पन्ना. हीरे की खदान, मंदिरों और जंगलों के लिए मशहूर पन्ना अब आंवले के मुरब्बों के लिए जाना जाने लगा है। एक छोटे से गांव दहलान चौकी की भगवती यादव (60) इन मुरब्बों से अपने साथ ही जिले का भी नाम कर रही हैं। भगवती एक पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन उनके मुरब्बा बनाने के हुनर ने उन्हें कमाई का जरिया भी दे दिया है। भगवती की कामयाबी से गांव की अन्य दूसरी महिलाएं भी स्वावलंबी बन रही हैं।
स्वसहायता समूह बनाया
भगवती ने ‘मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह’ बनाया है। वे इसकी अध्यक्ष हैं। मुरब्बा खरीदने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां से गुजरने वाले यात्री अपना वाहन रोककर आंवला मुरब्बा खरीदते हैं और अपने आगे के सफर पर निकल जाते हैं। इस छोटी दुकान से ही कई क्विंटल मुरब्बा बिक जाता है। भगवती यादव भगवती यादव कहती हैं, ‘बड़ी-बड़ी मैडमें कार से आती हैं और यहां से मुरब्बा लेकर जाती हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में भी आंवला मुरब्बा की मांग घटी नहीं, बल्कि बढ़ी है। लॉकडाउन के बावजूद घर से 15 कुंतल मुरब्बा बिका है।’
10 ग्रुप काम कर रहे
मौजूदा समय इस गांव में 10 महिला स्वयं सहायता समूह हैं, जो आंवला मुरब्बा और आंवले से बनने वाले अन्य उत्पाद बनाते हैं। इन समूहों में सौ से भी अधिक महिलाएं काम करती हैं।
भगवती के पति भी हाथ बंटाते हैं
भगवती यादव के काम में हाथ बंटाने वाले उनके पति दशरथ यादव बताते हैं, इस साल आंवले की फसल कमजोर थी। जंगल के आंवले लोग जल्दी तोड़ लेते हैं, जिनका उपयोग हम मुरब्बा बनाने में नहीं करते। किसानों के निजी आंवला बगीचों से आंवला खरीदते हैं, जिनकी तुड़ाई आंवला नवमी के बाद की जाती है।
सीजन में 40 टन मुरब्बा बनता है
दशरथ ने बताया कि अच्छे आंवला फलों की उपलब्धता पर निर्भर होता है कि कितना मुरब्बा बनेगा। हमारा समूह औसतन 30-40 क्विंटल मुरब्बा हर सीजन में तैयार करता है। मुरब्बा के अलावा आंवला अचार, आंवला कैंडी, आंवला सुपारी, आंवला चूर्ण व आंवले का रस भी हम तैयार करते हैं। समूह ने भोपाल, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद व त्रिमूल (केरल) में आंवला उत्पाद का प्रदर्शन मेलों में किया है, जहां कई पुरस्कार भी मिले हैं। दशरथ यादव ने बताया कि आंवला मुरब्बा 150 से 160 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है।