने वाले फ्रेश प्रत्याशी को मौका देकर एक बार फिर मस्तूरी का दिल जीत सकती है। कमोबेश ऐसा ही हाल बिलासपुर के बेलतरा विधानसभा क्षेत्र का भी है। वहां भी भारतीय जनता पार्टी के विधायक रजनीश सिंह को दूसरी बार मुश्किलों का सामना स्वाभाविक रूप से करना पड़ सकता है। क्षेत्र के हर गांव में विकास कार्यों की कमी रजनीश सिंह को भारी पड़ सकती है। कांग्रेस के लिए भी बेलतरा विधानसभा क्षेत्र उस समय से अबूझ पहेली-सा बन गया है जब इसका नाम सीपत विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था। यहां पार्टी की गुटबाजी और कैंडिडेट के चयन में जीतने योग्य प्रत्याशी की जगह अपने खास आदमी को टिकट की रेवड़ी देना ही कांग्रेस के लिए समस्याएं पैदा करता रहा है। लेकिन यहां से बिलासपुर के किसी जुझारू लोकप्रिय और दमदार शख्सियत को अगर कांग्रेस टिकट दे देती है तो वह निश्चित रूप से बाजी मार सकता है।
कोटा में कांग्रेस की अच्छी उम्मीद
इस तरह पिछले विधानसभा चुनाव में केवल तखतपुर और बेलतरा से चुनाव जीतने वाली कांग्रेस इस बार मुंगेली जिले की लोरमी और गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की मरवाही सीट पर अपना परचम लहरा सकती है। कोटा में भी कांग्रेस के लिए इस बार अच्छी उम्मीद है। बशर्ते कांग्रेस पार्टी इस बार हर हाल में चुनाव जीतने के दमखम और किलर इंस्टिंक्ट के साथ चुनाव लड़े। हमारा कुल जमा आकलन यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बिलासपुर, मुंगेली और जीपीएम जिले की 9 विधानसभा सीटों में से मात्र 2 सीटों पर भी विजयी होने वाली कांग्रेस पार्टी इस बार 2 और (कुल 4) सीटों पर निश्चित ही चुनाव जीत सकती है। अधिक जोर लगाने पर उसके खाते में एक सीट और भी बढ़ सकती है। कांग्रेस के लिए जीत की दमदार संभावनाओं वाली सीटों में मस्तूरी बेलतरा कोटा लोरमी और मरवाही सीटों को गिना जा सकता है। बिलासपुर को हम कांग्रेस और बीजेपी दोनों के प्रत्याशियों के चेहरे और लोकप्रियता पर छोड़ते हैं। अभी की स्थिति में यहां ना तो कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी है और ना बीजेपी की।
मेहनत करने से कांग्रेस की हालत होगी बेहतर
जोगी कांग्रेस की सीटों के साथ ही बेलतरा और मस्तूरी में मेहनत करने से कांग्रेस की हालत पिछले चुनाव की अपनी स्थिति से और बीजेपी से काफी बेहतर हो सकती है। एक और सीट जिसका हम जिक्र करना भूल गए। वह है पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक का बिल्हा विधानसभा क्षेत्र। कुर्मी समाज के मतदाताओं की बहुलता वाले इस विधानसभा क्षेत्र को एक तरह से ओबीसी और विशेषकर कुर्मी समाज के लिए आरक्षित माना जाता रहा है। गत चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र शुक्ला की स्थिति इसके कारण ही डांवाडोल हुई। यहां भी कांग्रेस अगर कुर्मी समाज में लोकप्रिय किसी शख्सियत को प्रत्याशी बनाकर धरमलाल कौशिक के सामने खड़ा करती है तो बाकी समाजों के वोटों का समर्थन हासिल कर अपनी किस्मत बुलंद कर सकती है।